बिहार (Bihar) में पिछले काफी दिनों से एनडीए की सीट शेयरिंग पर चल रही सरगर्मी थम गई है क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से चिराग पासवान की मुलाकात हुई और सीट शेयरिंग पर बात पक्की हो गई है. ये मुलाकात बहुत खास हैं क्योंकि एलजेपी अध्यक्ष नीतीश कुमार के बड़े आलोचक रहे हैं, लेकिन दोनों नेता गर्मजोशी से मिले और गले भी लगे. नीतीश कुमार के साथ हुई मुलाकात और जमुई सीट की बजाय हाजीपुर से चुनाव लड़ने को लेकर चिराग पासवान ने कहा कि अब सब ठीक हो गया है, अब मुझे नीतीश कुमार से कोई दिक्कत नहीं है.
चिराग पासवान ने कहा कि मतभेद की वजह से गठबंधन को नुकसान हो जाए, ये गलत होता है. इसलिए हमने बातचीत से चीजें सुलझा ली हैं, पुरानी चीजें भूलकर आगे तो बढ़ना होगा. आज की तारीख में बिहार की सभी चालीस से सीटें बहुत महत्वपूर्ण हैं.
चिराग पासवान ने आगे कहा कि मेरे परिवार में लोगों को पशुपति पारस से नाराजगी है. फिलहाल उनसे पैच-अप की कोई संभावना नहीं है. चाचा की तरफ से समझौते के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं. मेरे पिता के गुजर जाने के बाद चाचा ही मेरे पिता के समान थे. उनको मुझे समर्थन देना चाहिए था लेकिन उन्होंने मुझे अकेला छोड़ दिया था.
परिवारवाद पर क्या बोले चिराग?
परिवारवाद पर बात करते हुए चिराग पासवान ने कहा कि पीएम मोदी ने परिवारवाद की परिभाषा बताई है कि कोई अगर मेहनत और संघर्ष करके आगे आता है, तो उसे परिवारवाद नहीं कह सकते.
उन्होंने आगे कहा कि किसी बड़े व्यक्तित्व का सुपुत्र होना आपका सौभाग्य हो सकता है, काबिलियत नहीं. मेरे जीजा में काबिलियत नहीं होगी तो जमुई की जनता उनको स्वीकार नहीं करेगी. अगर वो मेहनत करेंगे, तभी जनता स्वीकार करेगी. 2014 में मुझे 85 हजार मत मिले थे लेकिन मैंने उसको ढाई लाख में बदला.
'जनता से रिश्ता निभाऊंगा...'
चिराग पासवान ने अपने कार्यकाल में हुए काम को गिनाते हुए कहा कि जमुई की जनता से रिश्ता मैं भी निभाऊंगा और जीजा जी भी निभाएंगे. मैं जमुई में बड़ी परियोजनाएं लेकर गया. मैंन नली, गली, सड़कों और बिजली पर बहुत काम किया. आज लगभग 90 फीसदी गांव सड़कों से जुड़े हुए हैं. जमुई को पहली बार अपना केंद्रीय विद्यालय और मेडिकल कॉलेज मिला.
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लोकसभा में पासवान
दिलचस्प बात यह है कि परिवार के सदस्यों का लोकसभा में पहुंचना पासवान परिवार के लिए कोई नई बात नहीं है. अब तक परिवार के पांच सदस्य लोकसभा में पहुंच चुके हैं. अगर अरुण भारती जमुई से जीतते हैं, तो वह संसद के निचले सदन में पहुंचने वाले परिवार से छठे होंगे.
विशेष रूप से, राम विलास पासवान रिकॉर्ड तौर पर नौ बार- 1977, 1980, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में लोकसभा के लिए चुने गए. वह दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
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राम विलास पासवान के छोटे भाई राम चंद्र पासवान भी चार बार 1999, 2004, 2014 और 2019 में लोकसभा सांसद रहे. 2019 में राम चंद्र पासवान की मौत के बाद, उनके बेटे और चिराग पासवान के चचेरे भाई, प्रिंस राज, समस्तीपुर उपचुनाव जीतकर सांसद चुने गए.
राम विलास पासवान के एक और भाई, पशुपति पारस भी 2019 में लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया. हालांकि, बीजेपी के द्वारा चिराग पासवान के एलजेपी गुट के साथ सीट-बंटवारे के समझौते को अंतिम रूप देने के बाद पशुपति पारस ने इस महीने की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया.