लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए प्रचार और जमीन पर अपनी रणनीति तय कर रही है. पूर्वांचल में जाति समीकरण को देखते हुए भाजपा ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है. यहां दलित ओबीसी सहित यादव मुख्यमंत्री को मैदान में उतारा गया है. इतना ही नहीं मुस्लिम मोर्चे को भी जिम्मेदारी दी गई है.
लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण सातवां फेस है. इसमें सभी 13 सीटों पर बढ़त बनाने के लिए बीजेपी और INDIA ब्लॉक सहित अन्य दलों ने पूरी तरीके से अपनी ताकत झोंक दी है. पूर्वांचल में जाति समीकरण पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. विपक्ष भी लगातार जातीय समीकरण पर काम कर रहा है. लिहाजा राजनीतिक दल भी इस मिजाज के आधार पर अपनी रणनीति तय कर रहे हैं. अभी पक्ष जहां आरक्षण के मुद्दे को पूर्वांचल से जोड़ रहा है. पिछड़ों और दलितों को विपक्ष से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है तो वहीं पर बीजेपी अब दलित और ओबीसी और आरक्षण के मुद्दे पर प्रचार के माध्यम से इन जातियों को समझने का प्रयास भी कर रही है.
पिछड़े समाज के नेताओं को भी उतारा
राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी प्रचार में उतारा गया है. जातीय समीकरण को देखते हुए बूथ पर स्थानीय नेताओं को लगाया गया है. बीजेपी ने दलित बाहुल्य बूथ पर दलित नेता और पिछड़ा बाहुल्य बूथ पर पिछड़े समाज के नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है. बीजेपी की ओर से गरीब मुस्लिम आबादी वाले बूथ पर पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पदाधिकारी को भी उतारा गया है.
भाजपा की खास रणनीति तैयार
आखिरी चरण में किसी भी तरीके की कोई कमी ना छूटे इसलिए सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बीजेपी ने अपने काद्यावर नेताओं को लगाया हुआ है. यादव जाति को साधने के लिए भाजपा ने खास रणनीति तैयार की है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को भी पूर्वांचल पर प्रचार के लिए सियासी मैदान में उतारा गया है. एक-एक दिन में उनके 7 से 8 कार्यक्रम कराए जा रहे हैं. वहीं, ब्राह्मण मतदाताओं के बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के चेहरे का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. ब्राह्मणों को भी साधने का प्रयास किया जा रहा है. इसके साथ दलितों और पिछड़ों को समझने में कहीं ना कहीं संघ भी लगा हुआ है. इसके लिए अलग से दलित नेताओं और ओबीसी नेताओं को लगाया गया है.