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दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर मायावती ने भी उतारे उम्मीदवार, BSP किसका बिगाड़ेगी खेल?

बसपा दिल्ली नगर निगम की 250 और दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. 2008 में दिल्ली विधानसभा लड़ने पर बसपा के 2 विधायक भी जीते थे. हालांकि 2013 में पार्टी को झटका लगा और पार्टी को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली. इसके बाद बसपा ने साल 2009, 2014 और 2019 में दिल्ली में लोकसभा चुनाव भी लड़ा.

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बसपा प्रमुख मायावती (फाइल फोटो)
बसपा प्रमुख मायावती (फाइल फोटो)

दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन तो हो गया, लेकिन दिल्ली कांग्रेस चीफ अरविंदर सिंह लवली के इस्तीफे के बाद राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुई नजर आ रही हैं. यही कारण है कि बीजेपी ने गठबंधन पर हमले और तेज कर दिए. वहीं इस बीच अब बहुजन समाज पार्टी को भी राष्ट्रीय राजधानी में सियासी फायदा दिख रहा है. और पार्टी ने शहर की सातों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं. 

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दरअसल, पूरी दिल्ली में करीब 20% SC वोटर्स हैं. साथ ही यहां पर उत्तर प्रदेश के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं और जो दिल्ली के ही वोटर बन चुके हैं. ऐसे में बसपा को इस बार के लोकसभा में खोई हुई साख वापस पाने का मौका है. इसकी के मद्देनजर बसपा ने सभी सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है. दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों के लिए मतदान एक ही दिन, छठे चरण में होगा. यहां 25 मई को वोटिंग होगी. 

दिल्ली बसपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह का कहना है कि कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी ने हमें एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल करते हुए 'बी' टीम बता दिया, लेकिन जब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन ही हो गया तो अब सब साफ है कि कौन किसके साथ है. आकाश आनंद और बहन जी आक्रोशित हैं. हम (बसपा) अपने दम पर चुनाव लड़ते हैं. 

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लक्ष्मण सिंह का दावा है कि किसी भी पार्टी ने आज तक दिल्ली लोकसभा की सातों सीटों पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा ने मुस्लिम समाज से दो टिकट दिए हैं. बसपा का कोर वोटर छिटककर कांग्रेस और फिर आम आदमी पार्टी में चला गया था, लेकिन दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में बसपा का कोर वोटर वापस लौट रहा है. 

ऐसे में सवाल उठता है कि बसपा ने सातों सीटों पर उम्मीदवारों को उतारकर किसका खेल बिगाड़ा है? क्या इससे AAP-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान होगा या फिर बीजेपी को. हालांकि यह आने वाली 4 जून को रिजल्ट डे पर ही पता चल सकेगा.

बसपा के प्रत्याशियों में 3 एडवोकेट

बसपा ने चांदनी चौक से एडवोकेट अब्दुल कलाम, साउथ दिल्ली से अब्दुल बासित जो कभी आरजेडी में हुआ करते थे. पूर्वी दिल्ली से ओबीसी समाज से एडवोकेट राजन पाल को उतारा गया है, जो पाल समाज से आते हैं. उत्तर पूर्वी दिल्ली से डॉक्टर अशोक कुमार हैं, जो एससी समुदाय से आते हैं. नई दिल्ली से एडवोकेट सत्यप्रकाश गौतम, उत्तर पश्चिमी दिल्ली से विजय बौद्ध तो पश्चिमी दिल्ली से विशाखा आनंद को उतारा है.

ये है दिल्ली में बसपा की स्थिति

गौरलतब है कि बसपा दिल्ली नगर निगम की 250 और दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. 2008 में दिल्ली विधानसभा लड़ने पर बसपा के 2 विधायक भी जीते थे. हालांकि 2013 में पार्टी को झटका लगा और पार्टी को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली. इसके बाद बसपा ने साल 2009, 2014 और 2019 में दिल्ली में लोकसभा चुनाव भी लड़ा. दावा है कि चुनाव लड़ने के बाद वोट प्रतिशत बढ़ा है. लेकिन चुनावी आकंड़ों पर गौर करें तो पार्टी का ग्राफ दिखता ही नजर आया है. कारण, 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 9% वोट मिले, 2014 में ये घटकर 6% हो गए और 2019 में यह सिर्फ 1% रह गया.

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दिल्ली में दलितों की बड़ी आबादी

बता दें कि फिलहाल दिल्ली में 20% दलित वोटर्स हैं और दलित बीएसपी के कोर वोटर हैं, हालांकि इनका एक हिस्सा आप और कांग्रेस में जा चुका है. जबकि एक हिस्सा भाजपा के साथ जुड़ चुका है. ऐसी स्थिति में दलित बहुल सीटों पर अन्य जातियों का वोटर निर्णायक भूमिका में होगा. पिछले चुनावों में भाजपा को सभी वर्गों का समर्थन मिला था और दिल्ली में लगभग 58 फीसदी वोट हासिल हुए थे. बसपा ने 3 मुसलमान कैंडिडेट्स को टिकट दिया है. इससे मुस्लिम वोटरों में सेंध लगेगी. अभी मुस्लिम कांग्रेस और आप के वोटर हैं. यदि बीएसपी एक दो सीटों पर संघर्ष को त्रिकोणीय बनाने में सफल हो गई तो इससे हुए वोट बंटवारे में निश्चित तौर पर बीजेपी एडवांटेज की स्थिति में रहेगी. साल 2014 और 2019 में गैर जाटव और गैर यादव ओबीसी को साधने से बीजेपी को सोशल इंजीनियरिंग का फायदा मिला था. दोनों गैर जाटव और गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को अपने साथ जोड़े रखने की चुनौती भी भाजपा के सामने रहेगी.

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