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Gwalior Lok Sabha Election 2024: ग्वालियर में युद्ध स्तर पर चल रहा BJP का प्रचार, इधर कांग्रेस का नहीं हुआ अभी तक आगाज

Gwalior Lok Sabha Election 2024: खास बात यह है कि ग्वालियर लोकसभा सीट से BJP प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाह ने तो अपने प्रथम चरण का चुनाव प्रचार अभियान भी संपन्न कर लिया है. जबकि कांग्रेस के कार्यकर्ता और उनके समर्थक अभी तक अपने नेता की बाट जोह रहे हैं. 

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BJP और कांग्रेस पार्टी के झंडे. (फाइल फोटो)
BJP और कांग्रेस पार्टी के झंडे. (फाइल फोटो)

Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव का बिगुल बजाने के बाद से पूरे देश समेत मध्य प्रदेश की ग्वालियर लोकसभा सीट पर भी बीजेपी का चुनाव प्रचार युद्ध स्तर पर चल रहा है, जबकि इसके ठीक उलट कांग्रेस अभी तक चुनाव प्रचार का आगाज भी ग्वालियर लोकसभा में नहीं कर सकी है. चुनाव प्रचार का आगाज तो दूर की बात, कांग्रेस यहां पर अपना प्रत्याशी भी घोषित नहीं कर सकी है. इस वजह से कांग्रेस चुनाव प्रचार की रेस में काफी पीछे रह गई है. 

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खास बात यह है कि ग्वालियर लोकसभा सीट से BJP प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाह ने तो अपने प्रथम चरण का चुनाव प्रचार अभियान भी संपन्न कर लिया है. जबकि कांग्रेस के कार्यकर्ता और उनके समर्थक अभी तक अपने नेता की बाट जोह रहे हैं. 

ग्वालियर लोकसभा सीट पर बीते चार चुनाव से बीजेपी का ही कब्जा है, जिसकी शुरुआत साल 1999 में भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया की जीत के साथ हुई थी. लेकिन जब इस सीट पर पहला चुनाव हुआ था, उस वक्त ग्वालियर लोकसभा सीट पर हिंदू महासभा ने अपनी जीत का परचम लहराया था. साल 1952 में हिंदू महासभा के प्रत्याशी वीजी देशपांडे ने यहां जीत दर्ज कराई थी. इसके बाद हिंदू महासभा के ही प्रत्याशी नारायण भास्कर खरे ने हिंदू महासभा की लोकसभा सीट को बरकरार रखा, लेकिन साल 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सूरज प्रसाद ने यह सीट हिंदू महासभा से छीन ली. 

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साल 1962 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ी और अपनी जीत भी दर्ज कराई. साल 1967 में भारतीय जन संघ के राम अवतार शर्मा ने इस सीट को कांग्रेस से छीन लिया. भारतीय जन संघ के ही टिकट पर चुनाव लड़े अटल बिहारी वाजपेई ने 1971 में हुए चुनाव में एक बार फिर से ग्वालियर लोकसभा सीट पर जीत हासिल की, जबकि साल 1977 में जनता पार्टी से नारायण शेजवलकर ने जीत हासिल करते हुए ग्वालियर लोकसभा सीट पर इतिहास रच दिया. 

1980 के चुनाव में भी नारायण शेजवलकर ने अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखा. साल 1984 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी से माधवराव सिंधिया ने चुनाव लड़ा और फिर भी लगातार यहां से चुनाव जीतते गए. 1984 से शुरू हुआ माधवराव सिंधिया की जीत का सिलसिला 1989 से लेकर 1991, 1996 और 1998 तक बरकरार रहा. फिर साल 1999 में बीजेपी से जयभान सिंह पवैया ने चुनाव लड़ते हुए संसद का रास्ता साफ किया और यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई, जबकि साल 2004 के चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस के रामसेवक सिंह ने यहां से जीत दर्ज की. 

2007 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से इस सीट को अपने खाते में कर लिया और यशोधरा राजेश सिंधिया ग्वालियर से सांसद चुनी गई. यशोधरा राजे सिंधिया ने अपनी जीत को बरकरार रखते हुए 2009 में भी बीजेपी का परचम लहराया, जबकि साल 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर ने इस सीट पर जीत दर्ज की. बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर के इसी जीत के सिलसिले को विवेक नारायण शेजवलकर ने आगे बढ़ाते हुए साल 2019 के चुनाव में फतह हासिल की. इस तरह भाजपा के लिए ग्वालियर लोकसभा सीट उसका गढ़ बन गई. 

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इस बार के चुनाव में बीजेपी ने भारत सिंह कुशवाहा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है. भारत सिंह कुशवाहा शिवराज सरकार में उद्यानिकी मंत्री रह चुके हैं, लेकिन साल 2023 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा से उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने भारत सिंह कुशवाहा पर इस बार दांव लगाया है. 

प्रत्याशी घोषित होने के बाद से ही भारत सिंह कुशवाहा लगातार क्षेत्र में पहुंचकर जनसंपर्क कर रहे हैं. जगह-जगह बीजेपी के चुनाव कार्यालय का उद्घाटन भी किया जा रहा है, लेकिन इसके उलट कांग्रेस के पास अभी तक उसका कैंडिडेट भी नहीं है. सिंधिया के गढ़ में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के पास अभी कोई मजबूत चेहरा दिखाई नहीं दे रहा है, हालांकि ग्वालियर दक्षिण विधानसभा से विधायक रहे प्रवीण पाठक के नाम पर विचार चल रहा है. जबकि सतीश सिंह सिकरवार, जो कि वर्तमान में ग्वालियर पूर्व विधानसभा से विधायक हैं, उन्हें भी टिकट की दौड़ में देखा जा रहा है. 

साल 2004 में कांग्रेस की तरफ से सांसद रहे रामसेवक सिंह के नाम पर भी चर्चा जारी है, लेकिन अभी तक किसी भी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई है. इस वजह से कांग्रेस का चुनाव अभियान शुरू भी नहीं हो सका है. एक तरफ बीजेपी युद्ध स्तर पर चुनाव प्रचार अभियान चला रही है, वहीं कांग्रेस के पास अभी तक प्रत्याशी नहीं मिलने की वजह से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उत्साह की कमी देखी जा रही है. यही वजह है कि चुनाव प्रचार की रेस में बीजेपी काफी आगे निकल चुकी है.

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