हरियाणा में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने मैदान में अपने 'खिलाड़ी' उतार दिए हैं. यहां टिकट बंटवारे से साफ पता चलता है कि बीजेपी के लिए गैर-जाट वोटर्स टॉप फोकस में हैं. बीजेपी उम्मीदवार चयन में ओबीसी पर ज्यादा भरोसा किया. राज्य में 21 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं. जबकि जाट मतदाता 22.2 प्रतिशत हैं. इसके अलावा, सवाल यह भी उठ रहा है कि वरिष्ठ नेताओं के किनारा करने से बीजेपी के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान पर कितना असर पहुंचेगा? हालांकि, प्रचार में बीजेपी, कांग्रेस से आगे है. चूंकि कांग्रेस टिकटों पर फैसला करने के लिए संघर्ष कर रही है.
पहले बात करते हैं कि बीजेपी जाट मतदाताओं से दूर क्यों हो रही है? इसकी मुख्य वजह यह निकलकर आती है कि चूंकि राज्य में जाट वोटर्स कांग्रेस, जेजेपी और INLD समेत कई पार्टियों में बंटे हुए हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री चुना था. वो लगातार दो बार मुख्यमंत्री रहे.
'बीजेपी के फोकस में रहे गैर जाट वोटर्स'
भले ही कांग्रेस जाट मतदाताओं पर भरोसा कर रही है, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 50 प्रतिशत जाट वोट हासिल किए थे. उसके बावजूद बीजेपी के फोकस से गैर-जाट वोटर्स दूर नहीं हुए हैं. बल्कि नजदीकियां बढ़ाई हैं. बीजेपी को 74 प्रतिशत सामान्य जाति, 73 प्रतिशत ओबीसी और 58 प्रतिशत दलित समुदाय से जुड़े वोट मिले थे.
2019 के विधानसभा चुनावों में वोट स्विंग के कारण दिग्गज नेता चित्त हो गए थे. कैप्टन अभिमन्यु, ओपी धनखड़, तत्कालीन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला और प्रेम लता समेत टॉप जाट नेताओं की हार हुई थी.
'फिर दोहराया सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला'
गैर-जाट वोटरों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने इस बार अपना सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला दोहराया है. दिलचस्प बात यह है कि पार्टी ने फिर से जाटलैंड रोहतक और सोनीपत से दो ब्राह्मणों को मैदान में उतारा है. मौजूदा सांसद अरविंद शर्मा को जहां रोहतक से मैदान में उतारा गया है. वहीं, विधायक मोहन लाल बडोली को मौजूदा सांसद रमेश चंद्र कौशिक की जगह सोनीपत से टिकट दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि 2019 में दोनों सीटें बीजेपी ने पूरी तरह से अपनी सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर जीती थीं. बीजेपी के ब्राह्मणों ने कांग्रेस के जाट पिता-पुत्र की जोड़ी भूपिंदर सिंह हुडा और दीपेंद्र सिंह हुडा को हराया था.
इसी तरह, बीजेपी ने दो मौजूदा ओबीसी सांसदों कृष्णपाल गुर्जर और राव इंद्रजीत सिंह को फरीदाबाद और गुरुग्राम से दोबारा मैदान में उतारा है. हाल ही में पार्टी में शामिल हुए दो जाट नेताओं रणजीत सिंह चौटाला और धर्मबीत सिंह को हिसार और महेंद्रगढ़-भिवानी से टिकट दिया गया है.
व्यापारी समाज पर असर डालने के लिए बीजेपी ने इस बार कांग्रेस के बागी नेता नवीन जिंदल को कुरूक्षेत्र से टिकट दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मनोहर लाल खट्टर अब करनाल से उम्मीदवार हैं. डॉ. अशोक तंवर और बंतो कटारिया को सिरसा और अंबाला (सुरक्षित) सीटों से टिकट दिया गया है.
'2019 में बीजेपी को मिले थे 58 फीसदी वोट'
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटें जीती थीं और 58 फीसदी वोट हासिल किए थे, लेकिन कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए तो वोट शेयर में 22 फीसदी की भारी गिरावट आई थी. पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 79 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी, लेकिन जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए ता पार्टी 38 सीटों पर सिमट गई.
तीन वरिष्ठ नेता हाशिए पर आए
छह बार के विधायक और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज, पूर्व शिक्षा मंत्री राम बिलास शर्मा और पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु जैसे दिग्गज नेताओं को हाशिए पर देखा जा रहा है. पार्टी आलाकमान ने कभी भी उन्हें सीएम पद के लिए योग्य नहीं माना. शीर्ष पद के लिए मनोहर लाल खट्टर और उनके सहयोगी नायब सिंह सैनी पर भरोसा किया. हाशिए पर चल रहे नेताओं ने धीरे-धीरे अपना दर्द जताना शुरू कर दिया है. राम बिलास शर्मा की परेशानी हाल ही में महेंद्रगढ़ के नांगल चौधरी में आयोजित एक रैली में दिखी, जब उनसे अपना भाषण छोटा करने के लिए कहा गया.
राम बिलास शर्मा ने कहा, समय प्रभावशाली है और प्रतिकूल होने पर लोमड़ी शेर को हरा सकती है. हमने पेड़ लगाए लेकिन जब हमने छाया मांगी तो समय नहीं था.
2019 का विधानसभा चुनाव हारने वाले कैप्टन अभिमन्यु इस बार हिसार लोकसभा क्षेत्र से टिकट मांग रहे थे. जबकि यहां से पार्टी ने निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला को टिकट दिया है. चौटाला पिछले महीने ही बीजेपी में शामिल हुए हैं. इस फैसले से कुलदीप बिश्नोई और उनके विधायक बेटे भव्य बिश्नोई भी नाराज हैं. अभिमन्यु और बिश्नोई दोनों ने अब खुद को चुनाव प्रचार से दूर कर लिया है.
'अनिल विज चल रहे हैं नाराज'
इससे पहले मार्च 2024 में जब अचानक सत्ता का उलटफेर हुआ और नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया तो इसे छह बार के विधायक अनिल विज के लिए बड़ा झटका माना गया. सीएम पद के लिए विज के नाम पर विचार नहीं किया गया. चूंकि बीजेपी पिछड़े वर्ग के समुदाय सैनी को अपने पाले में लामबंद करना चाहती है. जबकि लोकप्रिय नेता विज अब खुद को पार्टी का एक छोटा कार्यकर्ता कहते हैं और उन्होंने राजनीतिक अपनी गतिविधियों को अंबाला कैंट तक सीमित कर लिया है.
'सरपंच भी विरोध में देखे जा रहे'
बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर के अलावा किसानों, सरपंचों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी के खिलाफ किसानों के आंदोलन के फायदे को ध्यान में रखते हुए विपक्षी कांग्रेस और AAP ने आग में घी डालने के लिए हाथ मिला लिया है. उन्होंने बीजेपी को घेरने के लिए आंदोलनकारियों को समर्थन देने का ऐलान किया है. किसान संगठन रैलियों और सभाओं के दौरान हंगामा कर बीजेपी के प्रचार अभियान में बाधा डालने की कोशिश कर रहे हैं.
जाट आंदोलन और किसान आंदोलन के बाद जाट समुदाय में बीजेपी के प्रति बढ़ते अविश्वास ने लोकसभा चुनाव में उतरे उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. ग्राम प्रधानों (सरपंचों) का संगठन भी बीजेपी के खिलाफ खड़ा है और उस पर पंचायतों के अधिकारों में कटौती करने का आरोप लगा रहा है. सरपंचों ने 2023 में तत्कालीन खट्टर सरकार द्वारा शुरू की गई ई-टेंडरिंग प्रक्रिया का विरोध किया था और अब बीजेपी नेताओं के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. अब पंचायतों को दो लाख रुपये से अधिक लागत वाले हर विकास कार्य के लिए ई-टेंडर बुलाने होंगे.
'चुनावी माहौल बनाने में जुटी सोशल मीडिया विंग'
भाजपा ने नकारात्मक प्रचार का मुकाबला करने और मतदाताओं से जुड़ने के लिए वॉर रूम स्थापित किए हैं. फिलहाल, विरोधियों द्वारा छवि खराब करने की किसी भी कोशिश का मुकाबला करने के लिए बीजेपी पूरी तरह तैयार देखी जा रही है. विकास कार्यों और 14 फसलों के लिए एमएसपी और भूमि रिकॉर्ड और मुआवजे के डिजिटलीकरण जैसे किसान समर्थक पहल को लोगों तक पहुंचाने के लिए बीजेपी का मीडिया विंग कमान संभाले है. वोटर्स तक पकड़ मजबूत बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के अलावा माइक्रोमैनेजमेंट का भी उपयोग किया जा रहा है. नई सीटों से मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों को स्थानीय मुद्दों को उठाने के लिए कहा गया है जो मतदाताओं के साथ कनेक्शन बनाएं और अपनी तरफ आकर्षित करें.
पूरी मीडिया टीम का नेतृत्व पार्टी के वरिष्ठ नेता जवाहर यादव कर रहे हैं. पार्टी ने पंचकुला दफ्तर में एक राज्य स्तरीय मीडिया सेंटर स्थापित किया है. जबकि रोहतक, हिसार और सिरसा सीटों को शंकर खरख द्वारा कंट्रोल किया जा रहा है. फरीदाबाद, गुरुग्राम और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीटों को वंदना पोपली द्वारा देखा जा रहा है. अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल और सोनीपत समेत बाकी चार सीटों पर चुनाव प्रचार की निगरानी पंचकुला के एक वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी द्वारा की जा रही है.
पार्टी ने हर विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में विस्तारकों की नियुक्ति की है जो पिछले एक साल से काम कर रहे हैं. उन्हें पिछले चुनाव का डेटा मुहैया कराया गया है और उसके मुताबिक हर बूथ पर पार्टी को मजबूत करने का निर्देश दिया गया है. पार्टी ने 2019 में 58 प्रतिशत वोट शेयर का दावा करके सभी दस सीटें जीतीं.