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पश्चिम बंगाल में कैसे हो गया 'खेला'? EXIT Poll के नतीजों से समझें कहां भारी पड़ती नजर आ रही BJP

लोकसभा चुनाव के सातवें चरण के तहत एक जून को जिन नौ सीटों पर वोटिंग हुई है, वो सभी 2019 में तृणमूल कांग्रेस ने जीती थी और बड़े अंतर से जीती थी. ऐसे में एक बात साफ है कि इन 9 सीटों में बीजेपी ने आखिरकार सेंध लगा दी है. 

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ममता बनर्जी
ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी लगातार कई सालों से 'खेला होबे' का नारा दे रही हैं. लेकिन अब एग्जिट पोल के नतीजों को देखकर लगता है कि उनके साथ खेला हो गया है. एग्जिट पोल में बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 26 से 31 सीट मिलती दिख रहीं हैं. वहीं, टीएमसी को 11 से 14 और इंडिया ब्लॉक सिर्फ 2 सीटों पर सिमटते नजर आ रहा है. 

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अगर वोट शेयर की बात की जाए तो टीएमसी को 40 फीसदी, बीजेपी को 46 फीसदी, इंडिया ब्लॉक को 12 और अन्य को 2 फीसदी वोट शेयर मिल रहा है. ऐसे में एक बात साफ है कि अगर बीजेपी को 46 फीसदी के आसपास वोट शेयर मिल रहा है और उसकी सीट इतनी ज्यादा बढ़ रही है तो तृणमूल कांग्रेस के गढ़ दक्षिण बंगाल में भाजपा ने अच्छे से सेंध लगा दी है क्योंकि दक्षिण बंगाल में सेंध लगाए बगैर बीजेपी को इतनी बड़ी जीत पश्चिम बंगाल में मिलना असंभव है.

लोकसभा चुनाव के सातवें चरण के तहत एक जून को जिन 9 सीटों पर वोटिंग हुई है, वो सभी 2019 में तृणमूल कांग्रेस ने जीती थी और बड़े अंतर से जीती थी. ऐसे में एक बात साफ है कि इन 9 सीटों में बीजेपी ने आखिरकार सेंध लगा दी है. 

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पश्चिम बंगाल में बीजेपी के नेताओं के मुताबिक, अनुमान है कि अगर बहुत अच्छा हुआ तो बीजेपी को 29 सीटें पश्चिम बंगाल से मिलेंगी. एक जून को बंगाल में जिन नौ सीटों पर वोटिंग हुई है, बंगाल बीजेपी के नेताओं के मुताबिक, उसमें से तीन सीटें बीजेपी को मिल रही हैं. बारासात, उत्तर कोलकाता और मथुरापुर लोकसभा सीट बीजेपी जीत रही है. 

ऐसे में हम अगर आकलन करें तो 2019 में बारासात लोकसभा सीट पर जीत का अंतर लगभग 1.10 लाख वोटों का था. लोकसभा चुनाव के हिसाब से यह अंतर बहुत अधिक नहीं माना जा सकता है.  वहीं, उत्तर कोलकाता में वोटों का अंतर लगभग 1.27 लाख वोटों का था.

हालांकि, मथुरापुर लोकसभा सीट पर जीत का अंतर लगभग दो लाख वोटों का था, फिर भी बीजेपी को लग रहा है कि इन तीन सीटों पर भले ही कम अतंर से बीजेपी जीत रही है. लेकिन इस पूरे चुनाव में पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा मुद्दा संदेशखाली का रहा. लेकिन बीजेपी की जीती हुई सीटों में बशीरहाट सीट का नाम नहीं है. इसी लोकसभा क्षेत्र में संदेशखाली आता है.

बशीरहाट की सात विधानसभा सीटों में भले ही बीजेपी को संदेशखाली विधानसभा में बढ़त मिले. लेकिन बाकी छह विधानसभा सीट पर बढ़त मिलना मुश्किल है. इसकी एक वजह मुस्लिम बहुल सीट और दूसरी वजह पिछली बार का अंतर है, जो लगभग साढ़े तीन लाख के आसपास का था. 

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हालांकि, बीजेपी को लग रहा है कि संदेशखाली का मुद्दा भले ही बशीरहाट में उतना सफल ना हो लेकिन आसपास की सीटों खासतौर पर उत्तर कोलकाता और बारासात ने असर डाल सकता है.

अगर हम पिछले डेढ़ महीने के दौरान पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार देखें तो साफ है कि ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण के मुद्दे के ईर्द-गिर्द अधिकतर चुनाव प्रचार हुए, जिसका खासा असर पश्चिम बंगाल की राजनीति पर इस बार पड़ता दिख रहा है. ममता बनर्जी का मुख्य वोटबैंक मुस्लिम वोट बैंक रहा है, जो लगभग 27-30 फीसदी के आसपास का है. लेकिन इस बार बाकी के 70 फीसदी वोट शेयर संगठित होकर बीजेपी की ओर जाते दिख रहे हैं.

इसकी एक प्रमुख वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का पश्चिम बंगाल में धुंआधार चुनाव प्रचार रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में लगभग 22 रैलियां कीं, जिनमें से एक रोड शो भी शामिल है जो उत्तर कोलकाता में हुआ. वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने भी लगभग 16 रैलियां पश्चिम बंगाल में की.

अगर अनुमान के मुताबिक, बीजेपी को इतनी ज्यादा सीटें और इतना वोट शेयर पश्चिम बंगाल में मिल रहा है तो इसकी एक प्रमुख वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा रहेगा. वहीं टीएमसी को अगर इतनी कम सीटें मिल रही है तो उसकी कई वजह रहेगी. पहली वजह पिछले 13 सालों से बंगाल की सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का एक फैक्टर भी काम कर रहा है. साथ ही इस दौरान तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और संदेशखाली का मुद्दा भी अहम भूमिका निभाता दिख रहा है.

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