उत्तर प्रदेश के रायबरेली (Rae Bareli) से राहुल गांधी के नामांकन से इस VVIP सीट की फिर से चर्चा शुरू हो गई है. इस लोकसभा में पहली बार राहुल के दादा फिरोज गांधी ने चुनाव लड़ा था. फिरोज ने आजादी के बाद पहले दो चुनावों में इस सीट पर कब्जा किया था. फिरोज गांधी ने निर्वाचन क्षेत्र में जो मजबूत नींव रखी, उसे बाद में उनकी पत्नी और पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने इसे मजबूत किया. इंदिरा ने 1967, 1971 और 1980 में रायबरेली से फतह हासिल की. इसके बाद गांधी परिवार के दोस्तों और परिवार के सदस्यों ने भी इस सीट से जीत हासिल की.
गांधी परिवार और फैमिली के खास लोगों का कब्जा
इंदिरा गांधी ने 1980 में दो सीटों - रायबरेली और तेलंगाना के मेडक से चुनाव लड़ा और मेडक सीट बरकरार रखने का फैसला किया. अरुण नेहरू ने 1980 और उसके बाद 1984 में उपचुनाव जीता. अरुण नेहरू, प्रधान मंत्री राजीव गांधी के बेहद खास थे. इसके अलावा गांधी परिवार के एक और खास शख्स शीला कौल ने रायबरेली से चुनाव जीता. फिरोज गांधी के निधन के बाद 1960 के उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस के आरपी सिंह के पास थी और 1962 में एक अन्य कांग्रेस नेता बैज नाथ कुरील के पास थी.
इंदिरा गांधी की चाची शीला कौल ने 1989 और 1991 में इस सीट की रहनुमाई की. 1999 में, गांधी परिवार के एक अन्य खास, सतीश शर्मा ने रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, जब तक कि सोनिया गांधी ने वहां से अपनी सियासी पारी की शुरुआत नहीं कर दी.
एक बार ऐसा भी हुआ जब कांग्रेस ने इस सीट का प्रतिनिधित्व नहीं किया. साल 1977 में इमरजेंसी के बाद हुआ था, जब जनता पार्टी के राज नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बीजेपी के अशोक सिंह को 1996 और 1998 में हराया था.
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सोनिया गांधी ने चुना अमेठी
राजनीति में प्रवेश करने पर सोनिया गांधी ने 1999 में पड़ोसी लोकसभा सीट अमेठी से चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया. यह सीट पहले उनके पति राजीव गांधी के पास थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने 2004 में अपने बेटे राहुल के राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए इसे खाली कर दिया. इसके बाद सोनिया गांधी ने 2004 से 2019 के बीच चार बार रायबरेली का चुनाव जीता.
रायबरेली से क्यों उतरे राहुल?
राहुल गांधी को अमेठी के बजाय रायबरेली से मैदान में उतारने के पीछे कांग्रेस की रणनीति इस नतीजे पर भी टिकी है कि राहुल के लिए रायबरेली एक बेहतर, सुरक्षित सीट है. राहुल, 2019 में बीजेपी कैंडिडेट स्मृति ईरानी से करीब 50 हजार वोटों से अमेठी हार गए थे. इस आलोचना के बीच कि कांग्रेस ने अमेठी में स्मृति ईरानी को वॉकआउट कर दिया है, सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने माना कि गांधी परिवार के लिए रायबरेली का ऐतिहासिक, भावनात्मक और चुनावी महत्व अमेठी से ज्यादा है.
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सोनिया गांधी ने बताई थी चुनाव न लड़ने की वजह...
रायबरेली के लोगों को अपने विदाई संदेश में, सोनिया गांधी ने यकीन दिलाया कि जो सीट हमेशा उनके और गांधी परिवार के साथ रही है, वह भविष्य में भी उनके परिवार का समर्थन करना जारी रखेगी. 15 फरवरी को पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने अपने रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को बताया किया कि वह स्वास्थ्य और ज्यादा उम्र की वजह से आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी.
सोनिया गांधी ने कहा, "मुझे यह कहते हुए फख्र हो रहा है कि मैं आज जो कुछ भी हूं, आपकी वजह से हूं और मैंने हमेशा आपके यकीन का सम्मान करने की पूरी कोशिश की है. अब स्वास्थ्य और उम्र की वजह से, मैं अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ूंगी.
उन्होंने कहा कि इस फैसले के बाद मुझे सीधे तौर पर आपकी सेवा करने का अवसर नहीं मिलेगा लेकिन मेरा दिल और आत्मा हमेशा आपके साथ रहेगी. मुझे पता है कि आप भविष्य में भी मेरे और मेरे परिवार के साथ खड़े रहेंगे. रायबरेली के मतदाताओं को सोनिया का यह संदेश राजस्थान से राज्यसभा सीट के लिए नामांकन दाखिल करने के एक दिन बाद आया था.
सोनिया गांधी पहली बार राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचीं. वो इंदिरा गांधी के बाद ऐसा करने वाली गांधी परिवार की दूसरी सदस्य थीं. इंदिरा गांधी 1964 से 1967 तक राज्यसभा सदस्य रहीं.
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मतदाताओं को संदेश में सोनिया गांधी ने आगे कहा था कि दिल्ली में मेरा परिवार आपके बिना अधूरा है. यह तब पूरा होता है, जब मैं रायबरेली आती हूं और आप सभी से मिलती हूं. आपके साथ मेरे संबंध बहुत पुराने हैं. ये संबंध मेरे ससुराल वालों की तरफ से मुझे विरासत में मिले हैं.
इसके अलावा सोनिया गांधी ने रायबरेली की जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि आपने मुझे इस चमकदार रास्ते पर चलने की इजाजत दी. मैं अपनी सास और पति को खोने के बाद आपके पास आई और आपने मुझे खुली बांहों से अपनाया. उन्होंने अपने संदेश में बड़ों के प्रति सम्मान और युवाओं के प्रति प्यार जताते हुए कहा था, ''मैं जल्द ही आपसे मिलूंगी.''