UP के बारे में कहा जाता है कि यहां की सियासी नब्ज पकड़ने में बड़े से बड़े धाकड़ मात खा जाते हैं. ऐसे में एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल की मानें तो NDA को 64-67 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं इंडिया गठबंधन को 8-12 सीटें मिल सकती हैं और अन्य को 0-1 सीट मिलने का अनुमान है. लेकिन इन सबके बीच भी एक सीट ऐसी है जिस ओर सबकी निगाहें टिकी हैं. वो सीट है कन्नौज. यहां से सपा प्रमुख और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव खुद मैदान में हैं.
अखिलेश यादव जैसे बड़े नेता के चुनावी मैदान में होने से इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है. 2019 में यहां से अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव मैदान में थीं. मुकाबला इतना दिलचस्प रहा कि सपा का गढ़ माने जाने वाली सीट पर डिंपल को हार मिली और भाजपा के सुब्रत पाठक जीते थे.
एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक इस सीट पर कड़ा मुकाबला है. इस सीट की डेमोग्राफी की वजह से एक्सपर्ट इस सीट पर मुकाबला कड़ा मान रहे हैं.
2019 में दिलचस्प मुकाबला में जीती थी भाजपा
गौरतलब है कि कन्नौज सीट सपा का गढ़ माना जाती रही है. राम मनोहर लोहिया को कभी संसद में भेजने वाली कन्नौज सीट समाजवादियों का गढ़ रही है. क्योंकि, यहां से 1998 से 2014 तक हुए सभी चुनाव में सपा ने जीत हासिल की है. अखिलेश और डिंपल यादव भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सुब्रत पाठक ने डिंपल को शिकस्त दी थी. सपा-बसपा गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के बाद भी डिंपल यादव 12,353 वोटों से हार गई थीं. भाजपा ने एक बार फिर पाठक पर भरोसा जताया है.
क्या है कन्नौज का जातिगत समीकरण
कन्नौज लोकसभा सीट में पांच विधान सभा क्षेत्र आते हैं. इनमें से चार विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. कन्नौज में करीब 16 फीसदी मुस्लिम और करीब 16 फीसदी ही यादव आबादी है. जबकि 15 प्रतिशत ब्राह्मण और 10 प्रतिशत राजपूत समाज है. इसके अलावा 39 फीसदी अन्य समुदाय के लोग रहते हैं. इसमें ज्यादा संख्या दलितों की है.
कन्नौज से शुरू हुई थी अखिलेश की सियासी पारी
अखिलेश यादव इस सीट से पहले भी सांसद रहे हैं. वे 2012 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से पहले तीन बार कन्नौज से सांसद चुने गए. साल 2000 में अखिलेश की सियासी पारी का आगाज इसी कन्नौज सीट से हुआ था. अखिलेश ने पिता मुलायम सिंह के इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट से उपचुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी.
डिंपल यादव भी दो बार रहीं सांसद
जब अखिलेश यादव साल 2012 में सूबे के मुखिया बने तो यह सीट खाली हो गई. उसके बाद उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल की सियासी पारी की शुरुआत हो गई. यहां तक 2014 में मोदी लहर के बावजूद डिंपल ने कन्नौज सीट पर जीत हासिल की थी. हालांकि 2019 के चुनाव में डिंपल और सैफई परिवार को बड़ा झटका लगा और सपा का गढ़ कहे जाने लगी इत्र नगरी हाथ से निकल गई. सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन होने के बावजूद डिंपल को सफलता नहीं मिली और यहां बीजेपी के स्थानीय नेता सुब्रत पाठक ने जीत हासिल की. अब 2024 में अखिलेश के फिर मैदान में आने से कन्नौज बीजेपी और सपा के बीच करीबी मुकाबले की ओर बढ़ रहा है.