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पंजाब में इस बार चौतरफा मुकाबला, एक दूसरे की कीमत पर ही कांग्रेस या फिर AAP बन पाएंगे नंबर वन!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मई को पंजाब के पटियाला में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए AAP और कांग्रेस के विरोधाभास को उजागर किया था. उन्होंने कहा था- पंजाब में, दिल्ली की कट्टर भ्रष्ट पार्टी और सिख दंगों की दोषी पार्टी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने का नाटक कर रहे हैं. सच तो यह है कि पंजा और झाड़ू दो पार्टियां हैं, लेकिन हैं एक ही दुकान से.

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पंजाब में एक दूसरे की कीमत पर ही कांग्रेस या फिर AAP बन पाएंगे नंबर वन. (ANI Photo)
पंजाब में एक दूसरे की कीमत पर ही कांग्रेस या फिर AAP बन पाएंगे नंबर वन. (ANI Photo)

पंजाब में 2024 के लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को मतदान होगा. राज्य में 1989 के बाद पहली बार चौतरफा मुकाबला देखने को मिलेगा. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दिल्ली में एकसाथ और पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं. आम आदमी पार्टी 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन के आधार पर लोकसभा में भी राज्य में अपनी सीटों की संख्या में सुधार की उम्मीद कर रही है. साथ ही उसका मानना ​​​​है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी ने जनता के बीच पार्टी के लिए सहानुभूति पैदा की है. 

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राष्ट्रीय स्तर पर अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए कांग्रेस को पंजाब में 2019 में जीती गईं सीटों को बरकरार रखने की जरूरत है. भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि सुखबीर सिंह बादल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी करके किसानों के गुस्से का सामना करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे. वहीं भाजपा सिख नेताओं को शामिल करके पंजाब में अपने वोट आधार में विविधता लाने और अपनी हिंदू पार्टी की छवि को बदलने की कोशिश कर रही है.

2022 में AAP का सपना साकार हुआ

अगर 2014 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो पंजाब में AAP का डेब्यू शानदार रहा था. पार्टी ने 24 प्रतिशत वोट हासिल किए और 4 संसदीय सीटें जीतने में सफल रही थी. भाजपा ने 2 सीटें जीतीं, अकाली दल ने 4 और कांग्रेस ने 3 सीटें जीतीं. लेकिन 2019 के आम चुनावों में, पंजाब में AAP का वोट शेयर घटकर 7 प्रतिशत हो गया और कांग्रेस ने 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 8 सीटें जीतीं. आम आदमी पार्टी सिर्फ 1 संगरूर सीट पर सिमट कर रह गई. भाजपा और अकाली दल ने 2-2 सीटें जीतीं.

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पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव में AAP ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करते हुए जीत का परचम लहराया. उसने 42 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था. लाख टके का सवाल यह है कि क्या वह इस बार के राष्ट्रीय चुनावों में अपना वोट शेयर बरकरार रख पाएगी. पार्टी को उम्मीद है कि अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से आम आदमी पार्टी के प्रति सहानुभूति है और राज्य में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है.

पंजाब में कांग्रेस-AAP प्रमुख दावेदार

AAP ने 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराया था. फिलहाल ये दोनों दल ही पंजाब में प्रमुख दावेदार हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में गठबंधन किया है, लेकिन पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. इंडिया ब्लॉक के रणनीतिकारों का मानना था कि पंजाब में यदि इससे AAP और कांग्रेस ने गठबंधन किया तो शिरोमणि अकाली दल को मुख्य विपक्षी पार्टी की जगह मिल जाएगी और इससे पार्टी को अपने पुनरुद्धार में मदद मिलेगी. इंडिया ब्लॉक की दोनों पार्टियां सभी 13 सीटों पर एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करेंगी. AAP और कांग्रेस की स्थानीय इकाइयां एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं और इससे मतदाताओं के एक वर्ग के बीच भ्रम पैदा हो सकता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मई को पंजाब के पटियाला में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए दोनों दलों के इस विरोधाभास को उजागर भी किया. उन्होंने कहा, 'पंजाब में, दिल्ली की कट्टर भ्रष्ट पार्टी और सिख दंगों की दोषी पार्टी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने का नाटक कर रहे हैं. सच तो यह है कि पंजा और झाड़ू दो पार्टियां हैं, लेकिन हैं एक ही दुकान से.' केजरीवाल को अभी राज्य में बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार करना है और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इसे कैसे लेते हैं. AAP प्रमुख को भाजपा पर हमला करने से राज्य में वांछित परिणाम नहीं मिल सकते, क्योंकि भगवा पार्टी पंजाब में मार्जिनल प्लेयर है और वह भी हिंदुओं के प्रभुत्व वाली सीटों पर. 

अगर AAP को पंजाब में अधिक सीटें हासिल करनी हैं तो उन्हें कांग्रेस पार्टी को टारगेट करना होगा. दूसरी ओर, अगर कांग्रेस को अपनी सीटें बरकरार रखनी हैं तो उसे अपने गढ़ में आम आदमी पार्टी की सेंध लगाने की कोशिशों को नाकाम करना होगा. हालांकि, अंत में जो भी पार्टी जीतती है, यह इंडिया ब्लॉक के लिए ही फायदेमंद होगा. हालांकि, जिस भी पार्टी को पंजाब में लोकसभा की अधिक सीटें मिलेंगी, उसे 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों में गति मिल सकती है.

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AAP और कांग्रेस की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट रूप से लोकल डायनामिक्स और महत्वाकांक्षाओं के विपरीत हैं. पंजाब लंबे समय से केंद्र विरोधी राजनीति का केंद्र रहा है. क्षेत्रवाद सिख संस्कृति का अभिन्न अंग है, जहां भाजपा को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में देखा जाता है. पंजाबी आम तौर पर नहीं चाहते कि उनका भाग्य दिल्ली से नियंत्रित हो. AAP इस केंद्र विरोधी भावना का फायदा उठाना चाहती है और मतदाताओं के इस वर्ग के शीर्ष दावेदार के रूप में उभरना चाहती है. लेकिन इसकी अधिक संभावना दिल्ली में उसके दोस्त और पंजाब में दुश्मन कांग्रेस पार्टी की कीमत पर होने की है.

बीजेपी-अकाली दल ने बदली रणनीति!

शिरोमणि अकाली दल 2015 की बेअदबी घटना के बाद अपना खोया हुआ सिख वोट बेस वापस पाने का प्रयास कर रहा है और उसने पंथिक (सिख धार्मिक) एजेंडे के प्रति अपने समर्पण को फिर दोहराया है. दूसरी ओर, भाजपा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों से सिख नेताओं के साथ-साथ बुद्धिजीवियों को अपने साथ जोड़ने में लगी है. पंजाब में चतुष्कोणीय मुकाबले का मतलब है कि कोई पार्टी 30-35 फीसदी वोट शेयर के साथ भी अधिक सीटें जीत सकती है.

AAP और कांग्रेस दोनों भाजपा विरोधी राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं. इनमें से किसे अधिक सीटें मिलेंगी यह उम्मीदवारों की अपनी गुडविल और जीतने की उनकी क्षमता पर निर्भर करेगा. पंजाब में मौजूदा परिस्थितियों में लोकसभा चुनाव का विश्लेषण करना मुश्किल है, क्योंकि 2019 का बेस वोट शेयर अब विश्लेषण के लिए मान्य नहीं है. पंजाब में इस समय पार्टियों का वोट शेयर शायद 2022 विधानसभा के आसपास चला गया है या 2019 और 2022 के बीच कहीं है. अब मामला वोट स्विंग का है, जो नतीजे निर्धारित करेगा. चौतरफा मुकाबला मामले को और उलझा देता है.

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पंजाब में मुख्य रूप से दो परिदृश्य बन रहे

यदि AAP पंजाब में 2022 विधानसभा चुनाव के अपने वोट शेयर को बरकरार रखती है, और 2019 लोकसभा चुनावों के सभी सीटों के विजेता भी अपने वोट शेयर को बरकरार रखते हैं, तो मुकाबला 2019 के विजेताओं और AAP के बीच का बन जाता है. ऐसी स्थिति में AAP 6 सीटें तक जीत सकती है (+5), कांग्रेस को चार (-4), शिरोमणि अकाली दल को एक (-1) और भाजपा को 2 सीटें मिल सकती हैं. यदि AAP का वोट शेयर 2022 की तुलना में 2.5 प्रतिशत कम हो जाता है, और 2019 में सभी सीटों के विजेता अपने वोट शेयर पर कायम रहते हैं, तो AAP पांच सीटें (+4) तक जीत सकती है, और कांग्रेस को चार (-4) सीटें मिल सकती हैं. अकाली दल 2 और भाजपा 2 सीटें जीत सकते हैं. संक्षेप में कहें तो, पंजाब में AAP को कांग्रेस की कीमत पर फायदा होने की संभावना है, जिससे भविष्य में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते और भी जटिल हो जाएंगे. (रिपोर्ट: अमिताभ तिवारी)

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