राष्ट्रीय लोक दल के बेहतर राजनीतिक भविष्य के लिए पार्टी प्रमुख जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी की 'साइकिल' छोड़कर भाजपा का 'कमल' थामने का फैसला कर लिया है. मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर जयंत का 'दिल जीत लिया' है. जब उनसे पत्रकारों ने पूछा कि क्या रालोद आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ेगी? तो जयंत का जवाब था, 'अब कोई कसर रह जाती है क्या? अब किस मुंह से इनकार करूं'.
सूत्रों की मानें तो समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी के सामने सीट बंटवारे का जो फार्मूला रखा था, वह उससे सहमत नहीं थे. इसलिए उन्होंने इंडिया ब्लॉक छोड़कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ जाने का फैसला किया. सपा ने रालोद को 7 सीटें देने की बात कही थी. लेकिन सपा का 'प्रत्याशी हमारा, सिम्बल तुम्हारा' दांव जयंत चौधरी की नाराजगी की बड़ी वजह बनी. सपा ने RLD को जो सात सीटें देने का वादा किया था उनमें मेरठ, कैराना, मुजफ्फरनगर, मथुरा, हाथरस, बागपत, बिजनौर और अमरोहा में से एक सीट शामिल थी.
सूत्रों के मुताबिक, सपा ने जयंत को इनमें से 4 सीटों कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मेरठ के लिए अपने प्रत्याशियों की सूची थमा दी थी. यानी इन सीटों पर सिम्बल तो राष्ट्रीय लोक दल का रहता, लेकिन प्रत्याशी समाजवादी पार्टी के. जयंत चौधरी को यह डील मंजूर नहीं थी. दूसरी ओर बीजेपी ने पूर्व पीएम चरण सिंह को भारत रत्न देकर जयंत के दिवंगत पिता अजीत सिंह का सपना पूरा कर दिया. इसके अलावा बीजेपी ने रालोद को बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट, एक राज्यसभा सीट और यूपी सरकार में प्रतिनिधित्व देने की पेशकश की.
रालोद और बीजेपी के साथ आने से रुकेगा जांट वोटों का बंटवारा
जयंत चौधरी को भाजपा की डील अच्छी लगी और उन्होंने एनडीए के साथ जाने का फैसला किया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय का करीब 17 फीसदी वोट है और लोकसभा की 27 सीटें इस क्षेत्र में पड़ती हैं. जयंत चौधरी की आरएलडी का वेस्ट यूपी में प्रभाव है. उनके साथ आने से भाजपा को इस क्षेत्र में फायदा होने की उम्मीद है. दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में जिन 16 सीटों पर हार मिली थी, उनमें से 7 पश्चिम यूपी की थीं. भाजपा मुरादाबाद मंडल की सभी 6 सीटें हार गई थी. वहीं, बीजेपी के साथ आने से रालोद को भी फायदा होगा.
दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोट अब तक भाजपा और रालोद के बीच बंटता था. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से जाट वोटों का बड़ा हिस्सा बीजेपी के पाले में आ गया. इसी का नतीजा रहा कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में रालोद को बागपत, मथुरा, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, कैराना, मेरठ जैसे अपने गढ़ में भी हार का सामना करना पड़ा. दोनों ही बार रालोद का एक भी सदस्य लोकसभा में नहीं पहुंच सका. भाजपा और रालोद के साथ आने से जाट वोटों का बंटवारा रुकेगा. इससे रालोद और बीजेपी दोनों की अपनी-अपनी सीटों पर स्थिति मजबूत होगी.