केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला का क्षत्रिय समाज को लेकर दिया बयान भारतीय जनता पार्टी के लिए गुजरात में मुश्किलें पैदा कर रहा है, वह राज्य जहां लगभग तीन दशकों से बीजेपी का कब्जा है. रूपाला ने पिछले महीने वाल्मिकी समाज के एक कार्यक्रम में कहा था कि अंग्रेजों ने हम पर राज किया. राजा भी उनके आगे झुक गए. उन्होंने (राजाओं ने) उनके (अंग्रेजों) साथ रोटियां तोड़ीं और अपनी बेटियों की शादी उनसे की. राजकोट से बीजेपी उम्मीदवार रूपाला ने कहा, 'दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ लेकिन वे झुके नहीं.'
रूपाला की माफी भी नहीं आई काम
रूपाला के बयान से दलित समुदाय खुश हुआ या नहीं, यह तो कहना मुश्किल है लेकिन इसने क्षत्रियों का नाराज जरूर कर दिया. समुदाय की महिलाएं बड़ी संख्या में सामने आईं और दावा किया कि रूपाला का बयान उनकी सत्यनिष्ठा पर हमला है. गुस्सा बढ़ने पर केंद्रीय मंत्री ने माफी मांगते हुए कहा, 'मैंने जो कहा उसका वह मतलब नहीं था. मुझे बेहद अफसोस है.' लेकिन इस माफी से क्षत्रियों की नाराजगी दूर नहीं हुई. उन्होंने इसे 'चुनावी चाल' बताया. समुदाय रूपाला की उम्मीदवारी से कम किसी भी चीज पर समझौता करने को तैयार नहीं है. उनका कहना है कि अगर रूपाला की उम्मीदवारी वापस नहीं ली गई तो समुदाय राजकोट सीट के लिए 400 उम्मीदवार खड़े करेगा और बीजेपी उम्मीदवार को हराने के लिए काम करेगा.
कांग्रेस ने भी उतारा उम्मीदवार
दिलचस्प बात यह है कि विरोध कर लोग कांग्रेस के समर्थन का भी दावा नहीं कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि रूपाला के बयान के तीन हफ्तों बाद भी कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की. इस हफ्ते पार्टी ने अपने पूर्व नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी, लेउवा पाटीदार नेता, को अपना उम्मीदवार घोषित किया. हालांकि धनानी ने पहले निजी कारणों से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था लेकिन विवाद के बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया. रूपाला और धनानी दोनों पड़ोसी अमरेली सीट के मूल निवासी हैं.
बहुत पुरानी है कड़वाहट
रूपाला एक कड़वा पटेल हैं जो पाटीदारों की एक उपजाति है. इस समुदाय का सौराष्ट्र में क्षत्रियों के साथ उतार-चढ़ाव भरा इतिहास रहा है, जो 80 के दशक की कांग्रेस की राजनीति से जुड़ा है. दिवंगत कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने राज्य में KHAM (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) समीकरण तैयार किया था जिसने पाटीदारों को सत्ता से बाहर कर दिया, जिससे दोनों समुदाय एक-दूसरे के खिलाफ हो गए.
अतीत में दोनों पक्षों के समुदाय के लोगों की हत्याओं ने उस दुश्मनी को और भी गहरा कर दिया. बीजेपी की ओर से व्यापक हिंदू पहचान को बढ़ावा देने से यह कड़वाहट कुछ हद तक कम तो हुई लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुई. बीजेपी यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है कि पुरानी खामियां दोबारा न उभरें लेकिन हालिया विवाद के कारण उसे चुनाव से पहले मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
राजपूत बोले- हम समझौता नहीं करेंगे
सौराष्ट्र से शुरू हुआ विरोध राज्य की हर सीट तक फैल गया है. समुदाय के नेता पोस्टर और सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं ताकि रूपाला की ओर से राजपूतों के कथित अपमान को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा सके. 3 अप्रैल को भाजपा के क्षत्रिय नेताओं और राजपूत नेताओं की एक समिति के बीच एक और असफल बैठक के बाद राजपूत कोऑर्डिनेशन कमेटी कन्वीनर करणसिंह चावड़ा ने कहा, 'हम समझौता नहीं करेंगे. हमें भाजपा से कोई समस्या नहीं है, हमारी एकमात्र मांग रूपाला को उम्मीदवार के रूप में हटाना है. उन्हें तय करना होगा कि उनके लिए कौन अधिक प्रिय है, गुजरात के 75 लाख समेत देश में रहने वाले 22 करोड़ राजपूत या रूपाला.'
बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं क्षत्रिय?
बीजेपी ने इस बात पर जोर दिया है कि रूपाला को नहीं हटाया जाएगा. केंद्रीय मंत्री जैसे वरिष्ठ नेता को वापस लेने से पार्टी को नुकसान होगा जिससे पार्टी हर कीमत पर बचना चाहती है. इससे गुजरात के 14 से 16 फीसदी पाटीदार मतदाता नाराज हो सकते हैं जिसका असर राज्य की सात लोकसभा सीटों पर पड़ेगा. इसके विपरीत क्षत्रिय वोट 5-6 प्रतिशत हैं और 26 सीटों में से किसी पर भी निर्णायक प्रभाव नहीं डालते हैं. गुजरात में 7 मई को मतदान होना है और रूपाला ने बढ़ते विवाद के बीच भी अपना कैंपेन जारी रखा है.