हैदराबाद लोकसभा सीट पर अब तक मुकाबला AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी और बीजेपी की उम्मीदवार माधवी लता के बीच था. लेकिन सोमवार को ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने भी हैदराबाद सीट से नामांकन कर सभी को चौंका दिया. अकबरुद्दीन फिलहाल चंद्रायनगुट्टा से विधायक हैं. तो क्या हैदराबाद सीट पर 'ओवैसी ब्रदर्स' आमने-सामने होंगे? सवाल यह भी है कि आखिर AIMIM ने हैदराबाद से दो कद्दावर उम्मीदवारों को मैदान में क्यों उतारा है? अकबरुद्दीन कुछ घंटे पहले तक तो अपने भाई असदुद्दीन के लिए प्रचार कर रहे थे लेकिन अब ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने हैदराबाद सीट से पर्चा भर दिया? कुछ लोग इसे अकबरुद्दीन ओवैसी की बगावत भी कह रहे हैं. आइए जानते हैं कि पूरा मामला आखिर है क्या
न ही अकबरुद्दीन बागी हुए हैं और न ही हैदराबाद सीट से वह असदुद्दीन ओवैसी को चुनौती देने वाले हैं. दरअसल AIMIM ने अकबरुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद सीट से बैकअप या वैकल्पिक उम्मीदवार के रूप में नामांकन कराया है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर इसकी क्या जरूरत पड़ी?
AIMIM ने क्यों कराया नामांकन?
किन्हीं कारणों से अगर असदुद्दीन ओवैसी का नामांकन खारिज हो जाता है तो AIMIM के बार बैकअप के तौर पर अकबरुद्दीन ओवैसी का नामांकन रहेगा और पार्टी का एक उम्मीदवार चुनाव में बना रहेगा. यह पहली बार नहीं है जब AIMIM ने चुनाव से पहले बैकअप उम्मीदवार का इस्तेमाल किया है. यह राज्य के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिला था. जहां अकबरुद्दीन ओवैसी ने चंद्रायनगुट्टा से अपना नामांकन दाखिल किया था, और बाद में उनके बेटे नूर उद्दीन औवेसी ने भी नामांकन दाखिल कर दिया था. बाद में बेटे ने अपना नामांकन वापस ले लिया था.
एक नजर हैदराबाद लोकसभा सीट पर
हैदराबाद लोकसभा सीट को ओवैसी परिवार का गढ़ माना जाता है. AIMIM यहां 1984 से लगातार जीतती आ रही है. इस सीट पर करीब 60 प्रतिशत मुसलमान तो करीब 40 प्रतिशत हिंदू आबादी है. हैदराबाद सीट पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के पिता दिवंगत सलाहुद्दीन ओवैसी 1984 से 1999 तक लगातार 6 चुनाव जीते. इसके बाद 2004 से लेकर 2019 तक, 4 बार से असदुद्दीन ओवैसी यहां से परचम लहरा रहे हैं. कुल मिलाकर 10 बार से लगातार इस सीट पर ओवैसी परिवार का कब्जा है.
सूरत में रद्द हुआ कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन
किसी उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने और पार्टी के पास वैकल्पिक उम्मीदवार न होने से चुनावी समीकरण किस तरह बदलता है इसका सबसे ताजा उदाहरण सोमवार को सूरत सीट पर देखने को मिला. सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने के बाद बाकी बचे 8 उम्मीदवारों ने भी अपने नाम वापस ले लिए हैं, जिसके बाद बीजेपी की निर्विरोध जीत हुई है. यहां से भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल हैं.
क्या होता है वैकल्पिक उम्मीदवार?
यदि चुनाव अधिकारियों द्वारा जांच के बाद मुख्य उम्मीदवार की उम्मीदवारी खारिज कर दी जाती है या उम्मीदवार की मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में वैकल्पिक उम्मीदवार पार्टी का मुख्य चेहरा बन जाता है. अधिकांश बड़ी राजनीतिक पार्टियों द्वारा एक विकल्प या एक कवरिंग उम्मीदवार को बैकअप के रूप में मैदान में उतारा जाता है. इस उम्मीदवार की उम्मीदवारी नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख तक ही रहती है.
जब मुख्य उम्मीदवार का नामांकन चुनाव कार्यालय द्वारा अप्रूव हो जाता है तो वैकल्पिक प्रत्याशी का हलफनामा अमान्य घोषित कर दिया जाता है. कुछ पार्टियां ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में ऐसे उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारती हैं, जहां कांटे की टक्कर होती है.
हैदराबाद में भी AIMIM ने अकबरुद्दीन ओवैसी का बैकअप या वैकल्पिक उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कराया है. ऐसा इसलिए कि किन्हीं कारणों से अगर पार्टी के मुख्य उम्मीदवार असदुद्दीन ओवैसी का नामांकन खारिज हो जाता है तो AIMIM के पास बैकअप के तौर पर अकबरुद्दीन ओवैसी का नामांकन रहेगा और पार्टी का एक उम्मीदवार चुनाव में बना रहेगा.
उम्मीदवार नामांकन भरते समय 3-4 सेट क्यों जमा करते हैं?
चुनाव आयोग के नियमों और विनियमों के अनुसार, उम्मीदवार को अपने नामांकन के लिए तीन से चार सेट जमा करने की आवश्यकता होती है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी जानकारी या दस्तावेज़ गुम न हो. हर सेट एक बैकअप के रूप में काम कर सकता है. एक सेट के खो जाने, खराब होने या कोई गलती पाए जाने की स्थिति में दूसरे सेट का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह संभावित रूप से उम्मीदवारों को अयोग्यता के जोखिम से बचा सकता है.