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पीएम मोदी 172, राहुल गांधी की 107 रैली... थम गया चुनाव प्रचार का शोर, जानें 75 दिन में किसने कितना लगाया जोर

आखिरी चरण की वोटिंग होना भले ही बाकी हो. लेकिन INDIA गठबंधन को जीत का पूरा भरोसा है और उसकी तरफ से बयान आया है कि जीत के 48 घंटे के अंदर ही प्रधानमंत्री चुन लिया जाएगा. उधर, चुनाव अभियान समापन के बाद बीजेपी अपने प्रदर्शन के आकलन में जुट गई है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की फाइल फोटो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की फाइल फोटो

75 दिन चला लोकसभा चुनाव अभियान आज गुरुवार को थम गया है. बड़ी-बड़ी रैलियों, चुनावी सभाओं और रोड शो का समापन हो गया. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ और प्रियंका गांधी ने रैलियां कीं तो वहीं ममता बनर्जी ने कोलकाता में 8 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब के होशियारपुर में अपनी आखिरी रैली की. यहां से पीएम मोदी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए. यहां पीएम  45 घंटे तक ध्यान लगाएंगे. 1 जून दोपहर 3 बजे को वहां से पीएम रवाना होंगे. 1 जून को उनकी सीट वाराणसी समेत 8 राज्यों और चंडीगढ़ की 57 सीटों पर वोटिंग है. इस वजह से विपक्ष उनके ध्यान को आचार संहिता के खिलाफ बताकर विरोध कर रहा है.

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सात चरणों वाले लंबे-चौड़े चुनावी कार्यक्रम के दौरान सभी पार्टियों के दिग्गजों ने खूब जो लगाया. इस दौरान पीएम मोदी ने 172 रैलियां और रोड शो किए. अमित शाह ने कुल 188 रैलियां, रोड शो किए. पार्टी के चुनावी कार्यक्रम भी इसमें जोड़ लिए जाएं तो संख्या 221 है. शाह ने पूरे चुनाव में हवाई मार्ग और सड़क मार्ग से 1 लाख 10 हजार किलोमीटर कवर किया.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 87 रैलियां की. वहीं विपक्ष की बात करें तो राहुल गांधी ने 107 रैलियां और रोड शो किए. अखिलेश यादव ने 69 रैलियां और 4 रोड शो किए, जबकि ममता बनर्जी ने 61 रैलियां और कई रोड शो और पदयात्राएं की हैं. 

नड्डा ने दो अप्रैल 2024 से 30 मई 2024 तक 23 राज्यों और चार केंद्र शासित राज्यों का दौरा किया. उन्होंने 125 लोकसभा सीटों पर प्रचार किया और 134 चुनावी सभा व रोड शो किए. नड्डा ने चुनाव में कुल 85,957 किलोमीटर की यात्रा की. वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस चुनाव में 101 चुनावी इवेंट किए. उन्होंने 94 रैलियां और सात रोड शो किए.

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वहीं कांग्रेस की बात करें तो राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और मल्लिकार्जुन खड़गे में से प्रियंका ने सबसे ज़्यादा रैलियां, रोड शो और मीडिया से बातचीत की है। प्रियंका गांधी 108 से ज़्यादा रैलियां, रोड शो किए. 100 मीडिया बाइट्स/टिकटैक और इंटरव्यू दिए. साथ ही 5 फुल प्रिंट इंटरव्यू दिए. वहीं खड़गे ने 100 से ज़्यादा रैलियां, 20 से ज़्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस और 50 से ज़्यादा इंटरव्यू दिए.

बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की बात करें तो उन्होंने महागठबंधन की साझा घोषणा के बाद 6 अप्रैल से कुल 251 जनसभाओं को संबोधित किया. वहीं बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने 551 छोटी-बड़ी जनसभाओं को संबोधित किया.

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अपनी जीत को लेकर INDIA गठबंधन आश्वस्त

आखिरी चरण की वोटिंग होना भले ही बाकी हो. लेकिन INDIA गठबंधन को जीत का पूरा भरोसा है और उसकी तरफ से बयान आया है कि जीत के 48 घंटे के अंदर ही प्रधानमंत्री चुन लिया जाएगा. जयराम रमेश ने ये बात कही है. उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा सीट जीतने वाले दल का ही प्रधानमंत्री होगा. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी 4 जून को लेकर बड़ा दावा किया है. उन्होंने दावा किया कि INDIA गठबंधन पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगा. ये सरकार समावेशी, राष्ट्रवादी और विकास के मुद्दे पर चलेगी. उन्होंने कहा कि 4 जून को वैकल्पिक सरकार का जनादेश आएगा.

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अपने प्रदर्शन के आकलन में जुटी बीजेपी

उधर, चुनाव अभियान समापन के बाद बीजेपी अपने प्रदर्शन के आकलन में जुट गई है. बीजेपी अलाकमान ने देश भर से मिले फीडबैक के आधार पर उम्मीद है कि एक बार फिर मोदी सरकार बनने जा रही है. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक पार्टी को कुछ राज्यों में 2019 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. इन राज्यों में ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश शामिल हैं. इन राज्यों में लोक सभा की 244 सीटें हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों को इनमें से 94 सीटों पर जीत मिली थी. 

तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में बीजेपी पिछली बार खाता नहीं खोल सकी थी, जबकि इस बार पीएम मोदी ने वहां धुआंधार प्रचार किया है. बीजेपी ने इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन भी किया है. जबकि बीजेपी का आकलन है कि कुछ राज्यों में सहयोगी दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इन राज्यों में महाराष्ट्र और बिहार का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है. जबकि राजस्थान और कर्नाटक में 2019 की तुलना में बीजेपी की कुछ सीटें कम हो सकती हैं. कर्नाटक में बीजेपी ने पिछले बार 28 में से 25 सीटें जीतीं थीं और एक निर्दलीय सांसद का उसे साथ मिला था. जबकि महाराष्ट्र की 48 में से बीजेपी ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें से उसने 23 सीटें जीती थीं. बिहार में पिछली बार बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं. जहां बीजेपी को खुद अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है, वहीं उसके नेताओं को लगता है कि सहयोगी दलों को कुछ सीटों पर नुकसान हो सकता है.

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कैसा रहा बीजेपी का चुनाव अभियान 

जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन के साथ बीजेपी का आत्मविश्वास चरम पर पहुंच गया. बीजेपी ने उद्घाटन कार्यक्रम में विपक्ष के बहिष्कार को मुद्दा बनाया. बाद में कई दूसरे दलों से नेता इसी को मुद्दा बना कर अपना पार्टियां छोड़ बीजेपी में आए. इससे बीजेपी को देश भर में राम मंदिर मुद्दे को सेंटर स्टेज पर लाने में मदद मिली. बीजेपी ने चुनाव अभियान मोदी की गारंटी से शुरू किया. पार्टी के घोषणापत्र में भी मोदी की गारंटी की बात प्रमुखता से कही गई. बीजेपी के तमाम नेता एनडीए के 400 पार जाने की बात उठाते रहे. सामाजिक रक्षा और गरीब कल्याण से जुड़े मुद्दों का विस्तार से रैलियों आदि में जिक्र किया गया. लेकिन फिर बीजेपी ने प्रचार अभियान की दिशा को मोड़ दिया. 

पीएम मोदी ने वैल्थ रिडिस्ट्रीब्यूशन के कांग्रेस के वादे को बड़ा मुद्दा बनाया और कांग्रेस के घोषणापत्र की तुलना मुस्लिम लीग से कर दी. इसके बाद बीजेपी का चुनाव अभियान बेहद आक्रामक हो गया. सैम पित्रोदा के विरासत टैक्स के बयान ने बीजेपी को हावी होने का मौका दे दिया. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के पुराने बयान का पीएम मोदी ने बार-बार जिक्र किया जिसमें उन्होंने संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहले हक की बात कही थी. पीएम मोदी ने कहा कि ये मां-बहनों का मंगलसूत्र भी नहीं बचने देंगे. उन्होंने पूछा कि क्या लोगों की मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? विपक्ष के नेताओं ने कहना शुरू किया कि बीजेपी 400 पार की बात इसलिए कर रही है क्योंकि वह संविधान बदल कर दलित आदिवासियों का आरक्षण खत्म करना चाहती है. 

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हर दल के अपने-अपने दावे

बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाया और कहा कि किस तरह से शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर वहां से एससी-एसटी आरक्षण खत्म करने की कोशिश हो रही है. इस बीच पश्चिम बंगाल में हाई कोर्ट का फैसला आया जिसमें मुस्लिम ओबीसी के आरक्षण को खत्म कर दिया गया. इसने भी बीजेपी को आक्रामक होने का मौका दिया. प्रचार अभियान समाप्त होते-होते शुरुआती मुद्दे गौण होते नजर आए. शुरुआती चरणों में कम मतदान ने भी बीजेपी को चौकन्ना कर दिया. इससे विपक्षी पार्टियों ने दावे करने शुरू कर दिए कि एनडीए बहुमत हासिल नहीं कर सकेगा. बहरहाल, अब जनता का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है. चार जून को पता चलेगा कि किसके दावे में कितना दम है.

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