शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कर दिया है कि महाविकास अघाड़ी के भीतर सीट बंटवारे पर अब कोई बातचीत नहीं होगी. उद्धव ने कहा कि सांगली सीट उनकी पार्टी की है, और चंद्रहार पाटिल को यहां से उम्मीदवार घोषित किया. लेकिन कांग्रेस सांगली सीट पर समझौता करने के मूड में नहीं है. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के पोते विशाल पाटिल सांगली से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, जिनके परिवार ने कई वर्षों तक इस सीट से चुनाव लड़ा और जीता.
एक ही सीट पर एमवीए में शामिल दो दलों के उम्मीदवार खड़े हो गए हैं. महाविकास अघाड़ी के लिए यह स्थिति चिंताजनक है. क्योंकि महाराष्ट्र की अन्य सीटों के लिए भी इससे दिक्कतें पैदा होंगी. आखिर कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) दोनों सांगली पर दावा क्यों कर रहे हैं? इसके पीछे कई कारण हैं...
कोल्हापुर कनेक्शन
समस्या कोल्हापुर सीट की वजह से पैदा हुई. शिवसेना (यूबीटी) का कहना है कि वह उन सीटों की हकदार है जिन पर उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में लड़ाई लड़ी और जीती. उद्धव ठाकरे की पार्टी का तर्क यह है कि उसे मुंबई और कोंकण क्षेत्र के आसपास के इलाकों में अच्छा जनसमर्थन हासिल है. इस बीच, कांग्रेस ने कहा कि वह विदर्भ क्षेत्र में मजबूत है और इसलिए उसे वहां सीटें मिलनी चाहिए. इसलिए, अमरावती और रामटेक सीटें जो 2019 में शिवसेना ने लड़ीं, कांग्रेस को दे दी गईं.
शिवसेना (यूबीटी) मुंबई की 4 सीटों के अलावा कोंकण रीजन में, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, रायगढ़, ठाणे, कल्याण और पालघर सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उद्धव ठाकरे को विदर्भ में कुछ सीटों पर कांग्रेस के साथ समझौता करने में कोई आपत्ति नहीं है. कोल्हापुर सीट पर उद्धव की पार्टी चाहती थी कि कोल्हापुर शाही परिवार के मुखिया और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज शाहू महाराज छत्रपति उसके सिंबल पर चुनाव लड़ें.
लेकिन कांग्रेस ने उन्हें आश्वस्त किया कि अगर वह कांग्रेस के टिकट पर लड़ेंगे तो उनके जीतने की संभावना बेहतर होगी. इससे शिवसेना (यूबीटी) नाराज और चिंतित हो गई. पश्चिमी महाराष्ट्र में, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अधिकतम सीटों का दावा किया है, और शिवसेना (यूबीटी) को चिंता है कि इस क्षेत्र में उसके पास कोई अच्छी सीटें नहीं बचेंगी. इस प्रकार, उसने सांगली सीट पर अपना मजबूत दावा ठोक दिया है.
सांगली पर क्या है उद्धव सेना और कांग्रेस का तर्क
विशाल पाटिल ने 2019 में कांग्रेस के टिकट पर सांगली से चुनाव नहीं लड़ा था. वह तब कांग्रेस की सहयोगी स्वाभिमानी पक्ष के साथ थे. उद्धव सेना का कहना है कि सांगली सीट पाने के लिए यह पर्याप्त कारण है, क्योंकि कांग्रेस ने पिछली बार यहां चुनाव नहीं लड़ा था. लेकिन कांग्रेस का कहना है कि चूंकि विशाल पाटिल यहां से पिछली बार भी चुनाव लड़े थे, और अब वह उसके साथ हैं. इसलिए सांगली पर कांग्रेस का हक बनता है.
कांग्रेस सांगली में 1957 से लगातार जीत रही है, जिसमें 2009 भी शामिल है, जब प्रतीक पाटिल जीते थे और उन्हें यूपीए-2 शासन के दौरान मंत्री बनाया गया था. लेकिन पार्टी 2014 के बाद से यह सीट भारतीय जनता पार्टी से हार रही है. संजय काका पाटिल यहां से दो बार के सांसद हैं, जो 2014 में एनसीपी से भाजपा में शामिल हुए थे. 2019 में, भाजपा के संजय पाटिल ने 42 प्रतिशत वोट शेयर के साथ विशाल पाटिल के खिलाफ सीट जीती.
प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी ने 25 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था. दूसरी ओर, विशाल पाटिल को 28.96 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 3.4 लाख वोट मिले थे. 2014 में भी, संजय पाटिल ने 58.43 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भारी बहुमत से जीत हासिल की थी. प्रतीक पाटिल को सिर्फ 35 फीसदी वोट मिले थे. इस प्रकार, शिवसेना (यूबीटी) का तर्क है कि कांग्रेस ने सीट पर अपना अधिकार खो दिया है. क्योंकि उसने 2019 में अपने सहयोगी को चुनाव लड़ने दिया था और इस बार, अगर सेना कोल्हापुर के बजाय सांगली के लिए दावा करती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
क्या सांगली सीट ने एमवीए में दरार पैदा कर दी है?
दूसरी ओर कांग्रेस को लगता है कि सांगली उसका मुख्य क्षेत्र है और सोनिया गांधी ने कहा है कि जहां कांग्रेस जीत सकती है या जीत चुकी है, 2014 और 2019 में हार के बावजूद उन सीटों को उसे नहीं छोड़ना चाहिए. सांगली में छह विधानसभा क्षेत्र हैं: दो भाजपा के पास, दो कांग्रेस के पास, एक राकांपा (शरद पवार) के पास, और एक सेना के पास है. कांग्रेस का कहना है कि वह सांगली में मजबूत है, इसलिए सीट तो मिलनी ही चाहिए. शिवसेना (यूबीटी) को लगता है कि सांगली से उसका उम्मीदवार बेहतर है और उसे राकांपा का समर्थन प्राप्त है.
ऐसा प्रतीत होता है कि सांगली ने एमवीए में दरार पैदा कर दी है. लेकिन ऐसा भी लगता है कि गठबंधन टूटा नहीं है. हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में इंडिया गुट की बड़ी बैठक हुई, जिसमें उद्धव ठाकरे मौजूद थे. उद्धव ठाकरे शिवाजी पार्क में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन के समय राहुल गांधी के साथ मौजूद थे. यहां तक कि शरद पवार का पक्ष भी यह सुनिश्चित कर रहा है कि सांगली में एमवीए दलों के बीच कोई दोस्ताना लड़ाई न हो. कुल मिलाकर, कांग्रेस और उद्धव सेना के बीच सांगली सीट को लेकर दरार दिख रही है.