धारा 370 से कश्मीर को आजादी मिलने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए. सोमवार को कश्मीर की बारामूला सीट पर वोटिंग हुई. खास बात ये कि यहां के वोटर्स ने दोपहर में ही साल 2019 में हुए मतदान का रिकॉर्ड तोड़ दिया था. दोपहर एक बजे तक ही बारामूला में 34.69 फीसदी वोटिंग हो चुकी थी, साल जबकि 2019 में यहां 34.60 फीसदी वोटिंग हुई थी. जम्मू-कश्मीर का शाम को सामने आया टोटल वोटिंग टर्न आउट 55 फीसदी से अधिक दर्ज किया गया है और इस तरह घाटी में 40 सालों का रिकॉर्ड टूट गया है.
लगातार कई सालों तक आतंक, दहशत और दर्द की इंतहा सहते, दुख की काली रात में गुजारा करने वाले कश्मीरियों ने सोमवार को वोटिंग के लिए उत्साह दिखाकर ये साबित कर दिया कि अब वह डर की कैद से आजाद हैं और लोकतंत्र की खुशनुमा सुबह देखने बाहर निकले हैं.
सुबह से ही बूथ पर लगने वाली लंबी लाइनें लोकतंत्र के इस महोत्सव में कश्मीर की खुशी बयां कर रही थी. बीते दिनों आजतक को दिए इंटरव्यू में पीएम मोदी ने जब श्रीनगर में वोटिंग का जिक्र किया था तो उन्होंने कहा कि 'श्रीनगर में वोटिंग इन चुनावों में मेरे लिए सबसे संतोष का पल' था. बता दें कि श्रीनगर में चौथे चरण में वोटिंग हुई थी, लेकिन जब सोमवार को बारामूला में पांचवें चरण की वोटिंग में रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हुई तो राजनीतिक पंडितों के लिए भी यह विश्लेषण की वजह बन गई कि आखिर क्या वजह रही कि लोग वोटिंग के लिए उत्साही नजर आए
विश्लेषकों की मानें तो कुछ खास फैक्टर हैं, जो नजर आ रहे हैं.
1. बेहतर सुरक्षा माहौलः कश्मीर में तीन दशकों में पहली बार ऐसा हुआ कि वोटिंग के दौरान न तो कोई आतंकी हिंसा की घटना हुई और न ही वोटिंग को लेकर दहशतगर्दों की ओर से कोई बॉयकॉट घोषित नहीं किया गया. ये दोनों हर बार एक बड़ी वजह होती थी कि आम आदमी घर से निकलने और वोट करने से डरता था.
2. आर्टकल 370 में बदलाव का परिणामः अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, पिछले 5 वर्षों में राजनीतिक गतिविधियां देखी गईं. इसके पहले चुनावी राजनीति में अचानक रुकावट आ गई थी, लोग और खास तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ता, कार्यकर्ता चुनाव की वापसी का इंतजार कर रहे थे, ऐसे में उन्होंने बड़े पैमाने पर भाग लिया.
3. नौकरशाही से त्रस्तः लोग नौकरशाही नियंत्रण के बारे में शिकायत कर रहे हैं. सरकारी कार्यालयों तक उनकी पहुंच सीमित हो रही है और इस प्रकार उनके दैनिक मुद्दों, समस्याओं का समाधान उस तरह से नहीं हो रहा है जिस तरह से लोग एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चाहते हैं. जहां उनका निर्वाचित प्रतिनिधि सत्ता में होगा और वे उसके पास जा सकते हैं और अपने काम के लिए अपील कर सकते हैं.
4. इंजीनियर रशीद फैक्टरः यूएपीए के तहत जेल में बंद, लंगेट के फायर ब्रांड राजनेता, अब्दुल रशीद, जिन्हें इंजीनियर रशीद के नाम से भी जाना जाता है. वह बहुत ही सफल अभियान चलाने में कामयाब रहे. उनके बेटे ने प्रचार किया और लोगों से भारी प्रतिक्रिया मिली. खासकर युवाओं की भीड़ भारी मात्रा में उनके समर्थन में पहुंची. उनके साथ सहानुभूति फैक्टर काम कर गया. कई इलाके ऐसे भी थे जो अब तक वोटिंग का बहिष्कार करते थे, लेकिन इस बार उन्होंने भी बाहर निकलकर वोटिंग की है.