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क्या ममता बनर्जी के दांव ने सेट कर दिया नीतीश-अखिलेश-AAP के लिए मंच... अब प्रेशर में आ जाएगी कांग्रेस?

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में एकला चलो का नारा दे दिया है तो इसे बिहार में नीतीश कुमार और यूपी में अखिलेश यादव के लिए मंच सेट करने की तरह भी देखा जा रहा है. जानिए कैसे.

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ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन को दिया झटका
ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन को दिया झटका

पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने एक ऐलान किया और सियासी गलियारों में हलचल गई. ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में विपक्षी इंडिया गठबंधन को बड़ा झटका देते हुए एकला चलो का नारा दे दिया है. ममता ने दो टूक कह दिया है कि टीएमसी सूबे की सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी. ममता बनर्जी के इस दांव के बाद अब पंजाब में आम आदमी पार्टी ने भी इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ने के संकेत दे दिए हैं. सीएम भगवंत मान ने दावा किया है कि आम आदमी पार्टी सूबे की सभी 13 सीटें जीतेगी. बात अब इसे लेकर भी होने लगी है कि चुनाव आते-आते इंडिया गठबंधन के छत्ते में अब कहां-कहां कितनी पार्टियां रहती हैं.

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सवाल हिंदी पट्टी के दो प्रमुख राज्यों, दो प्रमुख दलों के दो प्रमुख नेताओं को लेकर भी उठ रहे हैं. इंडिया गठबंधन को आकार देने में लीड रोल निभाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तेवर भी कांग्रेस को लेकर तल्ख हैं. लालू यादव के साथ उनकी बिगड़ती केमिस्ट्री और पाला बदल फिर से केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले एनडीए में जाने की अटकलें भी हैं. लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भी अपनी लकीर खींचे खड़े हैं. ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या ममता बनर्जी के इस एकला चलो दांव ने नीतीश और अखिलेश जैसे नेताओं के लिए भी मंच सेट कर दिया है?

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नीतीश और अखिलेश के लिए सेट हुआ कौन सा मंच

अब सवाल यह भी उठता है कि ममता के इस दांव ने आखिर नीतीश कुमार और अखिलेश यादव जैसे नेताओं के लिए कैसा मंच सेट कर दिया? सवाल वाजिब भी है. पश्चिम बंगाल और यूपी-बिहार की सियासत में, सियासी प्रवृत्ति में वोटिंग पैटर्न में बहुत भिन्नताएं हैं. लेकिन एक समानता यह है कि इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. कांग्रेस तीनों ही राज्यों में अधिक सीटें चाहती है. उसकी मंशा गठबंधन सहयोगियों के सहयोग से इन राज्यों में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने, सीटों की संख्या बढ़ाने की है. ममता बनर्जी के ऐलान से कांग्रेस की रणनीति को झटका लगा है.

इंडिया गठबंधन की बैठक में घटक दलों के प्रमुख नेता (फाइल फोटोः पीटीआई)
इंडिया गठबंधन की बैठक में घटक दलों के प्रमुख नेता (फाइल फोटोः पीटीआई)

अब कांग्रेस के सामने सीट शेयरिंग में अधिक सीटें पाने के साथ ही गठबंधन सहयोगियों को साथ बनाए रखने की चुनौती भी होगी. कांग्रेस की बारगेन पावर कम होगी तो वहीं नीतीश और अखिलेश समेत अन्य राज्यों में मजबूत आधार रखने वाली पार्टियों के नेता भी मजबूती से अपनी शर्तें रखेंगे. ममता का ऐलान कांग्रेस के लिए इस संदेश की तरह है कि अगर वह गठबंधन में रहना चाहती है तो फिर वह उन दलों की शर्तों पर चले जो दल वहां मजबूत है. अब कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार और अखिलेश यादव जैसे नेता जो अपने-अपने राज्यों में मजबूत जनाधार रखते हैं, उनके लिए कांग्रेस को उसकी सियासी जमीन दिखाने और अपने हिसाब से सीटें देने, अपनी शर्तें मनवाने के लिए माहौल अनुकूल हो गया है.

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बिहार-यूपी में कितनी सीटें मांग रही है कांग्रेस

दरअसल, बिहार से लेकर यूपी तक कांग्रेस की अपनी डिमांड है. कांग्रेस ने बिहार की 40 में से 10 लोकसभा सीटों पर दावा किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सूबे में महज एक सीट पर जीत मिली थी. यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं और कांग्रेस प्रदेश में 25 सीटें मांग रही है. यूपी कांग्रेस के नेता सपा के बराबर सीटें चाहते हैं और यह चाहते हैं कि सीट शेयरिंग का आधार 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन बने. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी सूबे में गठबंधन से लेकर सीट शेयरिंग तक, अपनी लकीर खींच रखी है.

सपा 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाकर सीट शेयरिंग चाहती है. अखिलेश पहले ही यह साफ कर चुके हैं कि सपा 65 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. पार्टी की रणनीति साफ है- गठबंधन सहयोगियों जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और कांग्रेस को 15 सीटों पर एडजस्ट करने की. सपा और आरएलडी के बीच सात सीटों पर सहमति बन गई है. आरएलडी के कोटे में सात सीटें जाने के बाद अब कांग्रेस के लिए आठ सीटें हीं बचीं. सपा ने जिस तरह से यह शर्त रख दी है कि सीटों के साथ ही उम्मीदवारों के नाम भी बताइए, हम देखेंगे वहां संबंधित उम्मीदवार जीत सकता है या नहीं. सपा की कड़ी शर्तें इस बात का इशारा मानी जा रही हैं कि अखिलेश यादव कांग्रेस को एक दर्जन से अधिक सीटें देने के मूड में नहीं हैं.

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सीट शेयरिंग पर कांग्रेस से सीधी बात से बच रही जेडीयू

नीतीश कुमार ने सीट शेयरिंग में हो रही देर और पांच राज्यों में चुनाव के समय ठप पड़ी गठबंधन की गतिविधियों के लिए भी कांग्रेस पर निशाना साधा था. कांग्रेस को लेकर नीतीश की तल्खी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सीट शेयरिंग को लेकर भी जेडीयू सीधे बात करने से परहेज कर रही है. कांग्रेस से सीट शेयरिंग पर बात करने की जिम्मेदारी लालू यादव की आरजेडी को सौंपी गई है. ममता बनर्जी के इंडिया गठबंधन से एग्जिट के ऐलान के बाद जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने बिहार में गठबंधन के घटक दलों के बीच सबकुछ ठीक होने का दावा तो किया लेकिन साथ ही यह भी जोड़ दिया कि कांग्रेस और लेफ्ट से सीटों पर आरजेडी को बात करनी है.  

पंजाब में सभी सीटों पर लड़ने की तैयारी में AAP

बंगाल के बाद अब आम आदमी पार्टी भी पंजाब में गठबंधन को झटका दे सकती है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी सूबे की सभी 13 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है. कहा तो यह भी जा रहा है कि पंजाब कांग्रेस की ओर से अकेले चुनाव लड़ने को लेकर शीर्ष नेतृत्व के पास एक प्रस्ताव भेजा गया था जिस पर अरविंद केजरीवाल मुहर भी लगा चुके हैं. अब सीएम मान के ताजा बयान को भी इसी बात का संकेत माना जा रहा है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी भी सीट शेयरिंग को लेकर अड़ियल रुख का आरोप लगाते हुए इंडिया गठबंधन को झटका दे सकती है.

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राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटोः पीटीआई)
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटोः पीटीआई)

दरअसल, नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन में किसी बड़ी भूमिका की उम्मीद थी. नीतीश ने अलग-अलग राज्यों के दौरे किए, अलग-अलग दलों के नेताओं से मुलाकात की और कांग्रेस को भी शामिल करते हुए एक नए गठबंधन का ताना-बाना बुना. पटना में अलग-अलग दलों के नेताओं का जुटान हुआ और गठबंधन की गाड़ी आगे बढ़ गई. पटना की बैठक में जहां नीतीश कुमार इस कवायद के ड्राइविंग फोर्स थे तो वहीं बेंगलुरु में हुई दूसरी बैठक से ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस आ गई.

संयोजक की बात आई तो गठबंधन ने एक संयोजक बनाने की जगह सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले पर कोऑर्डिनेशन कमेटी बना दिया. पीएम फेस की बात आई तो ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर दिया. इन सबको लेकर नीतीश कुमार नाराज बताए जा रहे हैं. अब बंगाल से लेकर यूपी और पंजाब तक जिस तरह के हालात बन रहे हैं, इंडिया गठबंधन की तस्वीर क्या रहती है? यह देखने वाली बात होगी.

इंडिया गठबंधन की रार बीजेपी के लिए फायदेमंद कैसे

लोकसभा चुनाव करीब हैं और इंडिया गठबंधन के घटक दलों की यह रार आत्मघाती साबित हो सकती है.अबकी बार, चार सौ पार के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार बीजेपी की ओर से पार्टी के ट्रंप कार्ड पीएम मोदी खुद मोर्चे पर हैं. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के जरिए पीएम मोदी और बीजेपी ने यूनिवर्सल हिंदू वोट बैंक की अपनी पॉलिटिक्स मजबूत करने की कोशिश की है,  कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और एक करोड़ गरीबों के लिए सूर्योदय योजना का ऐलान करके यह भी साफ कर दिया कि फोकस गरीब पर है. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान से पिछड़े और अति पिछड़ा के साथ ही दलित समुदाय के मतदाताओं तक भी यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की गई है.

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दलित और आदिवासियों को फोकस कर सरकार 24 हजार करोड़ रुपये के बजट से पीएम जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान चला रही है. इस अभियान के तहत कमजोर आदिवासी वर्गों के लिए सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का लक्ष्य सरकार ने रखा है. सरकार का फोकस शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, बिजली, सड़क और दूरसंचार कनेक्टिविटी के साथ ही स्थायी आजीविका के अवसरों तक आदिवासियों की बेहतर पहुंच सुनिश्चित करके उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने पर है.

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