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राजधानी की हॉट लोकसभा सीट नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली से मनोज तिवारी के खिलाफ कौन? सियासी समीकरण से इतिहास तक.. जानें सबकुछ

उत्तर पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक बना हुआ है. राष्ट्रीय राजधानी का एक हिस्सा होने के बावजूद, सामाजिक और ढांचागत विकास परियोजनाओं की कमी ने इस इलाके को निराशा किया है और उपेक्षा के घेरे में छोड़ दिया है. उत्तर पूर्वी दिल्ली के सियासी रण में अभी भी सस्पेंस बना हुआ है क्योंकि मौजूदा बीजेपी सांसद मनोज तिवारी बिना किसी चुनौती के खड़े हैं.

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बीजेपी सांसद मनोज तिवारी (फाइल फोटो)
बीजेपी सांसद मनोज तिवारी (फाइल फोटो)

अगले महीने शुरू होने जा रहे लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में गर्मी के साथ सियासी सरगर्मी भी बढ़ी हुई है. साल 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद, उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. इस दौरान दोनों पक्षों को भारी नुकसान झेलना पड़ा था और इलाके में सामाजिक और सांप्रदायिक विभाजन की खाई गहरी होती नजर आई. शहर का यह इलाका अपने अतीत के निशान और भविष्य की चिंता दोनों को झेलते हुए, एक और चुनावी मुकाबले के लिए तैयार है. 

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सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील इलाकों में से एक, उत्तर पूर्वी दिल्ली में लगभग 21 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है. ऐसे आंकड़ों के बावजूद, निर्वाचन क्षेत्र सांप्रदायिक आधार पर बंटा हुआ नजर आता है. ऐसे इलाकों में मुस्तफाबाद, सीलमपुर, करावल नगर और घोंडा जैसी जगहों के नाम शामिल हैं. 

हालांकि, ऐसे वक्त में भी, उत्तर पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक बना हुआ है. राष्ट्रीय राजधानी का एक हिस्सा होने के बावजूद, सामाजिक और ढांचागत विकास परियोजनाओं की कमी ने इस इलाके को निराशा किया है और उपेक्षा के घेरे में छोड़ दिया है. उत्तर पूर्वी दिल्ली के अधिकांश हिस्से में अनधिकृत कॉलोनियां और गांव शामिल हैं, जिन्हें उचित विकास की सख्त जरूरत है. इसके अलावा, उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीमा उत्तर प्रदेश से लगती है. इसके निवासियों में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा की प्रवासी आबादी शामिल है. 

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दस विधानसभा सीटों - बुराड़ी, तिमारपुर, सीमापुरी, रोहतास नगर, सीलमपुर, घोंडा, बाबरपुर, गोकलपुर, मुस्तफाबाद और करावल नगर को शामिल करते हुए, उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय इलाका अपनी चुनौतियों के साथ एक चुनावी हॉटस्पॉट रहा है. यह इलाका राजनीतिक ध्यान, सांप्रदायिक विभाजन और विकास की बेताब मांग के अहम मोड़ पर खड़ा है. कई सामाजिक-राजनीतिक ताकतों के सक्रिय होने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस इलाके में सत्ता के मैदान में कैसी जंग सामने आती है. 

चुनाव के साथ कैसे बदलता रहता है उत्तर-पूर्वी दिल्ली का सियासी मिजाज

उत्तर पूर्वी दिल्ली इलाका, राष्ट्रीय राजधानी का सबसे बड़ा जिला है, जिसमें कई समुदायों से संबंधी आबादी निवास करती है. इलाके में अनुसूचित जाति (SC) 16.3 फीसदी, मुस्लिम 20.74 फीसदी, ब्राह्मण 11.61 फीसदी, वैश्य (बनिया) 4.68 फीसदी, पंजाबी 4 फीसदी, गुर्जर 7.57 फीसदी और ओबीसी 21.75 की हिस्सेदारी रखते हैं.

उत्तर पूर्वी दिल्ली के डायनेमिक पॉलिटिकल सिनेरियो में पिछले कुछ सालों में अहम बदलाव नजर आए हैं. 2009 के लोकसभा चुनावों में, जेपी अग्रवाल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के बीएल शर्मा प्रेम के खिलाफ 59.03 फीसदी वोटों के साथ भारी बढ़त हासिल की थी. इस दौरान बीजेपी सिर्फ 33.71 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीएसपी के हाजी दिलशाद 5.02 फीसदी से पीछे थे. हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में एक अहम मोड़ आया, जिसमें बीजेपी के मनोज तिवारी को 45.38 फीसदी वोट मिले, आम आदमी पार्टी के आनंद कुमार को 34.41 फिसदी वोट मिले और कांग्रेस केवल 16.05 फीसदी पर रह गई. 

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Delhi north east bjp congress

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का रुख मजबूत हुआ और मनोज तिवारी को 53.86 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस की शीला दीक्षित 28.83 फीसदी के साथ पार्टी को कुछ हद तक लड़ाई में वापस लाने में कामयाब रहीं, हालांकि आम आदमी पार्टी को केवल 13.05 फीसदी वोट मिल सका. 

2015 का विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए अहम साबित हुआ क्योंकि उसने 51.94 फीसदी के साथ प्रचंड जीत हासिल की और बीजेपी को 31.18 फीसदी पर छोड़ दिया. इस दौरान कांग्रेस 11.19 फीसदी वोट के साथ और भी पिछड़ गई. यह सिलसिला 2020 के विधानसभा चुनावों में भी जारी रहा और आम आदमी पार्टी 53.54 फीसदी के साथ आगे रही और बीजेपी 39.08 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर रही.

दूसरी तरफ, 2017 में दिल्ली नगर निगम (MCD) चुनावों में बीजेपी 37.00 फीसदी वोट शेयर के साथ आगे रही, आम आदमी पार्टी 25.58 फीसदी के साथ पीछे रही और कांग्रेस 21.48 फीसदी वोट हासिल हुआ. हालांकि, 2022 के एमसीडी चुनावों में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच क्रमशः 35.21 फीसदी और 39.18 फीसदी वोटों के साथ कॉम्पटीशन बढ़ा है.

North east delhi lok sabha election 2024

मनोज तिवारी बीजेपी के लिए क्यों जरूरी?

दो बार के सांसद मनोज तिवारी दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सात सांसदों में से सिर्फ एक सिटिंग सांसद हैं, जिन्हें आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया है. दूसरी तरफ, डॉ. हर्षवर्द्धन, मीनाक्षी लेखी, रमेश बिधूड़ी, परवेश साहिब सिंह वर्मा, गौतम गंभीर और हंसराज हंस जैसी प्रमुख बीजेपी हस्तियों को चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया. लेकिन मनोज तिवारी को टिकट मिलने से यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसी कौन सी वजहें हैं, जिन्होंने उनका समर्थन किया है?

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मनोज तिवारी एक अनुभवी भोजपुरी अभिनेता और गायक के रूप में उनकी प्रसिद्ध स्थिति के कारण बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी सम्मानित किया जाता है. 

बीजेपी को ऐतिहासिक रूप से दिल्ली में पंजाबी-बनिया समुदाय की ओर झुकाव रखने वाली पार्टी के तौर पर देखा गया है. हालांकि, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के रूप में भी मनोज तिवारी ने इस परंपरा को तोड़ा था और प्रवासी मतदाताओं को पार्टी के बैनर तले खींच लिया. दिल्ली में आम आदमी पार्टी का विस्तार बीजेपी के लिए एक बढ़ी हुई चिंता के रूप में उभरा है.

आने वाले दिनों में बीजेपी मनोज तिवारी को अरविंद केजरीवाल के संभावित प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है. पार्टी एक ऐसे नेता की तलाश में है, जो पूरी दिल्ली की आबादी के साथ जुड़ सके और पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर पॉजिटिव असर डाल सके. अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों के निवासियों के बीच एक बेहद लोकप्रिय व्यक्ति होने के नाते मनोज तिवारी निश्चित रूप से फिट बैठते हैं. इसलिए, 2025 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी के लिए मनोज का नेतृत्व खास होने वाला है. 

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किसके-किसके बीच हो सकती है टक्कर?

उत्तर पूर्वी दिल्ली के सियासी रण में अभी भी सस्पेंस बना हुआ है क्योंकि मौजूदा बीजेपी सांसद मनोज तिवारी बिना किसी चुनौती के खड़े हैं. लोकसभा चुनाव से पहले AAP के साथ गठबंधन करने के बाद कांग्रेस पार्टी अभी भी ऐसे उम्मीदवारों की तलाश में है, जो मनोज तिवारी को दमदार चुनौती दे सकें.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और शीला दीक्षित कैबिनेट में पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली पहले संभावित दावेदार हैं. उत्तर पूर्वी दिल्ली से सटे गांधी नगर निर्वाचन क्षेत्र के रहने वाले लवली को उनके नेतृत्व की स्थिति के कारण पार्टी से अच्छा समर्थन प्राप्त है. 

लिस्ट में दूसरे नंबर पर पूर्वी दिल्ली से दो बार सांसद और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित की मनोज तिवारी से हार के बावजूद, वह 29 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रहीं. इसलिए, खासकर निर्वाचन क्षेत्र में ब्राह्मण वोटर्स की बड़ी आबादी को देखते हुए, शीला दीक्षित की विरासत अभी भी प्रभावी हो सकती है.

इस अलावा संभावित एक और संभावित नाम चौधरी अनिल कुमार हैं, जो दिल्ली कांग्रेस के पूर्व युवा अध्यक्ष और पटपड़गंज के पूर्व विधायक हैं. निर्वाचन क्षेत्र के लगभग 20 गांवों में अच्छी खासी गुर्जर आबादी होने की वजह से उनकी जाति और युवा जीत का फैक्टर हो सकते हैं.

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आखिरी लेकिन काफी अहम दो संभावित वाइल्डकार्ड उम्मीदवार हैं, NSUI के राष्ट्रीय प्रभारी कन्हैया कुमार और लोकप्रिय भोजपुरी गायिका नेहा सिंह राठौड़. हालांकि, कन्हैया कुमार की विवादास्पद छवि एक बाधा हो सकती है, लेकिन उनकी शानदार बोलने की कला और लोकप्रियता उनके पक्ष में संतुलन बना सकती है. बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से बीजेपी की तीखी आलोचना के लिए जानी जाने वाली नेहा, मनोज तिवारी को चुनौती देने के लिए एक नाम हो सकती हैं.

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किसी भी स्थिति में, यह राजनीतिक शतरंज का खेल बना हुआ है क्योंकि कांग्रेस, मनोज तिवारी को हराने की रणनीति बना रही है. अब कांग्रेस के द्वारा कैंडिडेट का चुनाव उत्तर पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के चुनावी भाग्य को तय करेगा.

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