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पप्पू यादव ने 5 साल में जो सियासी जमीन बनाई थी, लालू ने एक दांव से उसे मिट्टी कर दिया

पप्पू यादव पूर्णिया लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट मांग रहे थे. लालू यादव ने यह सुनिश्चित किया कि पूर्णिया सीट कांग्रेस के खाते में ही न जाए. लालू ने एक दांव से पप्पू ने जो सियासी जमीन बनाई थी, उसे मिट्टी कर दिया.

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पप्पू यादव और लालू यादव (फाइल फोटो)
पप्पू यादव और लालू यादव (फाइल फोटो)

पप्पू यादव 'प्रणाम पूर्णिया' कैंपेन चला रहे थे. पप्पू यादव हर कार्यक्रम में, हर मंच से पूर्णिया से चुनाव लड़ने की बात कह रहे थे. वह केवल पूर्णिया सीट से उम्मीदवारी के आश्वासन पर विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार थे, यह भी कह रहे थे कि इसके लिए लालू यादव के पैर पकड़ें या तेजस्वी यादव के? पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय का ऐलान करते हुए विपक्षी गठबंधन की ओर से पूर्णिया से टिकट की दावेदारी भी ठोक दी. पप्पू यादव के इस ऐलान को टिकट के आश्वासन से जोड़कर देखा गया लेकिन बिहार की सियासत के 'रिंग मास्टर' लालू यादव के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था. लालू के धोबिया पछाड़ से पप्पू ऐसे फंसे कि न घर के रहे, घाट पर भी बन आई.

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पप्पू यादव जिस पूर्णिया सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लालू यादव ने वह सीट उन्हें कौन कहे कांग्रेस पार्टी को ही नहीं मिलने दी. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने इस सीट से रुपौली विधायक बीमा भारती को चुनाव मैदान में उतार दिया. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की विधायक बीमा भारती टिकट के ऐलान से ठीक पहले ही आरजेडी में शामिल हुई थीं. बीमा भारती के नामांकन के बाद भी पप्पू यादव ने लालू से अपनी दावेदारी पर विचार की गुहार लगाते हुए कहा कि आरजेडी के सिंबल पर लड़ने के लिए भी तैयार हूं.

पप्पू यादव की गुहार के बीच तेजस्वी यादव ने दो टूक कह दिया है कि जो हमारे खिलाफ चुनाव लड़ रहा है, वह बीजेपी के साथ है. तेजस्वी का यह बयान एंटी इनकम्बेंसी के वोट एकमुश्त महागठबंधन के पास आएं, इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है लेकिन सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या बात बस इतनी सी ही है?

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कांग्रेस में शामिल हो गए थे पप्पू यादव (फाइल फोटोः पीटीआई)
कांग्रेस में शामिल हो गए थे पप्पू यादव (फाइल फोटोः पीटीआई)

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि 2019 में मधेपुरा सीट से चुनाव हारने के बाद पप्पू यादव यह समझ गए कि लालू की मौजूदगी में यादव पॉलिटिक्स की पिच मुश्किल है. राजनीति में लालू के साये से निकल अपनी लकीर खींचनी है, लंबी पारी खेलनी है तो इमेज बदलना होगा और यादव समाज से आगे सोचना होगा. 2019 की पटना बाढ़ से लेकर अब तक, पप्पू यादव इसी रणनीति पर चलते नजर आए हैं और थोड़ा ही सही, वह इमेज बदलने में कामयाब भी रहे हैं. महागठबंधन के टिकट से मुस्लिम-यादव वोट के साथ उनका अपना वोट प्लस होने पर जीत की उम्मीद उन्हें थी. पूर्णिया का परिणाम यादव पॉलिटिक्स को भी प्रभावित कर सकता था.

यह भी पढ़ें: 'पप्पू यादव की राह लगती है मुश्किल, शायद ही कोई निर्दलीय चुनाव जीत पाए...' पूर्णिया सीट पर बोले लालू के साले साधू

दरअसल, लालू यादव की पार्टी ने जब पप्पू यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया था तब इसके पीछे तेजस्वी से अनबन की चर्चा थी. पूर्णिया से चुनावी तैयारी में जुटे पप्पू यादव ने कांग्रेस में शामिल होने के ठीक एक दिन पहले लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात भी की थी. पप्पू यादव ने अब खुद यह खुलासा किया है कि लालू यादव ने उन्हें अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करने और मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने के लिए कहा था. पप्पू यादव मधेपुरा सीट से दो बार सांसद रह भी चुके हैं, लेकिन अब यह सीट उन्हें नहीं सुहा रही.

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कांग्रेस में शामिल होने से एक दिन पहले पप्पू यादव ने लालू से भी की थी मुलाकात (फाइल फोटो)
कांग्रेस में शामिल होने से एक दिन पहले पप्पू यादव ने लालू से भी की थी मुलाकात (फाइल फोटो)

पप्पू यादव ने यह भी कहा कि मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने जाना उनके लिए आत्मघाती कदम होता और उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. पप्पू यादव ने आगे यह भी जोड़ा कि मधेपुरा के यादवों को पप्पू कम, लालू यादव अधिक चाहिए. इसी बयान में यह सार है कि पप्पू यादव को लालू यादव मधेपुरा से क्यों लड़ाना चाहते थे और वह क्यों ऐसा नहीं करना चाहते. पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का आरजेडी की बजाय कांग्रेस में विलय किया तो यह भी लालू के साये से बाहर निकल खुद को स्थापित करने की रणनीति से जोड़कर ही देखा गया.

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लालू ने यह सुनिश्चित किया कि पप्पू यादव के दावे वाली सीट पूर्णिया के साथ ही अपने प्रभाव वाली मधेपुरा सीट भी आरजेडी के पास रहे और फिर बीमा भारती के रूप में उम्मीदवार उतार दिया. जानकार कह रहे हैं कि पप्पू यादव ने पिछले पांच साल में जो सियासी जमीन बनाई थी, लालू ने इस एक दांव से उसे मिट्टी कर दिया.

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