बिहार में विपक्षी गठबंधन से नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की एग्जिट के बाद सीट शेयरिंग को आसान कहा जा रहा था लेकिन हो ठीक उल्टा रहा है. पहले चरण में मतदान वाली सीटों पर नामांकन शुरू हुए करीब हफ्तेभर होने को आए हैं लेकिन इंडिया ब्लॉक में कई सीटों को लेकर अब भी पेच फंसा हुआ है. ऐसी ही एक सीट है पूर्णिया की. पूर्णिया लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), दोनों ही दल अड़े हुए हैं.
हाल ही में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले पप्पू यादव ने दो टूक कह दिया है कि दुनिया छोड़ देंगे लेकिन पूर्णिया नहीं छोड़ेंगे. चुनाव लड़ेंगे तो पूर्णिया से ही. वहीं, पूर्णिया जिले की ही रुपौली सीट से जेडीयू की विधायक बीमा भारती ने आरजेडी जॉइन करते ही इस सीट से दावेदारी ठोक दी है. सवाल है कि कांग्रेस के पप्पू यादव पूर्णिया सीट से ही चुनाव लड़ने पर क्यों अड़े हैं और आरजेडी क्यों यह सीट कांग्रेस को देना नहीं चाहती?
पूर्णिया सीट पर क्यों अड़े हैं पप्पू यादव?
पप्पू यादव पूर्णिया सीट से ही चुनाव लड़ने की बात पर अड़े हैं तो इसके पीछे भी उनकी अपनी तैयारी, अपना चुनावी रिकॉर्ड और अपने समीकरण हैं. पूर्णिया में पप्पू यादव का रिकॉर्ड अजेय रहा है. पप्पू यादव 1991 से 2004 तक कभी निर्दलीय तो कभी समाजवादी पार्टी, आरजेडी के टिकट पर लगातार लोकसभा पहुंचते रहे. हालांकि, पप्पू यादव की मां शांति प्रिया 2009 के आम चुनाव में पूर्णिया सीट से हार गई थीं. साल 2014 में आरजेडी ने पप्पू को मधेपुरा सीट से उतारा. तब बीजेपी और जेडीयू, दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे थे. पप्पू ने तब जेडीयू के कद्दावर नेता शरद यादव को पटखनी दे दी थी लेकिन 2019 में वह ये सीट नहीं बचा सके.
पप्पू यादव ने एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में इसका जिक्र करते हुए कहा भी कि पूर्णिया ने मुझे कभी भी चुनाव नहीं हराया. 20 साल बाद (2004 के बाद) भी पूर्णिया ने मुझे बेटे की तरह गले लगाया. पूर्णिया ने कभी जातिवाद नहीं किया, जबकि मधेपुरा के यादवों को लालू यादव अधिक और पप्पू यादव कम चाहिए. मेरे जैसे आदमी को चुनाव हरवा दिया जिसने हर घर की सेवा की. मधेपुरा मेरी विचारधारा और तौर-तरीकों से बहुत दूर है. पप्पू का यह बयान बताता है कि अभी भी उनके मन में कहीं ना कहीं 2019 और 2020 की हार की टीस है.
पप्पू के रुख के पीछे 2019 के नतीजों का गणित
पप्पू यादव के इस रुख के पीछे 2019 के चुनाव नतीजों का गणित भी है. 2019 में एनडीए की ओर से जेडीयू ने दिनेशचंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया था. जन अधिकार पार्टी से पप्पू यादव और आरजेडी से शरद यादव मैदान में थे. जेडीयू उम्मीदवार को 6 लाख 24 हजार 334 वोट मिले थे जबकि शरद यादव को 3 लाख 22 हजार 807, पप्पू यादव को 97 हजार 631 वोट मिले थे. आरजेडी और पप्पू को मिले वोट जोड़ लें तो भी यह 4 लाख 20 हजार के करीब ही पहुंचता है जो जेडीयू उम्मीदवार को मिले वोट के मुकाबले करीब दो लाख कम है.
पप्पू यादव अब मधेपुरा के यादव मठाधीशों का जिक्र करते हुए उनके तौर-तरीके पर सवाल उठाते हुए अगर यह कह रहे हैं कि मैं अपनों से नहीं लड़ सकता और उन्हें लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकता. मेरे लिए चुपचाप अलग हो जाना ही एकमात्र रास्ता था. अभी पूर्णिया से अलग नहीं लड़ सकता. ये मेरे लिए आत्मघाती होगा. तो इसे पिछले चुनाव नतीजों से, वोटों के गणित से जोड़कर भी देखा जा रहा है.
एक आधार पप्पू की चुनावी तैयारी को भी बताया जा रहा है. पप्पू यादव ने पूर्णिया में जनसंपर्क के लिए 'प्रणाम पूर्णिया' अभियान शुरू किया था. पप्पू के समर्थकों का दावा है कि इस अभियान के तहत करीब छह लाख परिवारों से संपर्क किया जा चुका है.
पूर्णिया सीट क्यों नहीं देना चाहती आरजेडी
अब सवाल यह भी है कि आरजेडी क्यों पूर्णिया की सीट कांग्रेस को देना नहीं चाहती? आरजेडी ने पप्पू को 2014 में टिकट तो दिया था लेकिन मधेपुरा से. अनुमानों के मुताबिक मधेपुरा में यादव और मुस्लिम, इन दो वर्गों की आबादी ही पांच लाख के करीब है जो आरजेडी का बेस वोटर माना जाता है.
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आरजेडी की रणनीति यह हो सकती है कि कोई ऐसा चेहरा इस सीट से उतारा जाए जो कोर वोट में दूसरी जातियों के वोट जोड़ने की भी क्षमता रखता हो और इस सीट से सांसद रह चुके पप्पू यादव बेहतर विकल्प लग रहे हों. एक दूसरा पहलू भी है. बीमा भारती ने भी आरजेडी जॉइन करते ही अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी है ऐसे में कयास यह भी हैं कि वह लालू यादव की पार्टी से टिकट के आश्वासन पर ही आई हों.
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कयास पप्पू यादव से लालू की नाराजगी के भी हैं. पप्पू यादव ने कांग्रेस में शामिल होने से ठीक एक दिन पहले लालू यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी. पप्पू ने यह कहा था कि लालू ने उनसे अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करने, मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने को कहा था. लालू से मुलाकात के बाद अगले ही दिन पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. पप्पू यादव के इस कदम से लालू की नाराजगी के भी चर्चे हैं.
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पूर्णिया सीट के समीकरणों की बात करें तो यहां यादव और मुस्लिम फैक्टर के साथ ही दलित और ओबीसी की कुशवाहा जैसी जातियां निर्णायक भूमिका निभाती हैं. सवर्ण मतदाताओं की तादाद भी अच्छी खासी है. आरजेडी को यह उम्मीद है कि बीमा भारती को उतारने से उसके बेस वोटर मुस्लिम-यादव के साथ ही दलित मतदाताओं का साथ भी पार्टी को मिल सकता है और ऐसा हुआ तो जीतने की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं.