बिहार में महागठबंधन के लिए सीट शेयरिंग सिरदर्द बन गई है. सूबे में लोकसभा की 40 सीटें हैं और कांग्रेस चाहती है कि उसे दर्जनभर सीटें मिलें. वहीं, लालू यादव की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की कोशिश है कि कांग्रेस को छह से आठ सीटों पर सीमित कर दिया जाए. दोनों दलों के बीच सीटों को लेकर जारी खींचतान में पेच पूर्णिया को लेकर भी फंस रहा है. कांग्रेस हाल ही में अपनी पार्टी का विलय करने वाले पप्पू यादव के लिए पूर्णिया सीट चाहती है तो वहीं आरजेडी यह सीट देने के लिए तैयार नहीं.
चर्चा है कि आरजेडी इस सीट से जेडीयू विधायक बीमा भारती को चुनाव मैदान में उतार सकती है. बीमा भारती ने आरजेडी जॉइन करते ही यह कहकर अपनी मंशा भी साफ कर दी कि लालू यादव का निर्देश हुआ तो पूर्णिया से चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हूं. अब संकट यह है कि पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने के लिए ही पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय किया था.
पप्पू यादव ने बीमा के बयान के बाद कहा भी था- लालू यादव ने मुझसे अपनी पार्टी का आरजेडी में विलय करने और मधेपुरा से चुनाव लड़ने के लिए कहा था जो मुझे मंजूर नहीं था. पूर्णिया नहीं छोड़ूंगा. पूर्णिया सीट को लेकर कांग्रेस और आरजेडी में खींचतान के बीच अब चर्चा इसे लेकर भी होने लगी है कि पप्पू यादव के साथ कहीं कीर्ति झा आजाद की तरह खेला न हो जाए.
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अब आप सोच रहे होंगे कि पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने, पूर्णिया से दावेदारी और आरजेडी-कांग्रेस के बीच इस सीट को लेकर खींचतान में कीर्ति का क्या काम है? दरअसल, कीर्ति झा आजाद भी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए तो दरभंगा से टिकट की दावेदारी की थी.
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कीर्ति तब दरभंगा से ही सांसद भी थे लेकिन महागठबंधन में यह सीट आरजेडी के हिस्से चली गई. कीर्ति की दावेदारी के बावजूद आरजेडी ने यह सीट कांग्रेस को दी नहीं. कीर्ति आजाद को कांग्रेस ने बाद में झारखंड से चुनाव मैदान में उतारा. इस बार पप्पू यादव भी पूर्णिया से लड़ने की मंशा के साथ ही कांग्रेस में आए हैं.
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बीमा भारती के जेडीयू छोड़कर आरजेडी में आने के बाद पूर्णिया सीट पर पेच फंस गया है. कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद अगर पूर्णिया सीट पाने में असफल होती है तो यह कीर्ति आजाद वाले एपिसोड का रिपीटेशन ही होगा.
पूर्णिया से ही क्यों लड़ना चाहते हैं पप्पू?
पप्पू यादव पूर्णिया सीट से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उसके पीछे चुनावी तैयारी से लेकर चुनावी रिकॉर्ड और जातिगत समीकरण तक, कई फैक्टर्स हैं. पूर्णिया सीट से पप्पू यादव अजेय रहे हैं, निर्दलीय से लेकर सपा तक के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. वहीं, मधेपुरा में एक बार जीते तो दूसरी बार उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. पप्पू यादव ने पिछले कुछ महीनों में 'प्रणाम पूर्णिया' अभियान के माध्यम से जनसंपर्क भी किया है.
पप्पू ने कांग्रेस में किया था अपनी पार्टी
पप्पू यादव ने हाल ही में लालू यादव और तेजस्वी यादव से उनके आवास पर पहुंचकर मुलाकात की थी. लालू-तेजस्वी से मुलाकात के अगले ही दिन पप्पू दिल्ली पहुंचे और कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया. पप्पू यादव ने पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी करते हुए यह साफ कह दिया है कि अगर वह पूर्णिया की जगह मधेपुरा से चुनाव लड़ने जाते हैं तो यह आत्मघाती फैसला होगा. पप्पू किसी भी हाल में पूर्णिया छोड़ने को तैयार नहीं हैं और आरजेडी भी अड़ी हुई है. ऐसे में देखना होगा कि बिहार में सीट शेयरिंग की गुत्थी कैसे सुलझती है.