प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए मध्य प्रदेश में बीजेपी के अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं. इसके अंतर्गत वह आज झाबुआ में होंगे, जहां कई हजार करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात देने के साथ ही जनजातीय सम्मेलन को संबोधित करेंगे. भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए 'अबकी बार 400 पार' का नारा दिया है. हम आपको बताएंगे कि अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी ने आदिवासी बहुल झाबुआ को ही पीएम मोदी की रैली के लिए क्यों चुना?
दरअसल, पीएम मोदी की इस रैली से बीजेपी न केवल एमपी बल्कि पड़ोसी राज्यों गुजरात और राजस्थान के जनजातीय वर्ग को भी साधने की कोशिश करेगी. पीएम मोदी करीब दोपहर 12:10 पर झाबुआ पहुंचेंगे और यहां करीब 2 घंटे रहेंगे. परियोजनाओं के लोकार्पण के बाद वह जनजातीय सम्मेलन को संबोधित करेंगे. बीजेपी ने प्रधानमंत्री की रैली में एमपी, गुजरात और राजस्थान से जनजातीय समुदाय के करीब 1 लाख लोगों को लाने का लक्ष्य रखा है. दरअसल, झाबुआ की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह गुजरात और राजस्थान से लगा हुआ है. झाबुआ तो आदिवासी बहुल है ही, लेकिन यहां रैली करके प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के करीब दर्जनभर और राजस्थान के आधा दर्जन आदिवासी बहुल जिलों को साधेंगे.
झाबुआ की रैली महत्वूर्ण क्यों?
दरअसल, झाबुआ में पीएम मोदी की रैली के पीछे बीजेपी का मकसद तीन राज्यों में लोकसभा की अनुसूचित जनजाति सीटों पर फोकस करना है. एमपी में 29 लोकसभा सीटें है, जिनमें 6 (बैतूल, धार, खरगोन, मंडला, रतलाम-झाबुआ और शहडोल) अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा राजस्थान में 3 और गुजरात में 4 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. झाबुआ से पीएम मोदी आदिवासी वर्ग को संबोधित करते हुए अपनी सरकार में इस समुदाय के लिए जो योजनाएं शुरू की हैं, उसके बारे में बताएंगे. बीजेपी उनके भाषण का एमपी, राजस्थान और गुजरात की सभी एसटी रिजर्व सीटों पर लाइव स्ट्रीमिंग करेगी.
अगर रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट की बात करें तो यहां अब तक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए हैं, उनमें से 90 फीसदी बार कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की है. कांग्रेस के इस मजबूत गढ़ को भेदने के लिए भाजपा ने पीएम मोदी का झाबुआ में कार्यक्रम रखा है. मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड जीत तो हासिल की, लेकिन आदिवासी अंचलों में पार्टी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी. प्रदेश की 47 एसटी सीटों में से बीजेपी ने 24 सीटें जीतीं, तो कांग्रेस ने 22 सीटों पर जीत दर्ज की. यानी आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी को कांग्रेस से कांटे की टक्कर मिली. इसीलिए बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले आदिवासी वर्ग को साधने की कवायद में जुटी है.