यूपी में सियासी तापमान चढ़ा हुआ है. एक तरफ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा यूपी में है तो वहीं सपा के साथ उनकी पार्टी के गठबंधन को लेकर भी करीब 24 घंटे तक सस्पेंस की स्थिति रही. कांग्रेस और सपा के गठबंधन को लेकर संशय की स्थिति के बीच लखनऊ में एक बड़ा सियासी घटनाक्रम हुआ. सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम अचानक ही जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह से मिलने उनके आवास पहुंच गए. नरेश उत्तम ने राजा भैया के साथ मैराथन मीटिंग के दौरान अखिलेश यादव से उनकी बात भी कराई.
इस मुलाकात और बातचीत के बाद कुछ दिन पहले तक विधानसभा में सरकार के साथ खड़े नजर आए राजा भैया के सुर सपा को लेकर नरम नजर आए. राजा भैया ने 28 साल के राजनीतिक जीवन में से 20 साल सपा को देने का जिक्र किया और यह भी कहा कि सपा मेरे लिए पहले आती है, मेरे लिए यह कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है. उनके इस बयान को सपा के साथ गठबंधन का संकेत माना जा रहा है. साल 2019 में राज्यसभा चुनाव के समय ही सपा को गच्चा दे गए राजा भैया की पार्टी जब फिर से सपा के साथ आ रही है, तब भी परिस्थितियां कुछ वैसी ही हैं.
यूपी की 10 राज्यसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं जिनमें सात पर बीजेपी और दो पर सपा उम्मीदवारों की जीत तय है लेकिन एक सीट पर पेच फंसा हुआ है. राजा भैया और अखिलेश यादव की अचानक बढ़ी नजदीकी को राज्यसभा चुनाव के नंबरगेम से जोड़कर भी देखा जा रहा है. दरअसल, बीजेपी ने नामांकन के अंतिम दिन आठवां उम्मीदवार उतार दिया जिससे सपा की तीसरी सीट फंस गई है. सपा को तीन सीटें जीतने के लिए 111 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट चाहिए होंगे. सपा के 108 विधायक हैं. इन 108 में से भी एक विधायक और अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने दो टूक कह दिया है कि हम किसी बच्चन-रंजन को वोट नहीं देंगे.
निकल जाएगी सपा की तीसरी राज्यसभा सीट
आरएलडी के एनडीए में जाने के बाद बदले समीकरण में अब पल्लवी के रुख ने सपा को मुश्किल में डाल दिया है. पल्लवी को हटा दें तो सपा के पास 107 विधायकों का समर्थन बचता है. कांग्रेस के दो विधायक हैं और एक विधायक बसपा का है. अगर बसपा विधायक का वोट नहीं मिला तो सपा का संख्याबल कांग्रेस विधायकों को मिलाकर 109 पहुंचता है. ऐसे में अगर दो विधायकों वाली राजा भैया की पार्टी सपा का समर्थन कर देती है तो उसके पास प्रथम वरीयता के 111 वोट हो जाएंगे और पार्टी तीसरी राज्यसभा सीट भी आसानी से जीत जाएगी. यानी राजा भैया की पार्टी के समर्थन से बगैर बसपा और पल्लवी पटेल के वोट के भी तीसरी सीट से सपा की जीत सुनिश्चित हो जाएगी.
अखिलेश की पार्टी को राज्यसभा चुनाव में जहां एक सीट का बोनस मिल जाएगा तो वहीं राजा भैया को लोकसभा चुनाव के लिए सेफ पैसेज भी मिल जाएगा. राजा भैया के प्रतापगढ़ सीट से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की भी अटकलें हैं. ऐसे में सपा और कांग्रेस से गठबंधन उनके लिए भी फायदे का सौदा साबित हो सकता है. वैसे भी, 2022 का विधानसभा चुनाव छोड़ दें तो सपा ने राजा भैया के खिलाफ उम्मीदवार उतारने से परहेज ही किया, तब भी जब वह निर्दल चुनाव लड़ते थे. लेकिन 2022 के चुनाव में प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से सपा ने न सिर्फ राजा भैया के खिलाफ उम्मीदवार उतारा, बल्कि अखिलेश यादव ने कुंडा में चुनावी रैली भी की. आखिर अखिलेश और राजा भैया के रिश्तों में इतनी तल्खी कैसे आ गई थी?
राज्यसभा चुनाव से ही बिगड़े थे राजा भैया-अखिलेश के रिश्ते
राजा भैया सपा की अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार में भी मंत्री रहे. लेकिन सपा की सत्ता रहते ही राजा भैया और अखिलेश यादव के रिश्तों में खटास आने लगी थी. दरअसल, 2013 में कुंडा के ग्राम प्रधान की हत्या के बाद हिंसा भड़क उठी थी और भीड़ ने सीओ जियाउल हक की हत्या कर दी थी. सीओ की पत्नी ने इस मामले में राजा भैया पर आरोप लगाए थे. इस मामले में आरोप लगने के बाद राजा भैया को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. हा जाता है कि राजा भैया और अखिलेश यादव के रिश्तों में तल्खी के बीच तभी पड़ गए थे.
फिर 2017 के विधानसभा चुनाव हुए, बीजेपी सत्ता में आ गई और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बसपा ने गठबंधन कर लिया. यही बात राजा भैया को नागवार गुजरी और उन्होंने राज्यसभा चुनाव में अखिलेश यादव के कहने के बावजूद सपा उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया. कुंडा विधायक ने बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया था और यहीं से दोनों नेताओं के रिश्ते इतने तल्ख हो गए कि अखिलेश ने परंपरा तोड़ते हुए 2022 के विधानसभा चुनाव में कुंडा सीट से सपा का उम्मीदवार उतार दिया था.
अखिलेश के साथ राजा भैया के रिश्ते भले ही तल्ख रहे हों, लेकिन शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ उनके संबंध हमेशा बेहतर रहे. राजा भैया, अखिलेश की तल्खी के बीच भी मुलायम से मिलने पहुंचते रहे. वह कई बार मायावती सरकार के समय अपने खिलाफ लगाए गए पोटा का जिक्र करते हुए खुलकर यह कह चुके हैं कि उस मुश्किल समय में मुलायम ने उनका साथ दिया था. मुलायम की सरकार ने ही राजा भैया से पोटा हटाया था. अब, जब राजा भैया और सपा वैसी परिस्थितियों में एक-दूसरे के करीब जाते नजर आ रहे हैं जैसी परिस्थितियों में दूरी आई थी, तो इसके पीछे शिवपाल यादव का रोल अहम माना जा रहा है.