सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी इन दिनों लोकसभा चुनाव में व्यस्त हैं. 25 मई को दिल्ली में लोकसभा चुनाव है. बांसुरी किसी भी नेता की तरह इस चुनाव से पहले जनता से बातचीत कर रही हैं, जनसभाएं कर रही हैं. उनकी जनसभा में खासी भीड़ भी देखने को मिल रही है.
खुली जीप में अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकार करती बांसुरी से आजतक टीम ने उनसे खास बातचीत की. बांसुरी स्वराज के पॉलिटिकल इंटरव्यू और उनसे राजनीति पर बातचीत तो खूब देखने को मिल जाती है, लेकिन आजतक ने बांसुरी से उन पहलुओं पर बात की, जो लोगों को कम ही पता होगी.
बांसुरी स्वाराज ने अपने नाम का किस्सा बताते हुए कहा कि ये नाम उनके घर वालों ने कृष्ण भक्ति की वजह से रखा है. कृष्ण को बांसुरी बहुत प्रिय थी. इसलिए उनका नाम बांसुरी पड़ा है और ये कृष्ण भक्ति उन्हें विरासत में मिली है. खाने-पीने और फिल्में देखने की शौकीन बांसुरी बताती हैं कि उन्होंने आखिरी मूवी अपनी मां सुषमा स्वराज के साथ देखी थी. इस मूवी का नाम 'उरी' था. इस फिल्म को देखकर आज भी वह यह कह सकती हैं कि उनका जोश बहुत हाई है. इसके अलावा इजाजत उनकी 'पसंदीदा' फिल्मों में से एक है, क्योंकि यह उनके मां और पिता, दोनों की पसंदीदा मूवी है और वह अक्सर उनके साथ बैठकर इसे देखा करती थीं.
कुकिंग की भी शौकीन हैं बांसुरी
अपने कॉलेज के दिनों के एक किस्से को याद करते हुए बांसुरी ने मुस्कुराते हुए बताया कि उन्हें खाने-पीने का शौक तो है लेकिन बनाना भी जानती हैं. केवल रोटी बनाना उन्हें आज भी नहीं आता. यह बात उन दिनों की है जब वह ऑक्सफोर्ड में रहकर Law की पढ़ाई कर रही थीं. तब एक दिन उनकी माताजी यानी सुषमा स्वराज उनसे मिलने ऑक्सफोर्ड पहुंचीं. बांसुरी ने अपनी मां के लिए उनकी सभी फेवरेट डिश बनाईं, जिसके बाद मां ने खाने में सुधार की बात कही थी. अब मां तो भारत लौट आई थीं, और इसके ठीक 2 महीने बाद उनके पिता भी उनसे मिलने ऑक्सफोर्ड पहुंचे, जहां बांसुरी ने अपने पिता के लिए अच्छा सा खाना बनाया था. इस दौरान उनके पिता ने जब टेबल पर बहुत से व्यंजन देखें तो सीधा गाड़ी उठाकर यूनिवर्सिटी पहुंच गए प्रोफेसर से पूछा कि यह खाना बनाती है या पढ़ाई भी करती है? लेकिन प्रोफेसर ने कहा कि बांसुरी क्लास के टॉपर बच्चों में से हैं, जिसके बाद उनके पिताजी ने उनकी पीठ थपथपाई और कहा कि खाना मत बनाओ पढ़ाई पर ध्यान दो.
दाल-चावल है फेवरेट डिश
अपने बचपन के किस्से को याद करते हुए बांसुरी आज भी भावुक हो जाती हैं. उन्होंने बताया कि उनकी मां बाहर राजनीति करते हुए बेशक लोगों को एक मजबूत इंसान नजर आती थीं, वह थीं भी बहुत मजबूत, लेकिन उनके लिए वह केवल एक मां थीं. वो जब वह घर में आती थीं तो वह अपनी राजनीतिक चौले को वहीं छोड़ देती थीं. बचपन में वह उन्हें अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाया खिलाती थीं और आज भी उनकी फेवरेट डिश दाल चावल ही है, दाल चावल तब से लेकर आज तक उनके पसंदीदा डिश में से एक है, जिसे वह कितनी बार भी खा सकती हैं.
दिल्ली में चुनावी कैंपेन के दौरान खुद को फिट बनाए रखने के लिए बांसुरी मेडिटेशन करती हैं. उन्होंने बताया कि इलेक्शन कैंपेनिंग में होने वाली थकावट को दूर करने के लिए मैं मेडिटेशन जरूर करती हूं. इसके साथ दादी का नुस्खा भी काम आता है. रोज रात इलेक्शन कैंपेन खत्म करने के बाद 10 मिनट तक गर्म पानी में पैर रखने से सारी थकावट खत्म हो जाती है. डाइट का भी बहुत ध्यान रखना होता है. हालांकि फिलहाल बांसुरी अपने खाने पीने पर कंट्रोल कर रही हैं, लेकिन उन्होंने बताया कि वह बहुत चटोरी किस्म की हैं.
लंदन में भी खोज निकाली थी गोलगप्पे की दुकान
उन्होंने कहा कि आखिर दिल्ली से हूं इसलिए खाना पीना बहुत पसंद है. आपको मैं कभी करोल बाग में स्ट्रीट फूड का लुत्फ उठाते तो कभी लाजपत नगर में मूंग दाल के लड्डू खाते नजर आ जाऊंगी. गोलगप्पे उनके फेवरेट स्ट्रीट फूड मे से एक है. गोलगप्पे बांसुरी को इतने पसंद हैं कि जब वह ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई कर रही थीं तो सबसे ज्यादा गोलगप्पे को मिस करती थीं लेकिन हैरत की बात है कि उन्होंने लंदन जैसे शहर में भी गोलगप्पे की दुकान ढूंढ ली थी, हालांकि स्वाद दिल्ली जैसा नहीं था.
अपने घर में अपने मां और पिता के सबसे नजदीक होने के बाद अगर बांसुरी किसी को और सबसे ज्यादा प्यार करती हैं तो वह है उनका पेट लड्डू. लड्डू को लेकर बांसुरी ने बताया कि उसका नाम लड्डू इसलिए पड़ा क्योंकि जब वह आया था तो वह गोल मटोल बेसन के लड्डू जैसा था. हालांकि अभी भी उसके आकार में कुछ बदला नहीं है, बल्कि वह धीरे-धीरे बड़े बेसन का लड्डू बनता जा रहा है.
उस क्षण को कभी नहीं भूल पाएंगी बांसुरी
जब भी कोई नेता इलेक्शन कैंपेनिंग करने के लिए सड़कों पर उतरता है तो रोज वह दो-चार नए किस्सों से जरूर रूबरू होता है. जब बांसुरी से यह पूछा गया कि बीते महीने में कोई ऐसा किस्सा या कुछ ऐसा हुआ है, जिसे देखकर वह भावुक हो गई हों या अपनी हंसी नहीं रोक पाई हों तो उन्होंने बताया कि वह दिल्ली के अपने संसदीय क्षेत्र में एक दिन इलेक्शन कैंपेनिंग कर रही थीं. वह एक सीनियर सिटिजन के प्रोग्राम में पहुंचीं. वहां हर कोई उनसे मिलना चाहता था, बात करना चाहता था क्योंकि लोगों को उनमें सुषमा स्वराज की झलक नजर आ रही थी. इसी दौरान एक महिला ने उनका हाथ थामा और उन्हें एक दीवार पर लेकर गई, जहां उनकी माता की तस्वीर बनी हुई थी. उसे देखकर वह काफी भावुक हो गईं और शायद इस क्षण को वह कभी नहीं भूल पाएंगी.