उत्तर प्रदेश की पिच को लोकसभा चुनाव के लिहाज से सबसे सेफ बताया जा रहा था. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के ठीक बाद हो रहे चुनाव में सभी 80 सीटें जीतने के दावे कर रहे थे लेकिन पांचवे चरण के मतदान के बाद पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी सिर खुजाते दिख रहे हैं. वह भी नहीं समझ पा रहे कि पांचवें चरण के चुनाव में ऐसा क्या हो गया कि सभी सीटों पर ये चुनावी फाइट कांटे के मुकाबले में तब्दील हो गई.
सियासत के जानकारों की मानें तो रायबरेली और लखनऊ, दो ऐसी सीटें हैं जो कांग्रेस और बीजेपी के लिए सुरक्षित कही जा रही हैं, यानि राहुल गांधी और राजनाथ सिंह के चुनाव को सियासत और चुनाव पर नजर रखने वाले लोग कमोबेश जीता हुआ मान रहे हैं. जबकि अयोध्या जैसी सीट पर भी टाइट फाइट की बात कही जा रही है. यह वही सीट है जिसमें राम मंदिर भी आता है.
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वहीं, गांधी परिवार ने अमेठी और रायबरेली दो सीटों पर अपना पूरा जोर लगाया. माना जा रहा है कि रायबरेली कांग्रेस के खाते में जा सकती है जबकि अमेठी की सीट पर गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं लड़ रहा. इसके बावजूद इस सीट पर मुकाबला कड़ा हो गया. इसके पीछे प्रियंका गांधी की सक्रियता को वजह बताया जा रहा है.
अयोध्या पर सस्पेंस
अयोध्या सीट पर इस बार अखिलेश यादव ने नया प्रयोग किया और सामान्य सीट होने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने दलित उम्मीदवार उतार दिया. अयोध्या की सबसे अधिक आबादी वाली पासी बिरादरी से उम्मीदवार दिया जो दलित वर्ग में आती है. सपा ने छह बार के विधायक, मंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे अपने सबसे मजबूत पासी चेहरे अवधेश पासी को चुनाव मैदान में उतार दिया.
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बीजेपी ने यहां लल्लू सिंह को मैदान में उतारा है, जो दो बार केसांसद हैं. लल्लू सिंह के संविधान को लेकर एक बयान पर हंगामा खड़ा हो गया था और पूरे विपक्ष को बीजेपी के खिलाफ एक मुद्दा मिल गया था. लल्लू ने कहा था कि 400 सीट इसलिए चाहिए क्योंकि मोदी सरकार को संविधान बदलना है. सपा के दलित उम्मीदवार उतारने से एक नारा चल पड़ा- 'अयोध्या में न मथुरा न काशी, सिर्फ अवधेश पासी'. लल्लू के बयान और अखिलेश के दलित दांव से राम की नगरी अयोध्या में ही फाइट टाइट हो गई.
कौशांबी सीट पर भी टाइट फाइट
कौशांबी में भी फाइट टाइट है. इस सीट से एनडीए की ओर से विनोद सोनकर मैदान में हैं. विनोद सीटिंग एमपी हैं और एंटी इनकम्बेंसी का भी फैक्टर है. चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए जिनमें अलग-अलग जातियों की नाराजगी की बात कही जा रही थी. इस सीट से सपा ने अपने दूसरे सबसे बड़े पासी चेहरे इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज को मैदान में उतारा है.
कई सीटों पर कड़ा मुकाबला
बांदा, बाराबंकी, मोहनलालगंज के साथ ही बुंदेलखंड की सीटों पर भी कड़े मुकाबले की बात कही जा रही है. बांदा से बीजेपी ने सीटिंग एमपी आर पटेल को फिर से मैदान में उतारा है. आर पटेल को लेकर ब्राह्मणों की नाराजगी के पोस्ट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए. बसपा ने इस सीट पर ब्राह्मण चेहरे को ही मैदान में उतार दिया. अब चर्चा ये है कि बसपा की सोशल इंजीनियरिंग और सपा का पीडीए दांव चल निकला (जैसा दोनों दलों के नेता दावा कर रहे हैं) तो बीजेपी उम्मीदवार की राह मुश्किल हो सकती है.
बाराबंकी में चर्चा है कि दलित समाज का बड़ा तबका प्रचार के दौरान कद्दावर कांग्रेस नेता पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया के समर्थन में नजर आया. सपा के स्थानीय नेताओं के मुताबिक पार्टी के वोट कांग्रेस को ट्रांसफर हुए हैं. अगर ऐसा है तो बीजेपी उम्मीदवार की राह मुश्किल हो सकती है.
लखनऊ से सटे मोहनलालगंज की सीट हो या फिर बुंदेलखंड की सीटें, जानकार भी यह कह रहे हैं कि एकतरफा मुकाबले जैसा सीन नहीं है. झांसी, जालौन, हमीरपुर और बांदा में भी मुकाबला कड़ा है.
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जातीय राजनीति ने बढ़ाई मुश्किल
बीजेपी की रणनीति जातीय अस्मिता से ऊपर यूनिफाइड हिंदू वोटबैंक तैयार करने की रहती है. 2014, 2017, 2019 और 2022 में बीजेपी की सफलता के पीछे भी इसी रणनीति की सफलता को प्रमुख फैक्टर बताया जाता है. इस बार के चुनाव में इंडिया ब्लॉक, खासकर सपा ने पीडीए का नारा दिया. लल्लू जैसे नेताओं के संविधान बदलने वाले बयान से भी कुछ जगह कुछ जातियों के बीजेपी के खिलाफ हो जाने के दावे किए जा रहे हैं. सपा ने बीजेपी का सॉलिड वोटर मानी जाने वाली कुर्मी बिरादरी के नेताओं को टिकट बंटवारे में तरजीह देकर भी एनडीए को फंसा दिया.
आकाश आनंद को हटाने से बसपा का नुकसान
आकाश आनंद को बीएसपी के प्रचार से हटाए जाने का पार्टी के मतदाताओं में नकारात्मक संदेश गया है. बसपा का कोर वोटर जाटव के एक बड़े वर्ग का इंडिया ब्लॉक को समर्थन करने की भी चर्चा सोशल मीडिया पर खूब हो रही है.