लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान क्या आगामी लोकसभा चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़ेंगे या फिर वह अपने लिए कोई दूसरे रास्ते तलाश रहे हैं? बिहार की राजनीति में इस बात को लेकर चर्चा काफी गर्म है कि आखिर चिराग पासवान इन दिनों इतने खामोश क्यों है? आखिर क्यों उन्होंने 2 मार्च को औरंगाबाद और बेगूसराय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा में हिस्सा नहीं लिया?
जानकारी के मुताबिक 6 मार्च को बेतिया में होने वाली प्रधानमंत्री की जनसभा में भी चिराग पासवान शिरकत नहीं करेंगे. ऐसे में सवाल यह खड़े हो रहे हैं कि आखिर क्या कारण है कि चिराग पासवान प्रधानमंत्री की जनसभाओं से दूरी बना रहे हैं. सूत्रों की मानें तो एनडीए में लोकसभा चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग पर मचा घमासान भी एक इसकी प्रमुख वजह है.
माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में वापस आने के बाद चिराग पासवान गठबंधन में अपनी अनदेखी से परेशान है. सूत्रों के मुताबिक चिराग पासवान लोकसभा चुनाव 2019 के फार्मूले पर ही 6 सीटों की मांग भाजपा से कर रहे हैं. 2019 में लोग जनशक्ति पार्टी जब एक थी, तब पार्टी ने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन उसके बाद पार्टी में टूट हो गई और चाचा पशुपति पारस के साथ 5 सांसद चले गए और चिराग पासवान अकेले रह गए.
हाजीपुर सीट को लेकर अड़े चाचा-भतीजे
अब जब एनडीए में सीट शेयरिंग पर बातचीत चल रही है, तो चिराग पासवान चाहते हैं कि उन्हें 2019 के ही फार्मूले पर 6 सीटें दी जाएं, जबकि उतनी ही सीट पर पशुपति पारस की पार्टी की तरफ से भी दावेदारी की जा रही है. बताया जा रहा है कि चिराग पासवान हाजीपुर सीट को भी लेकर अड़े हुए हैं. चिराग चाहते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव वह हाजीपुर लोकसभा सीट से लड़ें, जो कि उनके पिता दिवंगत रामविलास पासवान की परंपरागत सीट रही है, जबकि वहां से मौजूदा सांसद और उनके चाचा पशुपति पारस एक बार फिर इस सीट से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं.
जीतन राम और उपेंद्र कुशवाहा भी सीटों की रेस में
बीजेपी के लिए मुश्किल ये है कि अगर वह 2019 के फार्मूले पर सीटों का बंटवारा करती है, तो उसके हिसाब से बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और बाकी 6 सीटों पर पशुपति पारस और चिराग पासवान की पार्टी को एक साथ चुनाव लड़ना पड़ेगा, जो की संभव नजर नहीं आ रहा है. दूसरी तरफ जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के भी एनडीए में आने के वजह से सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला बिगड़ गया है. बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी मांझी को एक और उपेंद्र कुशवाहा को भी एक सीट दे सकती है.
2019 वाला फॉर्मूला रिपीट करना आसान नहीं
ऐसे में 2019 का फॉर्मूला चिराग पासवान के लिए संभव नजर नहीं आ रहा है. चिराग पासवान को 6 सीट तभी मिल सकती हैं, अगर बीजेपी पशुपति पारस को मना ले. साथ ही जनता दल यूनाइटेड और खुद बीजेपी भी 17 से कम सीटों पर चुनाव लड़ें. अगर बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड कम सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला नहीं करते हैं तो चिराग पासवान के पास 2 ही विकल्प बचते हैं. पहला- वह महागठबंधन में जा सकते हैं, क्योंकि तेजस्वी यादव ने भी साफ कह दिया है कि महागठबंधन के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं.
क्या इस फॉर्मूले को अपनाएंगे चिराग?
अगर चिराग पासवान महागठबंधन में जाने का फैसला नहीं करते हैं तो उनके पास दूसरा विकल्प ये है कि वह अकेले लोकसभा चुनाव लड़ें. इस फॉर्मूले के तहत चिराग उन सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं, जहां बीजेपी नहीं लड़ रही है. यानी भाजपा और जनता दल यूनाइटेड साथ मिलकर 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं, तो फिर चिराग कम से कम 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं. चिराग पासवान के 'प्लान 23' का मतलब यह होगा कि वह अगर अपने उम्मीदवार 23 सीटों पर उतारते हैं, तो इसका नुकसान जनता दल यूनाइटेड को भुगतना पड़ सकता है जैसा कि 2020 विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था, जहां चिराग पासवान ने जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने कैंडिडेट उतार दिए थे. इसके चलते नीतीश कुमार की पार्टी का उस चुनाव में प्रदर्शन बुरा हुआ था.