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क्या बाहुबली धनंजय सिंह के 'पालाबदल' में छिपा है जौनपुर में वोटों के गणित का जादू?

पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी के चुनाव लड़ने के सपनों पर पानी फिर गया है. अपहरण, जबरन वसूली और आपराधिक साजिश के 2020 के एक मामले में पहले धनंजय सिंह को सजा सुनाई गई, उसके बाद अब बसपा ने उनकी पत्नी श्रीकला का टिकट काट दिया है. जौनपुर सीट पर नामांकन की आखिरी तारीख भी निकल गई है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि अगर धनंजय सिंह की पत्नी जौनपुर सीट से चुनाव लड़ती तो बीजेपी उम्मीदवार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती थीं.

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बसपा ने धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी का टिकट काट दिया है. (फाइल फाेटो)
बसपा ने धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी का टिकट काट दिया है. (फाइल फाेटो)

लोकसभा चुनाव के बीच यूपी में बसपा ने एक बार फिर अपना उम्मीदवार बदल दिया है. इस बार ये बदलाव जौनपुर लोकसभा सीट पर किया गया है. बसपा ने बाहुबली नेता और पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी का टिकट काट दिया है और मौजूदा सांसद श्याम सिंह यादव पर एक बार फिर भरोसा जताया है. श्रीकला रेड्डी को बसपा ने 16 अप्रैल को जौनपुर से उम्मीदवार घोषित किया था. यानी 20 दिन तक जौनपुर की खाक छानने के बाद श्रीकला रेड्डी को निराशा हाथ लगी है. यही वजह है कि खुद धनंजय सिंह ने स्वीकार किया है कि टिकट काटे जाने से उनकी पत्नी आहत महसूस कर रही हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मुझे अपमानित करने की साजिश की गई है. 

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धनंजय ने सफाई भी दी कि मेरी पत्नी द्वारा टिकट लौटाने की बात निराधार है. अंत में उन्होंने कहा कि हम लोग जिसे चाहेंगे, उसे सांसद बनाकर भेजेंगे. धनंजय का कहना था कि अब वे अपने पुराने सहयोगियों के साथ बैठेंगे. उनसे बातचीत करेंगे और एक-दो दिन में आगे की स्थिति को लेकर निर्णय करेंगे. धनंजय के बयान से संकेत साफ हैं. पहला- वो किसी भी दल या उम्मीदवार को अपना समर्थन दे सकते हैं या फिर खुद को चुनावी मैदान से पूरी तरह दूर कर सकते हैं. हालांकि, जानकार कहते हैं कि धनंजय किसी उम्मीदवार को अपना समर्थन देना ज्यादा ठीक समझ सकते हैं.

फिलहाल, धनंजय के जेल से बाहर आने के पांच दिन बाद ही पत्नी का टिकट कटने से जौनपुर की राजनीति गरम है और सियासी समीकरणों को लेकर भी कयासबाजी तेज हो गई है.

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जौनपुर में किस पार्टी से कौन उम्मीदवार?

बीजेपी ने जौनपुर लोकसभा सीट पर कृपा शंकर सिंह को मैदान में उतारा है. जौनपुर में जन्मे कृपा शंकर सिंह महाराष्ट्र की सरकार में मंत्री भी रहे हैं. कृपा शंकर ठाकुर समाज से ताल्लुक रखते हैं. जौनपुर सीट को भी ठाकुर बाहुल्य माना जाता है. जानकार कहते हैं कि जौनपुर सीट पर ठाकुर समाज का खासा प्रभाव है. धनंजय सिंह का परिवार चुनावी मैदान से हट रहा है तो इसका सीधे तौर पर बीजेपी के कृपा शंकर को फायदा मिल सकता है. सपा-कांग्रेस अलायंस ने बाबू सिंह कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है. बाबू सिंह 2012 के उत्तर प्रदेश एनआरएचएम घोटाले के आरोपी हैं. वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और बसपा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. जबकि बसपा ने श्याम सिंह यादव पर फिर भरोसा जताया है. 2019 के चुनाव में श्याम सिंह ने बसपा-सपा अलायंस के बैनर तले चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. जौनपुर सीट पर इस बार छठे चरण में 25 मई को मतदान होना है. सोमवार को नामांकन की आखिरी तारीख थी.

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श्याम यादव से बीजेपी को फायदा, सपा को नुकसान?

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फिलहाल, धनंजय की पत्नी का टिकट कटा हो या वो उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया हो, इससे बसपा की राह आसान नहीं होने वाली है. जानकारों का कहना है कि बसपा से श्रीकला रेड्डी के मैदान में होने से यहां चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था. अब श्याम सिंह यादव के आने से बीजेपी की राह आसान हुई है. चूंकि, धनंजय की पत्नी के चुनाव लड़ने से ठाकुर समाज के वोटर्स में बिखराव की चर्चाएं तेज हो गई थीं. इसका नुकसान बीजेपी के कृपा शंकर सिंह को उठाना पड़ सकता था. 2019 के चुनाव में सपा से गठबंधन में बसपा उम्मीदवार श्याम सिंह यादव ने 80 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने 1 लाख 46 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. माना जा रहा है कि अब श्याम सिंह यादव के मैदान में उतरने से बीजेपी को फायदा और सपा को नुकसान हो सकता है.

धनंजय की पत्नी चुनाव लड़तीं तो बीजेपी को होता नुकसान?

जौनपुर में पांच बड़े वोट बैंक हैं. इनमें दलित, मुस्लिम, यादव, ब्राह्मण और ठाकुर समाज की चुनाव में बड़ी भूमिका देखने को मिलती है. धनंजय सिंह और बीजेपी उम्मीदवार कृपा शंकर सिंह दोनों ठाकुर समाज से ताल्लुक रखते हैं. इंडिया अलायंस से सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा पर दांव लगाया है. बांदा में जन्मे बाबू सिंह कुशवाहा कभी बसपा में बहुत ताकतवर नेता माने जाते थे. अति पिछड़ी जातियों में इनकी अच्छी पैठ मानी जाती है. जबकि बसपा ने श्याम लाल यादव पर फिर भरोसा जताकर एक बड़े वोटबैंक को साधने की कोशिश की है. कहा यह भी जा रहा है कि धनंजय सिंह की पत्नी का टिकट कटने से बीजेपी को दोतरफा फायदा मिल सकता है. बसपा के मौजूदा सांसद श्याम सिंह यादव अपनी जाति के वोटर्स में सेंधमारी करते हैं तो इसका नुकसान सपा उम्मीदवार बाबू सिंह कुशवाहा को उठाना पड़ सकता है. इस तरह बीजेपी डबल फायदा उठाकर विपक्ष की मुश्किलें बढ़ाने की अपनी रणनीति में कामयाब हो सकती है.

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तो बंट जाते ठाकुर समाज के वोट

स्थानीय लोगों का कहना है कि धनंजय की पत्नी अगर चुनाव लड़ती हैं तो सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान होता और ठाकुर समाज के वोटों में सेंध लगती. ऐसे में बीजेपी यह भी नहीं चाहती थी कि धनंजय का परिवार निर्दलीय चुनाव मैदान में आए. चूंकि जौनपुर क्षेत्र में धनंजय की लोकप्रियता और कई लोगों के बीच उनकी 'रॉबिन हुड' वाली छवि है. धनंजय की पत्नी के चुनाव मैदान में आने की स्थिति में ठाकुरों का वोट बड़े पैमाने पर बंट सकता था. धनंजय सिंह अगर पाला बदलते हैं और बीजेपी को समर्थन करते हैं तो बीजेपी की ना सिर्फ चुनौतियां कम होंगी, बल्कि अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले बढ़त मिलने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि, धनंजय के समर्थकों का कहना है कि चुनाव लड़ने से रोकने के लिए लगातार साजिशें की गई हैं. पहले 4 साल पुराने केस में सजा सुनाई गई. उसके बाद पत्नी का टिकट काट दिया गया. 

जौनपुर में कौन पार्टी, कितनी बार जीती?

इस सीट पर अब तक कांग्रेस को छह, बीजेपी को चार, जनता दल को तीन, बसपा और सपा को दो-दो बार और जनसंघ को एक बार जीत मिली है. यहां राजपूत वोटर्स का दबदबा माना जाता है. 11 बार राजपूत उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. 4 बार यादव और 2 बार ब्राह्मण उम्मीदवारों को जीत मिली है. 

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क्या हैं जातीय समीकरण?

जौनपुर लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोटर्स हैं. यहां ढाई लाख ब्राह्मण, सवा दो लाख यादव, इतने ही मुस्लिम और अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले वोटर्स हैं. इसके अलावा, दो लाख राजपूत मतदाता हैं. जौनपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर सदर, मल्हनी और मुंगरा बादशाहपुरा सीटें शामिल हैं. तीन विधानसभा सीटों पर एनडीए के विधायक हैं और दो सीटों पर सपा एमएलए चुनाव जीते हैं. साल 2004 में सपा के पारसनाथ यादव और साल 2009 में बसपा के धनंजय सिंह ने जीत हासिल की. साल 2014 में बीजेपी के उम्मीदवार कृष्ण प्रताप सिंह को जीत मिली. लेकिन साल 2019 के चुनाव में बसपा के श्याम सिंह यादव ने बाजी मार ली.

पूर्वांचल की राजनीति में धनंजय का खासा दखल

पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) की राजनीति में धनंजय सिंह (48 साल) एक बड़े चेहरे के तौर पर पहचाने जाते हैं. पूर्वांचल में जौनपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, वाराणसी और मऊ जैसे जिले शामिल हैं. दो बार के विधायक और पूर्व सांसद धनंजय का ना सिर्फ बसपा, बल्कि अन्य राजनीतिक दलों में भी प्रभाव है. वे बहुजन समाज पार्टी के अलावा निषाद पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) में भी रह चुके हैं. इतना ही नहीं, सजा के ऐलान से पहले तक वे सत्तारूढ़ बीजेपी से टिकट मिलने की उम्मीद कर रहे थे. धनंजय की पत्नी श्रीकला रेड्डी जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. धनंजय साल 2009 में बसपा से आखिरी बार सांसद बने थे, उसके बाद से वो हर चुनाव हारते रहे हैं. 

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क्यों चुनावी मैदान से पीछे हट गए धनंजय?

क्या धनंजय खुद चुनाव से बाहर होना चाहते थे या फिर बसपा ने किसी दबाव में अपना उम्मीदवार बदल दिया. इस रहस्य से पर्दा उठना बाकी है, लेकिन जौनपुर में इस वक्त जो चर्चा है उसके पीछे कई थ्योरी काम कर रही हैं. चर्चा धनंजय पर एक अदृश्य दबाव की है- क्या यह दबाव जांच एजेंसियों का है या फिर किसी राजनीतिक दल का. इस पर चर्चा तो खूब हो रही है लेकिन आधिकारिक तौर पर कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है. देखा जा रहा है कि जब से धनंजय सिंह जेल से बाहर आए हैं, उसके बाद से ही श्रीकला और धनंजय की सियासी गतिविधियां कम हो गईं. चुनाव प्रचार थम सा गया और अचानक यह चर्चा चल निकली कि बसपा अपना उम्मीदवार बदलने जा रही है. इस बीच, रातों-रात बसपा ने अपना टिकट बदल दिया और धनंजय सिंह एक बार फिर खाली हाथ रह गए. यह चर्चा भी चल निकली है कि सारे राजनीतिक घटनाक्रम के इर्द-गिर्द बीजेपी उम्मीदवार कृपाशंकर सिंह हैं. यह सब उनके ही मायाजाल का नतीजा है. 

क्या धनंजय सिंह को दिया गया है कोई आश्वासन?

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तीसरी चर्चा यह कि बीजेपी ने ठाकुर नेताओं के लॉबी का सहारा लिया और धनंजय सिंह पर दबाव बनाया. हाल में ही राजा भैया की मुलाकात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से हुई थी. उसके पहले बस्ती के राज किशोर सिंह बीजेपी आ गए. अभय सिंह ना सिर्फ बीजेपी आए, बल्कि उन्हें Y कैटेगरी की सुरक्षा दी गई. तो क्या सभी ठाकुर नेताओं ने मिलकर धनंजय सिंह को कोई आश्वासन दिया है? हालांकि, अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि धनंजय सिंह ने खुद को पीछे किया या मायावती ने उनकी पत्नी का टिकट काटा. चर्चा यह है कि धनंजय सिंह ने किसी अदृश्य दबाव में खुद को पीछे कर लिया है और मायावती से एक सम्मानजनक एग्जिट का आग्रह किया. उसके बाद मायावती ने अपने वर्तमान सांसद श्याम सिंह यादव को टिकट दे दिया. ऐसी तमाम थ्योरी इस वक्त जौनपुर की सियासत में तैर रही है, जिसके जरिए यह समझने की कोशिश की जा रही है कि आखिर वो धनंजय सिंह, जिन्होंने हर हाल में चुनाव लड़ने की ठान रखी थी, उनके तेवर अचानक ढीले क्यों पड़ गए हैं. यह साफ होता जा रहा है कि बसपा ने टिकट काटा तो अब धनंजय सिंह या उनकी पत्नी श्रीकला धनंजय सिंह चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन क्या यह दांव बीजेपी को उल्टा पड़ेगा या अब यह सीट भी बीजेपी के लिए आसान हो जाएगी, इस पर आने वाले दिनों में खूब सियासी चर्चा होगी.

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कैसा रहा धनंजय का सियासी सफर?

धनंजय ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. यहां से उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. धनंजय 2002 के विधानसभा चुनाव में जौनपुर की रारी सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे और जीत हासिल की. उसके बाद 2007 में जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की. उससे पहले 2004 में जौनपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए थे. लेकिन 2009 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर जौनपुर से जीत हासिल की. 2012 में बसपा से निष्कासित कर दिया गया था. धनंजय ने 2017 का विधानसभा चुनाव जौनपुर के मल्हनी सीट से निषाद पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लड़ा. नवंबर 2020 के उपचुनाव में निर्दलीय लड़े, लेकिन दोनों बार हार गए. बाद में वो जदयू में शामिल हो गए. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए धनंजय बीजेपी और समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं के संपर्क में थे और टिकट मांग रहे थे. हालांकि, बीजेपी ने जौनपुर से कृपाशंकर सिंह को उम्मीदवार घोषित किया. जबकि सपा ने दावेदारी पर विचार नहीं किया.

बसपा ने चौथी बार धोखा दिया है

पत्रकारों से बातचीत में धनंजय सिंह का कहना था कि बसपा ने मुझे चौथी बार धोखा दिया है. 2012, 2014 और 2017 में पार्टी ने मुझे टिकट देने का आश्वासन दिया, लेकिन आखिरी वक्त में धोखा दे दिया. उन्होंने आगे जोड़ा, मुझे पहले से ही आशंका थी कि मेरी पत्नी का टिकट काट दिया जाएगा. चूंकि मैं जेल में था. इस बीच, बसपा के लोगों ने मेरी पत्नी के बारे में पार्टी प्रमुख मायावती से बात की और उन्हें जौनपुर से उम्मीदवार बनाया गया. इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी.

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जमानत पर बाहर आए हैं धनंजय सिंह

जौनपुर की एमपी-एमएलए अदालत ने 6 मार्च को नमामि गंगे परियोजना प्रबंधक के अपहरण और जबरन वसूली के 2020 के एक मामले में धनंजय सिंह और उनके सहयोगी संतोष विक्रम को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 27 अप्रैल को धनंजय को जमानत दे दी, लेकिन सजा को निलंबित करने या रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी है. एक मई को धनंजय बरेली जेल से रिहा हुए और जौनपुर पहुंचे. आश्चर्य की बात यह है कि धनंजय को किसी केस में पहली बार सजा सुनाई गई है. एक समय उनके खिलाफ 46 मामले दर्ज थे, जिनमें कुछ हत्याओं से जुड़े केस भी शामिल थे. धनंजय और सतीश पर आईपीसी की धारा 364 (अपहरण), 386 (किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर चोट का भय दिखाकर जबरन वसूली), 120बी (आपराधिक साजिश), 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया था. नमामि गंगे परियोजना प्रबंधक अभिनव सिंघल की शिकायत पर एक्शन लिया गया था. दोनों आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी, लेकिन धनंजय ने जमानत ले ली थी.
 

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