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कैराना में BJP के प्रदीप चौधरी या सपा प्रत्याशी इकरा हसन मारेंगी बाजी? पढ़ें- क्या है इस सीट का सियासी समीकरण

कैराना से समाजवादी प्रत्याशी इकरा हसन गांव-गांव प्रचार में जुटी हैं. माना जा रहा है कि मुसलमान वोटर उनके साथ पूरी मजबूती से खड़ा है. लेकिन वो ज्यादातर गैर मुस्लिम यानी हिंदुओं के गांव में घूम रही हैं. रमज़ान के दिनों में वह अपने रोजे किसी न किसी हिंदू गांव में ही खोल रही है. उन्हें मालूम है कि अगर उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार प्रदीप चौधरी के खिलाफ की नाराजगी को भुना लिया, तो मोदी की गारंटी जैसे नारों के बीच भी वो चुनाव निकाल ले जाएंगी.

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कैराना में सपा की इकरा हसन और बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप चौधरी के बीच मुकाबला है (Photo: Instagram/Facebook)
कैराना में सपा की इकरा हसन और बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप चौधरी के बीच मुकाबला है (Photo: Instagram/Facebook)

जो कैराना कभी बीजेपी के नारों का हिस्सा हुआ करता था, जो कैराना कभी बीजेपी के धार्मिक ध्रुवीकरण के केंद्र में था, वह आज इन मुद्दों पर खामोश है. सपा प्रत्याशी इकरा हसन के चुनाव प्रचार में मुसलमान से ज्यादा, जाट और गुर्जर चेहरे दिखाई दे रहे हैं. कैराना से समाजवादी प्रत्याशी इकरा हसन गांव-गांव प्रचार में जुटी हैं. माना जा रहा है कि मुसलमान वोटर उनके साथ पूरी मजबूती से खड़ा है. लेकिन वो ज्यादातर गैर मुस्लिम यानी हिंदुओं के गांव में घूम रही हैं. रमज़ान के दिनों में वह अपने रोजे किसी न किसी हिंदू गांव में ही खोल रही है. उन्हें मालूम है कि अगर उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार प्रदीप चौधरी के खिलाफ की नाराजगी को भुना लिया, तो मोदी की गारंटी जैसे नारों के बीच भी वो चुनाव निकाल ले जाएंगी. कैराना में सीधा मुकाबला बीजेपी-सपा के बीच है. 

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विदेश से पढ़कर आईं इकरा हसन सादगी और सलीके से सियासत करने की पहचान बना चुकी हैं. इकरा हसन, गन्ना किसानों के मुद्दे, कैराना को एनसीआर में शामिल कर सुविधाओं से जोड़ने के मुद्दे और कैराना को इन्वेस्टमेंट हब बनाने का मुद्दा लेकर लोगों के बीच जा रही हैं. गांव की छोटी-छोटी सभाओं में इकरा आसान शब्दों में लोगों से कहती हैं कि आपकी समस्या आपका सांसद ही हल करेगा. शहर का काम और आपका काम करने मोदीजी नहीं आएंगे. अगर आपने फिर उसी सांसद को जिताया, जिसने 5 साल आपको मुंह नहीं दिखाया, तो आपकी समस्याओं का क्या होगा.

इकरा हसन कैराना के पलायन के मुद्दे को एक बड़ा प्रोपेगेंडा करार देती हैं. वह उदाहरण देकर समझाती हैं कि 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में कैराना के पलायन के मुद्दे को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया गया. इस मुद्दे ने देशभर में हिन्दू-मुसलमानों में खाई पैदा कर दी, लेकिन कैराना और शामली की जनता ने बीजेपी को हराकर ये बता दिया कि ये कैराना के लोगों के लिए ये प्रोपेगैंडा है. कैराना के लोगों ने दोनों बार समाजवादी पार्टी को जीत दिलाई, लेकिन कैराना के पोस्टर चित्रकूट में लगे और बीजेपी ने उसे पूरे उत्तर प्रदेश में भुनाया.

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इकरा हसन ने आजतक से बातचीत में कहा कि जयंत चौधरी के पाला बदलने पर उन्हें भी झटका लगा, लेकिन इसकी वजह क्या है, उन्हें नहीं मालूम. उन्हें लगता है कि किसी दबाव में आकर जयंत चौधरी ने यह फैसला लिया है. बता दें कि शामली और कैराना के ज्यादातर लोग फिलहाल खामोश हैं, सभी इस वक्त मुद्दों की बातें कह रहे हैं. चुनाव में अभी वक्त है और लोगों को लगता है कि एक बार फिर चुनाव आते-आते माहौल बीजेपी के पक्ष में बदल सकता है या फिर लोग इकरा के साथ वोटिंग तक डटे भी रह सकते हैं.

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