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जीत के कम चांस या गुटबाजी बनी टेंशन... चुनाव लड़ने से क्यों इनकार कर रहे हैं कांग्रेस के दिग्गज?

क्या कांग्रेस के दिग्गज हारी हुई बाजी पर दांव नहीं लगाना चाहते हैं या फिर पार्टी के अंदर गुटबाजी के चलते खुद के निपटने का डर है. ऐसे सवालों के पीछे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की वो इच्छा है, जिसमें उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने की बात आलाकमान को बताई हैं. 

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चुनाव लड़ने से क्यों इनकार कर रहे कांग्रेस के दिग्गज
चुनाव लड़ने से क्यों इनकार कर रहे कांग्रेस के दिग्गज

देश में लोकसभा चुनाव को अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. इन दिनों सभी दलों में लोगों के आने और जाने का सिलसिला जारी है. लेकिन कांग्रेस में देखने को मिल रहा है कि नेता खुद ही चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से मना क्यों कर रहे हैं, क्या कांग्रेस के नेता मान चुके हैं कि मोदी की जीत पक्की है और कांग्रेस का जीतना संभव नहीं? क्या कांग्रेस के दिग्गज हारी हुई बाजी पर दांव नहीं लगाना चाहते हैं या फिर पार्टी के अंदर गुटबाजी के चलते खुद के निपटने का डर है. ऐसे सवालों के पीछे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की वो इच्छा है, जिसमें उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने की बात आलाकमान को बताई हैं. 

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बीते दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहन गुप्ता ने टिकट मिलने के बाद चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया, यानी टिकट वापस कर दिया. कांग्रेस का कोई नेता टिकट लौटा रहा है तो कोई चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर चुका है. जहां एक ओर राहुल गांधी कांग्रेस की गारंटी को लेकर दम भर रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी के सिपाहियों की कोई गारंटी लेने वाला नहीं, टिकट मिलने के बाद चुनाव लडेंगे या नहीं. 

गुजरात से टिकट वापसी

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहन गुप्ता चंद दिन पहले तक, राहुल गांधी के कंधे से कधा मिलाकर चुनावी अखाड़े में बीजेपी को पटखनी देने का दम भर रहे थे. वे दावा कर रह थे कि इस सरकार की एक्सपायरी डेट करीब आ गई है. जैसे कर्नाटक में BJP का सफाया किया ठीक उसी तर्ज पर देश से सफाया होने वाला है. लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने रोहन गुप्ता को चुनावी जंग में तलवार भांजने के लिए भेजा. रोहन गुप्ता के सुर और तेवर बदल गए. 

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एक तरफ मोदी की अगुवाई में चुनावी युद्ध में ताल ठोक रही भारतीय जनता पार्टी है, दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी यानी राहुल गांधी की कांग्रेस है. एक तरफ टीम मोदी में घर वापसी जारी है तो दूसरी तरफ टीम राहुल में टिकट वापसी. फर्क साफ है बीजेपी में टिकट की मारामारी हैं और कांग्रेस में मानो उम्मीदवारों का अकाल पड़ गया. पार्टी किसी तरह उम्मीदवार तलाश भी रही है लेकिन कोई गारंटी नहीं कि पूरे चुनाव तक टिका पाएगा. कांग्रेस ने अपने फायर ब्रान्ड राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहन गुप्ता को 12 मार्च को टिकट सौंपा. उम्मीद के साथ चुनाव मैदान में झंडे गाड़कर आएंगे. लेकिन चुनाव से पहले ही निजी कारणों से सरेंडर कर दिया. दावा यही है वो खुद तो नहीं लड़ेंगे, लेकिन जो लड़ेगा उसे तन-मन और धन से लड़ाएंगे.

रोहन गुप्ता ने टिकट लौटाने के पीछे निजी कारण बताए उससे पहले कब क्या हुआ, इसे फ्लैश बैक के जरिए समझते हैं. कांग्रेस की पहली लिस्ट आई, रोहन गुप्ता ने सोशल मीडिया पर उम्मीदवारों को बधाई दी. 12 मार्च को कांग्रेस की दूसरी लिस्ट आई, पार्टी ने रोहन गुप्ता को अहमदाबाद ईस्ट से उम्मीदवार घोषित किया. लेकिन न तो रोहन गुप्ता की तरफ से कोई रिएक्शन आया और ना ही अहमदाबाद कांग्रेस इकाई की तरफ से प्रतिक्रिया दी गई. यानी उम्मीदवार का ऐलान होने के बाद प्रत्याशी ने मौन साध लिया, जबकि कांग्रेस के वर्कर्स में कोई जोश नहीं दिखा. छह दिन बाद रोहन गुप्ता सामने आए और दावा किया कि पिता नहीं चाहते कि चुनाव लड़े. 

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यह भी पढ़ें: अहमदाबाद पूर्व से कांग्रेस प्रत्याशी रोहन गुप्ता नहीं लड़ेंगे चुनाव, पिता की खराब सेहत का दिया हवाला

पिता नहीं चाहते कि रोहन गुप्ता चुनाव लड़ें

रोहन गुप्ता के मुताबिक उनके पिता नहीं चाहते कि वो चुनाव लड़ें. पिता के मना करने के बाद भी जब उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला तो घर में तनाव बढ़ गया. उनके पिता की सेहत खराब हो गई, लिहाजा उन्हें मजबूरी में टिकट वापस करना पड़ा, हालांकि बीजेपी नेताओं की मानें तो गुजरात की 26 की 26 सीटों पर बीजेपी जीत की हैट्रिक लगाने वाली है. लिहाजा हार के डर से विपक्षी दलों के नेता चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हार के डर से रोहन गुप्ता ने यूटर्न लिया? अगर पिता विरोध में थे, तो तुरंत क्यों नहीं लौटाया? क्या भीतरघात की आशंका में बदला फैसला? टिकट लौटाकर क्यों पार्टी की फजीहत कराई? इन सब सवालों के जवाब ढूंढने से पहले इस फैक्ट पर गौर करना जरूरी है कि गुजरात नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है, चाहे 2014 हो या फिर 2019 लोकसभा चुनाव. बीजेपी ने राज्य की सभी 26 सीटों पर जीत दर्ज की. यहां तक कि बीते विधानसभा चुनाव में क्लीनस्वीप किया.

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यहां आपको समझना है कि कांग्रेस ने रोहन गुप्ता को अहमदाबाद ईस्ट से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित किया. बीते तीन लोकसभा चुनाव से अहमदाबाद ईस्ट पर BJP का कब्जा है. जीत का मार्जन लाखों में रहा है, यहां तक कि अहमदाबाद ईस्ट लोकसभा के क्षेत्र में आने वाली सभी सात विधानसभा पर बीजेपी का कब्जा है. यानी कांग्रेस के लिए जीत की गुंजाइश ना के बराबर है. हालांकि रोहन गुप्ता दावा कर रहे हैं कि टिकट लौटाने के पीछे सिर्फ और सिर्फ निजी कारण है.

सेफ सीट चाहते थे रोहन?

सियासी गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि रोहन गुप्ता कोई सेफ सीट चाहते थे. लेकिन पार्टी ने उन्हें टफ सीट पर लड़ाने का फैसला किया. यानी सेफ सीट और टफ सीट से मामला उलझ गया. वैसे कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता के दावे को गुजरात की चुनावी राजनीति की कसौटी पर कसकर देखें तो तस्वीर साफ हो जाएगी.

रोहन गुप्ता कांग्रेस के पहले बड़े नेता नहीं जो चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं, इससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री भरत सिंह चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं. प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष अंबरीष डेर पार्टी आलाकमान को बता चुके हैं कि खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे पार्टी को लड़ाएंगे, तो वहीं कुछ दिन पहले ही पोरबंदर से विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया BJP का दामन थाम चुके हैं. BJP का दावा यही है कि हार के डर से कांग्रेस के नेता चुनाव नहीं लड़ना चाहते.

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कांग्रेस के लिए चुनौती

रोहन गुप्ता के टिकट लौटाने के पीछे निजी कारण हो सकते हैं, लेकिन सवाल यही है कि कांग्रेस के ताकतवर सिपाही ही पहले हथियार डाल देंगे तो पार्टी का क्या होगा. कैमरे के सामने BJP को धूल चटाने का दम भरने वाले ही अगर अपने पैर पार्टी के मुश्किल वक्त में पीछे खींच लेंगे तो कांग्रेस का बेड़ा पार कैसे होगा.

इस लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कई राज्यों में कांग्रेस के नेता पहले ही हथियार डाल चुके हैं. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता लोकसभा का चुनाव लड़ने से इनकार कर रहे हैं. अभी तक कांग्रेस की दो लिस्टों को मिलाकर, 82 प्रत्याशियों का एलान हुआ है. कांग्रेस की पहली लिस्ट में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल इन नेताओं का नाम शामिल था. इस लिस्ट के जारी होने के बाद ये चर्चा तेज हो गई कि मध्य प्रदेश में कमनलनाथ, दिग्विजय सिंह, राजस्थान में अशोक गहलोत, सचिन पायलट, उत्तराखंड में हरीश रावत, पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू समेत कई और बड़े नेताओं को नेताओं को पार्टी इस बार लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारेगी.  

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लेकिन कांग्रेस के कई दिग्गज नेता मुकाबले से बाहर खड़े हो गए हैं. किसी ने उम्र का बहाना बनाया, तो कोई बोला नई पीढ़ी को मौका मिले. आखिर क्यों कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं?

जिस तरह से इन लोकसभा चुनावों में बीजेपी का शोर है और राहुल गांधी खुद पूरा जोर लगा रहे हैं और अपने नेताओं को बता रहे हैं कि डरो मत लड़ो. राहुल गांधी ये भी दावा कर रहे हैं कि पीएम मोदी उनसे डरते हैं. अभी तक कांग्रेस के उम्मीदवारों की जो लिस्ट जारी हुई है, उसमें छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और एक दो नामों को छोड़ दें, तो कांग्रेस के ज्यादातर नेता, चुनाव लड़ने में हिचकिचा रहे हैं. इन नेताओं का हौसला बढ़ाने के लिए कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल खुद चुनाव मैदान में उतर रहे हैं, लेकिन सीनियर नेता फिर भी चुनाव से कन्नी काट रहे हैं.

दिग्गजों का चुनाव लड़ने से इनकार

चुनाव लड़ने से मना करने वाले कांग्रेसी दिग्गजों की एक लंबी फेहरिस्त है, तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा बड़े नेता हैं जो इस बार का लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं या फिर चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं. इनमें सबसे पहला नाम है. 

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1- सोनिया गांधी

- हालांकि उनकी उम्र हो चली है, तबीयत कम ठीक रहती है, इसलिए वो राज्यसभा चली गईं हैं. उन्होंने राज्यसभा जाने से पहले रायबरेली के जो कार्यकर्ता हैं, उनको बुलाकर के कहा था कि मैं क्षेत्र में नहीं आ पाती हूं, मैं लोगों से मिल नहीं पाती हूं. इसलिए मैं लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती.

2- मल्लिकार्जुन खरगे
 
खरगे कलबुर्गी से लोकसभा सांसद रह चुके हैं और उस सीट से उनका नाम वहां की राज्य इकाई ने भेजा भी, लेकिन उन्होंने कहा कि मेरी उम्र 83 साल हो गई है. इस उम्र में आकर अब मैं कहां चुनाव लडूंगा. चूंकि वे पार्टी अध्यक्ष हैं, इसलिए तमाम जगहों पर जाकर उन्हें देश भर में रैलियां करनी हैं, प्रचार प्रसार करना है, इसलिए वह एक सीट पर फंसना नहीं चाहते.

3- अशोक गहलोत

गहलोत का कहना है कि वह खुद नहीं लड़ना चाहते, उनकी भी उम्र हो गई हे, उनका कहना है कि वो सोनिया गांधी या खरगे उस लीग के नेता हैं, उनके साथ चलने वाले नेता हैं तो अब नई पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए. इसलिए अपने बेटे को वैभव गहलोत को टिकट दिलाया, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि जोधपुर से पिछली बार लड़कर वैभव गहलोत हारे थे. इस बार उन्हें जालौर सिरोही लोकसभा सीट पर शिफ्ट किया गया है. 

4- दिग्विजय सिंह 

दिग्विजय सिंह का भी कहना है कि अब उम्र बहुत हो गई है, नए लोगों को मौका मिलना चाहिए और मैं तो राज्यसभा में भी हूं. 

5- कमलनाथ 

कमलनाथ ने साफ कहा कि मुझे छिंदवाड़ा में फोकस करना है और वहीं उम्र बहुत हो गई है, नई पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए. नकुलनाथ वहां से सांसद हैं तो नकुलनाथ ही चुनाव लड़ेंगे तो नकुलनाथ का नाम भी वहां से आ गया. 

6- जितेंद्र सिंह 

ये गांधी परिवार के काफी करीबी हैं. अलवर सीट से सांसद रहे हैं, केंद्र में मंत्री रहे हैं. उनका कहना है कि अलवर सीट से अगर वो लड़ने जाते हैं तो प्रभारी महासचिव हैं, मध्य प्रदेश के भी और असम के भी. तो ऐसे में वे चुनाव में फोकस करें या चुनाव लड़ें तो वो भी पीछे हट गए हैं. 

7- सचिन पायलट 

पायलट एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने कहा था कि मैं चुनाव लड़ना चाहता हूं, लेकिन उन्होंने साथ में ये भी जोड़ दिया कि अगर मैं चुनाव लडूंगा तो जीतने के लिए लडूंगा और ऐसे में जो देशभर में उनकी रैलियां लगाई जा रही हैं. उसमें कटौती कर दी जाए, क्योंकि वो अपने क्षेत्र पर फोकस करना चाहेंगे. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने ही कहा कि हमको आपको देश भर में रैलियां करानी हैं, देश भर में प्रचार-प्रसार करवाना है, आप चुनाव लड़ने की बजाय इस काम में ध्यान दीजिए.
 
8- नवजोत सिंह सिद्धू 

पत्नी की बीमारी के चलते नवजोत सिंह सिद्धू ने लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया. उन्होंने पत्नी की देखरेख का हवाला दिया है. लेकिन अब सिद्धू फिर से क्रिकेट कमेंट्री करने आ रहे हैं. ऐसे में उनके विरोधी निशाना साध रहे हैं. 

9- हरीश रावत 

उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत को पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहती है, लेकिन वो चुनाव न लड़ने की बात कह चुके हैं. पार्टी उन्हें हरिद्वार सीट से लड़ाना चाहती है. लेकिन वो अपने बेटे आनंद को टिकट दिलाना चाहते हैं.

कर्नाटक के नेता भी नहीं दिखा रहे दिलचस्पी

इनके अलावा - कर्नाटक के मंत्रियों को कांग्रेस टिकट देना चाहती है जिनमें, एच सी महादेवप्पा को चामराजनगर, के एच मुनियप्पा को कोलार, बी. नागेंद्र को बेल्लारी, सतीश जारकीहोली को बेलगाम, ईश्वर खांद्रे को बिदर और कृष्णा बायरेगौड़ा को कांग्रेस बेंगलुरु उत्तर से उम्मीदवार बनाना चाहती है. इनमें से लगभग सभी मंत्रियों ने चुनाव लड़ने में कोई इच्छा नहीं दिखाई है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सीनियर नेता, चुनाव लड़ने से किनारा कर रहे हैं, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने मध्य प्रदेश की 29 सीटों में से 28 सीटें जीती थीं. राजस्थान के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर रहे हैं, यहां भी 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 25 की 25 लोकसभा सीटें जीती थीं. कांग्रेस के नेताओं उस वक्त मैदान छोड़ रहे हैं, जब मोदी डंके की चोट पर कह रहे हैं अबकी बार बीजेपी को 370 और एनडीए को 400 पार सीटें मिलने जा रही हैं.

इतना ही नहीं, यूपी में अखिलेश के साथ गठबंधन को भी 28 दिन हो चुके हैं, कांग्रेस को गठबंधन में 17 सीटें मिली हैं, लेकिन अभी तक कोई उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं हुई है और तो और कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले रायबरेली और अमेठी में भी कुछ तय नहीं है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे या नहीं? इस पर अबतक कुछ फाइनल नहीं हो सका है. 

कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो रहे कांग्रेस के दिग्गज

ना सिर्फ कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव से भाग रहे हैं, बल्कि कई सीनियर नेता बीजेपी या फिर एनडीए में शामिल हो चुके हैं। इनमें जो बड़े नाम हैं, वो हैं अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा, जगदीश शेट्टार, गीता कोड़ा, बसवराज पाटील, सुरेश पचौरी, आकृति गौसाईं रावत, अजय कपूर.

कांग्रेस का हाथ झटक कर, बीजेपी की तरफ भागते अपने नेताओं पर कांग्रेस का कहना है कि ये सब ईडी का डर है. सवाल ये है कि कांग्रेस की आने वाली लिस्ट में क्या कोई बड़ा नाम सामने आएगा?

आपको बता दें कि देशभर में 200 सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है और बीजेपी अपनी आधी से ज्यादा सीटों पर कैंडिडेट के नाम का ऐलान कर चुकी है और पीएम मोदी ताबड़तोड़ रैलियां करके सियासी फिजा को अपने पक्ष में करने में जुट गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियां और चुनावी कैंपेन से बीजेपी को पूरा विश्वास है कि अबकी बार एनडीए 400 पार जाएगा. पिछली बार कई राज्यों में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था, खासकर मध्य प्रदेश और राजस्थान में, कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया. उसके बावजूद कांग्रेस के नेता चुनावी मैदान में उतरने को तैयार नहीं है.

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