लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान में सिर्फ 10 दिन का समय बाकी रह गया है. ऐसे में पश्चिम यूपी में क्षत्रिय संगठनों की नाराजगी ने बीजेपी रणनीतिकारों की चिंता बढ़ा दी है. सहारनपुर के बाद अब मेरठ, मुज़फ्फरनगर में भी क्षत्रिय महापंचायत की घोषणा से पार्टी जहां स्थिति का आकलन करने में जुटी है वहीं ये नाराज़गी पूर्वांचल तक न फैले इसके लिए भी मंथन शुरू हो गया है.क्षत्रिय संगठनों ने बीजेपी पर क्षत्रिय समाज का राजनीतिक प्रतिनिधित्व घटाने और उनके महत्व को कम करने का आरोप लगाया है.
यूपी की राजनीति में अचानक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षत्रिय समाज के नेताओं ने जो बागी अंदाज दिखाया है, उससे बीजेपी में हलचल मच गई है. ऐन चुनाव से पहले जब पार्टी हर जाति को साधकर सियासी संदेश देने की कोशिश कर रही है, ऐसे में पश्चिम में नाराज क्षत्रिय संगठन सक्रिय दिखाई पड़ रहे हैं, लेकिन ये सक्रियता बीजेपी के खिलाफ जा सकती है क्योंकि समाज के नेताओं ने गांव-गांव में बैठक करके आरोप लगते हुए क्षत्रिय समाज को ये बताना शुरू कर दिया है कि बीजेपी क्षत्रियों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व और ताकत को कम कर रही है.
राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम होने पर नाराजगी, क्या है वजह ?
दरअसल, मामला लोकसभा के क्षत्रिय समुदाय के लोगों को टिकट देने का है. क्षत्रिय संगठन इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि उनको पहले के मुकाबले टिकट वितरण में कम भागीदारी दी गई. इससे उनकी सियासी प्रतिनिधित्व तो घटेगा ही, उनका महत्व भी कम आंकने की कोशिश है. सहारनपुर में इस बात को रखने के लिए न सिर्फ 'क्षत्रिय महाकुंभ' के नाम पर क्षत्रिय पंचायत बुलाई गई बल्कि बीजेपी के खिलाफ बगावती सुर विरोध और बॉयकॉट तक जा पहुंचा. बाकायदा ये कहा गया कि क्षत्रिय बीजेपी के परम्परागत वोट रहे हैं, इसलिए अब पार्टी उनको नजरंदाज कर रही है. इसके लिए उनका सियासी प्रतिनिधित्व घटाया जा है. महापंचायत में ये बात रखी गई कि बीजेपी ने अब तक घोषित टिकट में सिर्फ 8 टिकट क्षत्रिय समुदाय को टिकट दिए हैं, जबकि 2019 और 2014 में क्षत्रिय नेताओं को ज़्यादा प्रतिनिधित्व मिला था.
साथ ही ये भी आरोप लगाया गया कि पश्चिम क्षेत्र में आने वाली लोकसभा सीटों में जहां हर जिले में क्षत्रिय वोटों कि संख्या 1 से 1.5 लाख से ऊपर हैं, वहां सिर्फ एक ठाकुर सर्वेश सिंह को मुरादाबाद से टिकट दिया गया है. यहां तक कि गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में जहां 4 से 5 लाख क्षत्रिय वोटर हैं, वहां उनको प्रतिनिधित्व नहीं मिला. इसके अलावा सहारनपुर की पंचायत में पिछले राजा मिहिर भोज नाम पर हुए एक कार्यक्रम की भी बात की गई. ये कहा गया कि गुर्जर समुदाय के लोगों ने जिस तरह क्षत्रिय समुदाय की भावनाओं को ठेंस पहुंचाने का प्रयास किया है, उसमें बीजेपी के नेता भी शामिल थे. प्रमुख रूप से प्रदीप चौधरी का नाम लिया गया.प्रदीप चौधरी को बीजेपी ने दोबारा कैराना से टिकट दिया है.
हालांलिक राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि क्षत्रियों की हिस्सेदारी कम नहीं हुई है. अभी हाल के समय में जो निषाद या राजभर जैसी जातियों ने प्रेशर टैक्टिक्स अपनाई है, अब ऐसे पैन-यूपी जाति के संगठनों को भी लगने लगा है कि इससे वो अपनी बात कह कर एक सीमित क्षेत्र में प्रभाव डाल सकते हैं.
पूर्वांचल के क्षत्रिय चेहरों को लेकर बीजेपी की बेचैनी?
बीजेपी इस तरह के किसी विरोध के जवाब में यही तर्क देती नज़र आ रही है कि पार्टी ने संगठन, विधानसभा और विधान परिषद में क्षत्रियों को पर्याप्त हिस्सेदारी दे रखी है. पर नाराजगी कम होने की जगह महापंचायत की घोषणा मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर में भी कर दी है. इसके बाद बीजेपी के लिए मुश्किल ये है कि पश्चिमी यूपी से से उठी विरोध की लहरें पूर्वांचल की राजनीति को भी न प्रभावित करें, ये तय करना पार्टी के लिए जरूरी है. पूर्वांचल में पहले से ही क्षेत्र विशेष में कई क्षत्रिय नेताओं का प्रभाव रहा है. बृजभूषण शरण सिंह, धनंजय सिंह, रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' जैसे नेताओं के प्रभाव और सियासी दबाव को कई बार बीजेपी ने महसूस किया है. अब ऐन चुनाव के समय इसी की चिंता हो सकती है कि ये नाराजगी कहीं पूर्वांचल तक न फैले, जहां के जातीय समीकरण पश्चिमी यूपी के मुक़ाबले पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.
लाभार्थी और मोदी पर है चुनाव
कैसरगंज के सांसद बृजभूषण सिंह के टिकट को लेकर पार्टी अभी तक निर्णय नहीं कर पाई है. लेकिन बृजभूषण ने अपने पुराने तेवर दिखाते हुए कैसरगंज से ही लड़ने की इच्छा जता दी है. जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह जेल में हैं, पर उनका जिले में ठाकुरों पर प्रभाव बताया जाता है, यहां तक कि बीजेपी के कई स्थानीय नेता और विधायक भी उनके करीबी हैं. ऐसे में इस बात को लेकर भी पार्टी इस क्षेत्र में कोई चूक नहीं करना चाहती. कहा जा रहा है कि प्रतापगढ़ और कौशांबी संसदीय सीट पर सीधा और आसपास के जिलों में क्षत्रिय की राजनीति में प्रभाव रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह भी भाजपा से खुश नहीं हैं. राजा भैया ने राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की थी. पर अब क्षत्रिय अस्मिता और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के सवाल पर राजा भैया का रुख़ क्या रहता है, ये बात भी बीजेपी की बेचैनी बढ़ा सकती है. ऐसे में पश्चिम की आंच पूर्वाचल को झुलसा सकती है.
बीजेपी नेतृत्व का ध्यान इस ओर है और आने वाले समय में बृजभूषण के टिकट से लेकर पार्टी के कई फैसले इस राजनीति की ओर संकेत कर सकते हैं. हालांकि अब तक 'क्षत्रिय प्राइड' की बात को यूपी के मुख्यमंत्री से जोड़ कर भी क्षत्रिय समाज के संगठन गर्व का अनुभव और प्रदर्शन भी करते रहे हैं. पर टिकट वितरण के बाद ये विरोध शुरू हो गया है. राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि इस चुनाव को बीजेपी बिल्कुल अलग तरह से लड़ रही है. इसमें मायनॉरिटी बनाम मैजोरिटी है. इसमें लाभार्थी हैं, मोदी का नाम है. ऐसे में ये छोटे छोटे विरोध के स्वर बीजेपी के बड़े प्लान को डेंट नहीं कर पाएंगे. इसके अलावा बीजेपी के लिए ये बात भी है कि सूबे की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथ में है. मंत्री पद में भागीदारी है, नौकरशाही में भागीदारी है.इसलिए ये विरोध पूरी तसवीर को नहीं प्रभावित करता.