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MP में बीजेपी का 'बंगाल मॉडल'! विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों-सांसदों को क्यों उतार रही बीजेपी?

बीजेपी ने मध्य प्रदेश चुनाव में भी पश्चिम बंगाल मॉडल पर कदम बढ़ा दिए हैं. बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ ही चार सांसदों को टिकट दिया है. बीजेपी विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को क्यों उतार रही है? 

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मध्य प्रदेश में बीजेपी ने बड़े चेहरों पर लगाया दांव
मध्य प्रदेश में बीजेपी ने बड़े चेहरों पर लगाया दांव

मध्य प्रदेश चुनाव के लिए सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी है. इसमें 39 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित किए गए हैं. बीजेपी की इस लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार सांसदों के भी नाम हैं. बीजेपी ने प्रह्लाद सिंह पटेल को उनके भाई जालम सिंह पटेल की जगह नरसिंहपुर से टिकट दिया है. वहीं, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर-1 से उम्मीदवार बनाया हैं.

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मध्य प्रदेश कांग्रेस ने एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा है कि हार को सामने देखकर रावण ने कुंभकर्ण, अहिरावण, मेघनाद सबको उतार दिया था. बस यही दूसरी लिस्ट में हुआ है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने उम्मीद का आखिरी झूठा दांव बताया है. कमलनाथ ने एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा है कि 18 साल 6 महीने की भाजपाई सरकार और 15 साल के शिवराजी विकास के दावों को नकारने वाली ये सूची करोड़ों कार्यकर्ताओं की पार्टी का दावा करने वाली बीजेपी की आंतरिक हार पर पक्की मोहर है.

ये भी पढ़ेंतीन केंद्रीय मंत्री समेत 7 सांसदों को विधानसभा का टिकट... MP में बीजेपी की दूसरी लिस्ट के सियासी संदेश

कमलनाथ इसे हार स्वीकार करना बता रहे हैं तो वहीं बीजेपी आक्रामक चुनाव रणनीति. सवाल ये भी उठने लगे हैं कि क्या नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल जैसे नेताओं की राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिकता खत्म हो गई है?

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ये कोई पहला मौका नहीं है जब बीजेपी ने किसी राज्य के चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों पर दांव लगाया हो. पार्टी यूपी, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में भी ये प्रयोग कर चुकी है. बीजेपी ने 2022 के यूपी चुनाव में केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ करहल सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. बघेल चुनाव हार गए लेकिन अखिलेश को मजबूत चुनौती दी थी. त्रिपुरा में केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने भी विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतीं भी. बघेल और भौमिक का केंद्र में मंत्री पद बरकरार रहा.

पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी बीजेपी ने बाबुल सुप्रियो के साथ ही सांसद लॉकेट चटर्जी और निशिथ प्रमाणिक समेत पांच सांसदों को उम्मीदवार बनाया था. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता को हार मिली. निशिथ प्रमाणिक 57 वोट के करीबी अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे और जगन्नाथ सरकार ने भी अपनी सीट निकाली. बीजेपी के तीन हैवीवेट उम्मीदवार भले ही अपनी सीट भी नहीं जीत पाए हों लेकिन आसपास की कई सीटों पर पार्टी की जीत के लिए उनको श्रेय दिया गया था.

बीजेपी की सीटों में जबरदस्त इजाफा हुआ और पार्टी सत्ताधारी टीएमसी के बाद सीटों की संख्या के लिहाज से दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी. हालांकि, बाबुल सुप्रियो को अपनी सीट पर हार का खामियाजा मंत्री पद से हाथ धोकर भुगतना पड़ा. निशिथ प्रमाणिक को जीत का इनाम मिला और वे मोदी मंत्रिमंडल में जगह बनाने में सफल रहे. अब बीजेपी ने जब नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को मध्य प्रदेश के रण में उतार दिया है तो इसे इन नेताओं के लिए अग्निपरीक्षा की तरह देखा जा रहा है.

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कहा तो ये भी जा रहा है कि नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के लिए अब केंद्र की राजनीति में वजूद, मोदी मंत्रिमंडल में कुर्सी और 2024 चुनाव का टिकट इस चुनाव में दांव पर है. नरेंद्र सिंह तोमर समेत तीनों केंद्रीय मंत्रियों की सियासत का भविष्य क्या होगा? 2023 का चुनाव परिणाम इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो गया है. चुनावी दरिया पार करने में सफल रहे तो आगे की राह आसान होगी और अगर डूब गए तो सियासत पर ग्रहण होगा.

एक सीट पर नजर, कई सीटों पर निशाना

बीजेपी 2018 के चुनाव नतीजों से सबक लेकर 2023 के लिए व्यूह रचना में जुटी है. ग्वालियर रीजन में कांग्रेस भारी पड़ी थी और इंदौर में भी बीजेपी का गणित गड़बड़ हो गया था. ग्वालियर में कांग्रेस के खेवनहार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी में आ चुके हैं लेकिन पार्टी किसी तरह की ढिलाई बरतने के मूड में नहीं है. नरेंद्र सिंह तोमर की गिनती ग्वालियर संभाग के प्रभावशाली नेताओं में होती है. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का ग्वालियर के साथ ही गुना और मुरैना में भी अच्छा प्रभाव है. वहीं, कैलाश विजयवर्गीय इंदौर, गणेश सिंह सतना, राकेश सिंह जबलपुर, उदयप्रताप सिंह होशंगाबाद, रीति पाठक सीधी क्षेत्र में प्रभावशाली नेता हैं. ये नेता जिन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनके साथ ही आसपास की सीटों कई सीटों पर भी परिणाम प्रभावित कर पार्टी की सीटों की संख्या बढ़ा सकते हैं.

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सामूहिक नेतृत्व का फॉर्मूला या शिवराज की घेराबंदी

केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को टिकट के पीछे बीजेपी की सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले को धार देने की रणनीति भी एक वजह बताई जा रही है. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी किसी एक नेता को उम्मीदवार बताने से बच रही है और सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. जब नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय जैसे चेहरों की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ,उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भोपाल में थे.

पीएम मोदी ने भोपाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं के महाकुंभ को संबोधित किया. अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने सीएम शिवराज का नाम नहीं लिया. बीजेपी के सत्ता में आने पर सीएम कौन बनेगा? इसे लेकर सस्पेंस अब और गहरा गया है.

नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय, दोनों को ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का करीबी माना जाता है. पिछले चुनाव में आकाश विजयवर्गीय को बीजेपी से टिकट मिलने के बाद कैलाश विजयवर्गीय चुनाव नहीं लड़ पाए तो इसके पीछे भी शिवराज के 'एक परिवार, एक टिकट' फॉर्मूले को जिम्मेदार माना गया. बीजेपी ने अबकी विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर को टिकट देकर ये संदेश दे दिया है कि मध्य प्रदेश में शिवराज ही बीजेपी नहीं हैं.

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