
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों के चुनाव विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के लिए लोकसभा चुनाव से पहले लिट्मस टेस्ट की तरह माने जा रहे हैं. करीब-करीब सभी चुनावी राज्यों में कांग्रेस मुख्य दल है, उत्तर प्रदेश और बिहार से इतर मजबूत है लेकिन इन मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) जैसी पार्टियां भी मौजूदगी दर्ज कराती रही हैं.
कांग्रेस और सपा के बीच मध्य प्रदेश में गठबंधन के लिए बात भी चल रही थी जो अब फेल हो चुकी है. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या सियासी टीम I.N.D.I.A. बिना किसी प्रैक्टिस मैच के सीधे वर्ल्ड कप में उतरेगी? ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हाल ही में यूपी, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और केरल की कुछ सीटों के लिए हुए उपचुनाव में भी कई जगह इंडिया गठबंधन के घटक दल एक-दूसरे के सामने ताल ठोकते नजर आए थे.
उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी सीट हटा दें तो कहीं भी विपक्ष एकजुट नजर नहीं आया था. घोसी में कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी, लेफ्ट के दल और अन्य छोटी-बड़ी विपक्षी पार्टियों के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर सपा का समर्थन किया था. लेकिन पड़ोसी उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर ही सपा ने कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया था. कांग्रेस ने बागेश्वर की हार के बाद सपा के इस कदम पर नाराजगी जताई थी.
यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने तो यहां तक कह दिया था कि हमने घोसी में बड़ा दिल दिखाया लेकिन सपा ने नहीं दिखाया. अब मध्य प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन की कवायदों पर ब्रेक की खबरों के बीच अखिलेश यादव ने साफ कह दिया है कि मध्य प्रदेश में नहीं हुआ तो भविष्य में भी प्रदेश स्तर पर गठबंधन नहीं होगा. सपा प्रवक्ता सुनील साजन ने कहा है कि कांग्रेस का मन छोटा है. पश्चिमी यूपी में अच्छा प्रभाव रखने वाली राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) भी इसे लेकर मुखर हो गई है.
आरएलडी की चर्चा इसलिए, क्योंकि ये पार्टी भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है और राजस्थान में कांग्रेस के साथ इस पार्टी का भी गठबंधन है. सपा के कांग्रेस के साथ एक गठबंधन में आने के पीछे नीतीश कुमार की पहल ही नहीं, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी की पर्दे के पीछे भूमिका भी चर्चा में रही है. आरएलडी प्रवक्ता भूपेंदर चौधरी ने इसे लेकर कहा है कि मध्य प्रदेश की बिजावर सीट पर सपा का विधायक है. कांग्रेस ने वहां उम्मीदवार उतार दिया.
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आरएलडी का ये बयान राजस्थान के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने हाल ही में राजस्थान में अधिक सीटों की डिमांड करते हुए कहा था कि पिछली बार दो सीटों पर गठबंधन हुआ था लेकिन ऐसी सीटें जहां कांग्रेस हार गई थी, गठबंधन के साथ वहां हम जीत सकते हैं.
भूपेंदर चौधरी ने आगे कहा कि कहा कि राष्ट्रीय पार्टियां हिस्सा नहीं देंगी तो क्या क्षेत्रीय पार्टियां अपना वजूद खो दें? कांग्रेस बड़ा दल है. सीटें देकर बड़ा दिल दिखाना चाहिए लेकिन नहीं. कुर्बानी की बारी आए तो ये छोटी पार्टियां करें. ये रवैया गठबंधन के लिए ठीक नहीं है. ये कुर्बानी ही इंडिया गठबंधन के गठन के बाद से भविष्य को लेकर संशय की सबसे बड़ी वजह रहा है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गठबंधन की कवायद जब शुरू हुई थी, तभी एक फॉर्मूला दिया था. उन्होंने कहा था कि जो दल जहां मजबूत है, वो वहां लड़े. कांग्रेस के साथ ही तमाम पार्टियों में इसे लेकर अंदरखाने विरोध शुरू हो गया था. लेकिन उपचुनावों में भी यही फॉर्मूला अमल में आता नजर आया था.
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उत्तर प्रदेश में सपा मजबूत है तो वहां कांग्रेस और अन्य दलों ने कुर्बानी दी, उसके उम्मीदवार का समर्थन किया और नतीजा जीत के रूप में मिला. पश्चिम बंगाल की धूपगुड़ी सीट पर ममता बनर्जी की पार्टी ने उम्मीदवार उतारा तो कांग्रेस और लेफ्ट ने भी साझा उम्मीदवार उतार दिया. कांग्रेस-लेफ्ट को हार मिली. उत्तराखंड के बागेश्वर में सपा ने कैंडिडेट उतार दिया और कांग्रेस हार गई. केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के बीच ही आमने-सामने का मुकाबला हो गया.
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घोसी सीट हटा दें तो विपक्षी गठबंधन उपचुनाव में समीकरण टेस्ट करने का मौका गंवा बैठा. अब मध्य प्रदेश, राजस्थान के चुनाव में कांग्रेस के पास मौका था कि जिस बड़ा दिल को लेकर वह सपा को घेरती रही है, खुद बड़ा दिल दिखाकर एक उदाहरण सेट करती. लेकिन पार्टी उन राज्यों में जहां मजबूत स्थिति में है, वहां वह भी जो जहां मजबूत वाले ममता बनर्जी के फॉर्मूले पर ही बढ़ती दिख रही है जिसे इंडिया गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता.