मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में तत्कालीन गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की हार के चर्चे हर तरफ हो रहे हैं. दतिया सीट से लगातार तीन बार चुनाव जीतने वाले मिश्रा को इस बार निराशा हाथ लगी है. हार के बाद नरोत्तम का बयान सुर्खियों में है. उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, मैं लौटकर वापस आऊंगा. ये मेरा आपसे वादा रहा है. इस बीच, चर्चाएं यह भी जोर पकड़ने लगी हैं कि नरोत्तम उपचुनाव लड़ सकते हैं और वो सीट मुरैना जिले की दिमनी भी हो सकती है.
बता दें कि दतिया सीट से नरोत्तम चौथी बार चुनाव लड़ रहे थे. यहां से कांग्रेस उम्मीदवार भारती राजेंद्र ने 7,742 वोटों से जीत हासिल की है. इससे पहले नरोत्तम मिश्रा ने 2008, 2013 और 2018 में जीत हासिल की है. विधानसभा की कुल 230 सीटों में से बीजेपी ने 163 सीटें जीती हैं. कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई है.
'सीएम शिवराज के करीबी हैं नरोत्तम'
बताते चलें कि नरोत्तम मिश्रा मध्य प्रदेश सरकार में हैवीवेट मंत्रियों में गिने जाते हैं, लेकिन इस बार चुनाव में हार की वजह से उनके पॉलिटिकल करियर पर चर्चाएं होने लगी हैं. इस सबके बीच नरोत्तम के बयान का भी एनालिसिस होने लगा है. दरअसल, बीजेपी ने 2018 के चुनाव में हारी हुई सीटों को जीतने के लिए तीन केंद्रीय मंत्रियों, चार सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को टिकट दिया था. पार्टी ने चुनाव से करीब 100 दिन पहले इन नामों का ऐलान कर दिया था.
'दिमनी से नरेंद्र सिंह तोमर ने जीता चुनाव'
इन नामों में सिर्फ सतना से सांसद गणेश सिंह और मंडला की निवास सीट से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते चुनाव हारे हैं. बाकी अन्य सीटों पर सभी ने चुनावी जीत हासिल की है. इसमें एक नाम मुरैना जिले की दिमनी सीट का भी है. यहां से पार्टी ने केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा था. इस चुनाव में तोमर ने बसपा उम्मीदवार बलवीर सिंह दंडौतिया को हराया था. अब नरोत्तम की हार और कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव करीब आने से इस सीट के भविष्य को लेकर भी चर्चाएं हो रही हैं.
'एक जिम्मेदारी छोड़ेंगे तोमर'
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी ने दिमनी सीट जीतने का टारगेट तय किया था और उसे संघर्ष के साथ हासिल भी कर लिया है. लेकिन, वो मुरैना से सांसद भी हैं. लोकसभा चुनाव करीब आ गए हैं और नरेंद्र सिंह तोमर पार्टी के सीनियर नेता हैं. वे केंद्र में कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभालते हैं. अब उन्हें एक कोई जिम्मेदारी छोड़नी पड़ेगी. विधायक या सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ेगा.
'केंद्रीय राजनीति में रहना पसंद कर सकते हैं तोमर'
एक अन्य जानकार कहते हैं कि यह संभावना कम ही है कि वो केंद्र की राजनीति से दूर होंगे. यानी सांसद पद से इस्तीफा देने के चांस कम हैं. वे पीएम मोदी के करीबी मंत्रियों में भी गिने जाते हैं. मुरैना सीट से लोकसभा चुनाव जीतना भी हर किसी नेता के लिए आसान नहीं हैं. हालांकि, अंतिम फैसला पार्टी संगठन और नरेंद्र सिंह तोमर को ही लेना है. अगर तोमर सीएम नहीं बनाए जाते हैं तो कयासबाजी से इंकार नहीं किया जा सकता है.
'नरोत्तम के उपचुनाव लड़ने की संभावनाएं'
इधर, नरोत्तम मिश्रा के अनुभव का पार्टी हर हाल में फायदा उठाना चाहेगी. लेकिन, मध्य प्रदेश में उच्च सदन यानी विधान परिषद (एमएलसी) नहीं है. ऐसे में सदन तक पहुंचने के लिए सिर्फ विधानसभा का चुनाव लड़ना ही एकमात्र उपाय है. अब उनकी हार के बाद उपचुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. नरोत्तम ग्वालियर-चंबल इलाके से आते हैं और वहां फिलहाल एकमात्र दिमनी सीट ही ऐसी है, जहां उपचुनाव की संभावना बन सकती है.
'तो दिमनी के लिए तलाशना होगा मजबूत चेहरा'
अगर नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी सीट से विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देते हैं तो पार्टी के लिए एक कोई मजबूत चेहरे की तलाश होगी, जो यह कांटे की लड़ाई वाली सीट पर जीत हासिल कर सके. नरोत्तम के लिए दिमनी सीट कितना आसान और चैलेंजिंग होगा, इसे लेकर अलग-अलग फैक्टर पर निर्भर करता है. यह संभावना कम ही जताई जा रही है कि नरेंद्र सिंह तोमर ने जिस लड़ाई को अपने वर्चस्व से जोड़कर लड़ी है, वो आसानी से हाथ से नहीं जाने दे सकते हैं. बीजेपी से जुड़े लोग बताते हैं कि मुरैना संसदीय सीट के अंतर्गत ही दिमनी विधानसभा सीट आती है. 2018 के चुनाव में इस सीट से नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी नेता को टिकट दिया था. हालांकि, वो हार गए थे. अब जब तोमर ने यह सीट जीत ली तो वो चाहेंगे कि यहां से उनसे जुड़े ही किसी नेता को उपचुनाव में टिकट दिया जाए. तोमर के लिए भी यह कम्फर्टेबल रहेगा.
'दिमनी में ठाकुर और ब्राह्मणों का वर्चस्व'
दिमनी सीट पर ब्राह्मण और ठाकुर वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. इस चुनाव में बसपा ने बलवीर सिंह दंडौतिया पर दांव खेला था. वे ब्राह्मण समाज से आते हैं. कांग्रेस ने तोमर समाज से उम्मीदवार उतारा था. ऐसे में दो तोमर और एक ब्राह्मण उम्मीदवार होने से यह लड़ाई कहीं ना कहीं ब्राह्मण बनाम ठाकुर के बीच देखी गई. अंत में नरेंद्र सिंह तोमर ने बाजी मार ली.
'नरोत्तम का ग्वालियर-चंबल में प्रभाव'
नरोत्तम मिश्रा को लेकर कहा जा रहा है कि उन्होंने दतिया से पहले ग्वालियर जिले की डबरा सीट से भी चुनाव लड़ा है और जीत हासिल की है. बाद में वो दतिया सीट से चुनाव लड़ने लगे. दतिया और दिमनी के बीच 140 किमी की दूरी है. नरोत्तम मिश्रा ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. अगर बीजेपी मिश्रा को दिमनी से टिकट देती है तो वहां सोशल इंजीनियरिंग दुरुस्त करने में बड़ी मदद मिल सकती है. ठाकुर के साथ-साथ ब्राह्मण समाज को भी अपने पाले में किया जा सकता है. इसके लिए नरोत्तम पर बड़ी चुनौती रहेगी. लेकिन, उनके राजनीतिक अनुभव और प्रभाव का इस्तेमाल भी पार्टी के लिए काम आ सकता है.
'तोमर का साथ मिला तो बन सकती है बात!'
वोटर्स की बात करें तो नरोत्तम को दिमनी तो थोड़ा मेहनत और मशक्कत जरूर करनी पड़ेगी. वोटर्स का भरोसा जीतना और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ कदमताल करके चलने की रणनीति पर भी काम करना होगा. नरेंद्र सिंह तोमर की मदद से मिश्रा की राह आसान भी हो सकती है.
दिमनी में काम आई बीजेपी की रणनीति
बीजेपी ने रणनीति के तहत केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को दिमनी सीट से मैदान में उतारा था. यह रणनीति काम कर गई है. केंद्रीय मंत्री तोमर 24 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए हैं. बसपा उम्मीदवार बलवीर सिंह दंडौतिया दूसरे नंबर पर रहे हैं. कांग्रेस उम्मीदवार रविंद्र सिंह तोमर तीसरे नंबर पर आए हैं. इससे पहले 2018 में बीजेपी को हार मिली थी. कांग्रेस से गिरिराज दंडौतिया चुनाव जीते थे. 2020 में गिरिराज बीजेपी में शामिल हो गए थे. उपचुनाव में बीजेपी ने गिरिराज पर दांव खेला और वो हार गए. कांग्रेस के रविंद्र तोमर ने बाजी मारी थी. 1980 से 2008 तक यहां पर बीजेपी का दबदबा रहा है. 2013 में बसपा को जीत मिली थी.
'क्या हैं दिमनी के सियासी समीकरण'
बीजेपी ने अपने गढ़ में फिर से वापसी करने के लिए नरेंद्र सिंह तोमर पर दांव खेला था, जो सफल रहा है. ग्वालियर-चंबल को लेकर कहा जाता है कि वहां खासतौर पर जातिगत समीकरण ही किसी उम्मीदवार के सियासी भविष्य का फैसला करते हैं. दिमनी विधानसभा सीट पर ठाकुर और ब्राह्मण वोटर्स ही उम्मीदवारों की हार-जीत तय करते हैं. ठाकुर वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. उसके बाद निर्णायक स्थिति में ब्राह्मण वोटर्स हैं. यहां ठाकुर समाज का 84 हजार, ब्राह्मण का 20 हजार, गुर्जर 12 हजार और अनुसूचित जाति वर्ग से 25 हजार वोटर्स हैं. ओबीसी वर्ग में कुशवाह, गुर्जर, यादव, बघेल और लोधी के वोटर्स की संख्या भी अच्छी खासी है.
नरोत्तम ने कार्यकर्ताओं से क्या कहा है...
नरोत्तम मिश्रा ने कहा, मैं दतिया और राज्य की जनता को धन्यवाद देना चाहता हूं. हमें हमेशा लोगों के जनादेश को स्वीकार करना चाहिए. लोगों द्वारा लिया गया निर्णय हमेशा सही होता है. शायद मैं सेवा नहीं कर सका. इसलिए उन्होंने किसी और को चुना. शायद वो (कांग्रेस उम्मीदवार) दतिया की जनता की भलाई के लिए काम करेंगे, यही सबने सोचा होगा.' इससे पहले नरोत्तम मिश्रा ने कहा, सरकार आपकी, ललकार आपकी और दलकार आपकी. किसी भ्रम में मत आ जाना, समुद्र का पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना. मैं लौट कर आऊंगा, ये वादा है और दोगुनी गति और ऊर्जा से वापसी करूंगा. उन्होंने शायरी भी सुनाई और कहा, इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ऐ बेखबर, तेरी जीत से ज्यादा चर्चे मेरी हार के हैं. उन्होंने यह बात दतिया से भोपाल जाते वक्त कही. उन्होंने पार्टी वर्कर्स से कहा, क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं. कर्म पथ पर जो भी मिला, यह भी सही वह भी सही. मैं लौटकर आऊंगा ये वादा है.
क्या रहा मध्य प्रदेश में चुनावी रिजल्ट?
मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 163 सीटें जीती हैं. कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई है. शिवराज सरकार के 33 मंत्रियों में से 12 चुनाव हार गए. जबकि एक मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने चुनाव नहीं लड़ा था. वहीं, ओपीएस भदौरिया का टिकट काट दिया गया था. हरदा से कृषि मंत्री कमल पटेल, पोहरी से मंत्री सुरेश धाकड़ राठखेड़ा, बमोरी से मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया, बड़वानी से प्रेम सिंह पटेल, अटेर अरविंद सिंह भदौरिया, बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और पोहरी से सुरेश धाकड़ ने भी अपनी-अपनी सीट गंवा दी. इनमें से सुरेश धाकड़, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, महेंद्र सिंह सिसौदिया को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थक माना जाता है.