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मध्यप्रदेश में आगामी 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है. चुनाव आयोग आदिवासी बहुल झाबुआ और अलीराजपुर जिलों में कम मतदान की आशंका है. इसकी वजह है- पलायन. इसी के चलते जिला प्रशासन की तरफ से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक आदि राज्यों में रोजगार की तलाश में पलायन कर गए नागरिकों को बुलावा भेजा जा रहा है. बाकायदा कॉल सेंटर बनाकर उन्हें मतदान के लिए प्रोत्साहित और आमंत्रित करने का अभियान शुरू किया है.
झाबुआ जिले में करीब 1 लाख और अलीराजपुर जिले में 81 हजार 92 पलायन कर चुके मतदाताओं की सूची प्रशासन ने ग्राम पंचायतों के माध्यम से तैयार की है. अब दोनों जिलों में कॉल सेंटर बनाकर दर्जनों कर्मचारियों की तैनाती की गई है. यह सभी कॉल सेंटर सुबह 10 से लेकर शाम 6 बजे तक अंचल के इन प्रवासी मजदूरों को मतदान के लिए अपने गांव आने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ आमंत्रित भी करेंगे.
जिला पंचायत झाबुआ की सीईओ रेखा राठौड़ ने बताया कि झाबुआ जिले में 60 हजार स्थाई और 40 हजार स्थाई श्रमिक हैं. जो अभी पलायन पर हैं. हम स्वीप गतिविधियों के तहत इन्हें श्रम विभाग की मदद से मतदान के लिए आमंत्रित कर रहे हैं.
वहीं, अलीराजपुर जिले के कलेक्टर डॉक्टर अभय बेडेकर ने बताया कि हमारे यहां के कॉल सेंटर में 27 कर्मचारियों को तैनात किया गया है. पलायन कर गए मतदाताओं को जागरूक कर आमंत्रित करने का अभियान जारी है.
कलेक्टर का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि लोग अपने अमूल्य मत का इस्तेमाल करने अपने गांव लौटेंगे और मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में योगदान देंगे. गौरतलब है कि अलीराजपुर के जोबट विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम मतदान का इतिहास रहा है. साल 2018 में महज 48 प्रतिशत ही मतदान हुआ था. इस बार आदिवासी अंचल में भारी पलायन से भारत निर्वाचन आयोग भी चिंतित है, इसलिए काल सेंटर के जरिए प्रवासी मजदूरों को मतदान के लिए बुलाने की कोशिश हो रही है.
लेकिन आज भी पलायन जारी है...
पश्चिम मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ और अलीराजपुर से पलायन कर गए मतदाताओं को वापस बुलाने की कोशिश जारी है. लेकिन कॉल सेंटर बनाने के बावजूद इन दोनों जिलों से दर्जनों बसें प्रतिदिन टूरिस्ट परमिट पर आदिवासी मजदूरों को गुजरात ले जा रही हैं. मतदान को आज से मात्र 18 दिन बचे हैं लेकिन आदिवासी मतदाता रोजगार की तलाश में बदस्तूर इन टूरिस्ट बसों के जरिए गुजरात के अलग अलग शहरों में जा रहे हैं.
सोमवार 30 अक्टूबर को भी दर्जनों बसों में बैठकर आदिवासी श्रमिक पलायन करते देखे गये. गुजरात के मोरबी जा रहे एक आदिवासी युवक दिनेश मैडा ने बताया कि हमारे लिए चुनाव की उपयोगिता ज्यादा नहीं है. इससे हमारा नहीं, नेताओं का भला होता है. इसलिए हम जा रहे हैं. वोट डालने नहीं आएंगे.
इसी तरह की बात झाबुआ के राणापुर से पलायन कर गुजरात के मोरबी जा रहे मगजीभाई ने भी कही. अधेड़ उम्र के मगजीभाई का कहना है कि मनरेगा यहां कागजों पर है. हमें काम मिलता नहीं, इसलिए दूसरे राज्य जाना मजबूरी है.