महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है. बावजूद इसके मंगलवार को शिवेसना ने 124 और बीजेपी ने 125 सीटों अपने प्रत्याशी को नामों का ऐलान कर दिया, जिसके बाद एनडीए में सीट बंटवारे के फॉर्मूले की तस्वीर साफ हो गई है.
इस फॉर्मूल के तहत शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि बीजेपी के खाते में 164 सीटें आई हैं. ऐसे में बीजेपी अपने कोटे से 18 सीटें बाकी चार सहयोगी दलों देगी, जिसमें आरएसपी, आरपीआई (अठावले), शिव संग्राम और रैयत क्रांति पार्टी शामिल है. महाराष्ट्र में भले ही बीजेपी शिवसेना से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही हो, लेकिन मुंबई में शिवसेना बड़े भाई की भूमिका रहेगी. मुंबई में कुल 36 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से शिवसेना 19 और बीजेपी 17 सीटों पर चुनावी किस्मत आजमाएगी.
शिवसेना इन 19 सीटों पर लड़ेगी चुनाव
शिवेसना का मुंबई और उसके आसपास इलाके में बड़ा आधार है. ऐसे में शिवसेना ने मुंबई की आधी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर 19 सीटें शिवसेना के खाते में आई है. मुंबई की मागाठाणे, विक्रोली, भांडुप पश्चिम, जोगेश्वरी पूर्व, दिंडोशी, अंधेरी पूर्व, चांदिवली, मानखुर्द- शिवाजीनगर, अणुशक्ति नगर, चेंबूर, कुर्ला (एसटी), कालीना, बांद्रा (पूर्व), धारावी (एसटी), माहिम, वरली, शिवड़ी, भायखला और मुंबादेवी सीटों पर शिवेसना चुनाव लड़ेगी.
बीजेपी की इन 17 सीटों पर दांव
बीजेपी के खाते में मुंबई की 17 सीटें आई हैं. मुंबई की दहिसर, बोरीवली (पश्चिम), कांदिवली (पूर्व), चारकोप, मलाड (पश्चिम), गोरेगांव (पश्चिम), अंधेरी (पश्चिम), वर्सोवा, विलेपार्ले, बांद्रा (पश्चिम), मुलुंड, घाटकोपर (पश्चिम), घाटकोपर (पूर्व), सायन कोलीवाड़ा, मालाबार हिल, कोलाबा और वडाला विधानसभा सीटों पर बीजेपी किस्मत आजमाएगी.
2014 में मुंबई के नतीजे
बता दें कि 2014 के विधानसभा चुनाव में मुंबई की कुल 36 में से सबसे ज्यादा 15 सीटें बीजेपी ने जीती थी. जबकि शिवसेना बीजेपी से एक सीटे पीछे रह गई थी. शिवसेना को 14 सीटों से संतोष करना पड़ा था. जबकि कांग्रेस पांच सीट पर सिमट गई थी और एनसीपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी एक सीट पर जीते और भायखला की सीट एमआईएम की झोली में गई थी. हालांकि 2014 में बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लड़ी थी. इसी तरह एनसीपी और कांग्रेस भी अलग-अलग चुनाव मैदान में थी. ऐसे में इस बार के चुनाव में देखना होगा कि कौन किस पर भारी पड़ता है.