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चुनाव

दिल्ली चुनाव 2020: जानिए 1993 से अब तक, कब किससे सिर सजा ताज

दिल्ली चुनाव 2020: जानिए 1993 से अब तक, कब किससे सिर सजा ताज
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दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी एक बार फिर सत्ता में वापसी के लिए हरसंभव कोशिश में जुट गई है. वहीं बीजेपी अपने दो दशक के सत्ता के वनवास को खत्म करने की कवायद कर रही है तो कांग्रेस 15 साल के विकास के सहारे एक बार फिर वापसी का सपना संजो रही है.

दिल्ली में 1993 से लेकर अब तक छह विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें से एक बार बीजेपी, तीन बार कांग्रेस और दो बार आम आदमी पार्टी सत्ता पर विराजमान होने में कामयाब रही है.
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1993 में बीजेपी के सिर ताज

दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1993 में हुआ. इससे पहले दिल्ली चंडीगढ़ की तरह केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था, जहां विधानसभा नहीं थी. दिल्ली में पहले चुनाव में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही थी. दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में बीजेपी 47.82 फीसदी वोट के साथ 49 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. कांग्रेस को 34.48 फीसदी वोट के साथ 14 सीटें मिली थीं. इसके अलावा 4 सीटें जनता दल और तीन सीटें निर्दलीय के खाते में गई थी. 

बीजेपी को प्रचंड जीत दिलाने का सेहरा मदनलाल खुराना के सिर सजा था. मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने लेकिन 26 फरवरी 1996 को उन्हें अपने पद से हटना पड़ा और पार्टी ने उनकी जगह साहेब सिंह वर्मा को सत्ता की कमान सौंपी. हालांकि साहेब सिंह वर्मा को भी बीजेपी ने चुनाव से ऐन पहले हटाकर 12 अक्टूबर 1998 को सुषमा स्वराज को सीएम बना दिया. सुषमा स्वराज के नेतृत्व में ही बीजेपी 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनाव मैदान में उतरी, लेकिन पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं हो सकी.
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1998 में शीला दीक्षित को सत्ता की कमान

दिल्ली में दूसरी बार विधानसभा चुनाव 1998 में हुआ. बीजेपी की ओर से चेहरा सुषमा स्वराज तो कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित थीं. दिल्ली का चुनाव इस तरह से दो महिलाओं के बीच हुआ और इस जंग में शीला दीक्षित बीजेपी की सुषमा स्वराज पर भारी पड़ीं. 1998 में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 47.76 फीसदी वोट के साथ 52 सीटें जीतने में कामयाब रहीं. वहीं, बीजेपी को 34.02 फीसदी वोट के साथ 15 सीटें मिलीं. इसके अलावा तीन सीटें अन्य को मिलीं.
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2003 में फिर कांग्रेस 

दिल्ली में 2003 में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए. बीजेपी ने शीला दीक्षित के खिलाफ मदनलाल खुराना पर दांव खेला, लेकिन वो अपना करिश्मा नहीं दिखा सके. 2003 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 48.13 फीसदी वोट के साथ 47 सीटें जीतने में कामयाब रही और बीजेपी 35.22 फीसदी वोट के साथ 20 सीटें ही जीत सकी. 

इसके अलावा तीन सीटें अन्य को मिलीं. इस बार भी कांग्रेस की जीत का श्रेय शीला दीक्षित को मिला और वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहीं.
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2008 में शीला ने लगाई हैट्रिक 

दिल्ली में चौथी बार विधानसभा चुनाव 2008 में हुए. इस चुनाव में भी शीला दीक्षित सब पर भारी पड़ीं. बीजेपी ने शीला दीक्षित के खिलाफ विजय कुमार मल्होत्रा पर दांव खेला लेकिन वो भी कामयाब नहीं रहे. 2008 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 40.31 फीसदी वोट के साथ 43 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. 

बीजेपी को 36.34 फीसदी वोटों के साथ 23 सीटें से संतोष करना पड़ा और तीन सीटें अन्य को मिलीं. इस तरह शीला दीक्षित दिल्ली में जीत की हैट्रिक और मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहीं.
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2013 में किसी को नहीं बहुमत 

दिल्ली में पांचवीं बार विधानसभा चुनाव 2013 में हुए. इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा तीसरे राजनीतिक दल के तौर पर आम आदमी पार्टी उतरी. अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के सियासी समीकरण को बिगाड़कर रख दिया. 2013 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 33 फीसदी वोटों के साथ 31 सीटें जीतने में कामयाब रही.

वहीं, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में उतरी आम आदमी पार्टी ने 29.5 फीसदी वोट के साथ 28 सीटें जीती और कांग्रेस को 24.6 फीसदी वोटों से साथ महज 8 सीटें ही मिलीं. इस तरह से दिल्ली में किसी को भी बहुमत नहीं मिला. ऐसे में आम आदमी पार्टी को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. हालांकि, केजरीवाल ने 49 दिन तक सीएम रहने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.
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2015 में AAP की प्रचंड जीत

दिल्ली में छठी बार 2015 में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में केजरीवाल बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर भारी पड़े. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी को 67 सीटें मिलीं तो बीजेपी को महज तीन सीटें ही मिल सकी. वहीं, कांग्रेस दिल्ली में खाता भी नहीं खोल सकी. दिल्ली में प्रचंड जीत के बाद अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने.
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