भारत के 13वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह आज 80वां जन्मदिन मना रहे हैं. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर, 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के एक गांव में हुआ था.
मनमोहन सिंह ने साल 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की. उनके शैक्षणिक जीवन ने उन्हें पंजाब से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पहुंचाया, जहां उन्होंने साल 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक डिग्री हासिल की.
इसके बाद साल 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी फिल किया. मनमोहन सिंह के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों का सही उपयोग उन वर्षों के दौरान हुआ जब उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में काम किया.
वर्ष 1971 में मनमोहन सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में भारत सरकार में शामिल हुए. इसके तुरंत बाद साल 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई.
मनमोहन सिंह ने जिन सरकारी पदों पर काम किया वे हैं, वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग में उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष.
स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में मोड़ तब आया जब मनमोहन सिंह ने वर्ष 1991 से 1996 तक की अवधि में भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया. आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति से परिचय कराने में उनकी भूमिका अब विश्वव्यापी रूप से जानी जाती है.
मनमोहन सिंह को उनके सार्वजनिक जीवन में प्रदान किए गए कई पुरस्कारों और सम्मानों में भारत का दूसरा सर्वोच्च असैनिक सम्मान, पद्म विभूषण भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995), वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994), वर्ष के वित्त मंत्री का यूरो मनी एवार्ड (1993) क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार (1956), और कैम्ब्रिज में सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट कार्य के लिए राईटस पुस्कार (1955) प्रमुख थे.
मनमोहन सिंह को जापानी निहोन कीजई शिमबन सहित अन्य कई संस्थाओं से भी सम्मान प्राप्त हो चुका है. इन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है.
मनमोहन सिंह ने साइप्रस में आयोजित सरकार के राष्ट्रमण्डल प्रमुखों की बैठक (1993) में और वर्ष 1993 में विचना में आयोजित मानवाधिकार पर विश्व सम्मेलन में भारतीय शिष्टमण्डल का नेतृत्व किया है.
अपने राजनीतिक जीवन में मनमोहन सिंह वर्ष 1991 से भारत के संसद के ऊपरी सदन (राज्य सभा) के सदस्य रहे हैं, जहां वह वर्ष 1998 और 2004 के दौरान विपक्ष के नेता थे.
लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद मनमोहन सिंह जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिनको 5 सालों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला.
मनमोहन सिंह को 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक पी वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री काल में वित्त मंत्री के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों के लिए भी श्रेय दिया जाता है.
मनमोहन सिंह की की माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह है. देश के विभाजन के बाद इनका परिवार भारत चला आया.
उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है. मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की.
1971 में मनमोहन सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये. इसके तुरंत बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया.
1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया. इस पद पर उन्होंने निरन्तर 5 सालों तक कार्य किया, जबकि 1990 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए.
जब पी वी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया. इस समय डॉ. मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे, लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है. इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया.
मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया. डॉ. मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया.
नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा. विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था, लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा. मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुंह बंद हो गए.
उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके.
मनमोहन सिंह की पत्नी का नाम श्रीमती गुरशरण कौर है. मनमोहन सिंह और गुरशरण की 3 बेटियां हैं.
1998 से 2004 में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे. मनमोहन सिंह ने पहली बार 72 वर्ष की उम्र में 22 मई, 2004 से प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरंभ किया, जो अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ. इसके बाद लोकसभा के चुनाव हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन फिर से विजयी हुआ.
मनमोहन सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो बार बाईपास सर्जरी हुई है. दूसरी बार फरवरी 2009 में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इनकी शल्य-चिकित्सा की.
प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा था, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया, लेकिन 2009 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिल.
2002 में मनमोहन सिंह को सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया. मनमोहन सिंह अत्यंत गंभीर एवं शांत नेता रहे हैं.
1995 में इण्डियन साइंस कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार भी मनमोहन सिंह को ही दिया गया था. इसके अलावा 1993 और 1994 का एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनेन्स मिनिस्टर आफ द ईयर भी मनमोहन सिंह को चुना गया था.
मनमोहन सिंह के शांत स्वभाव का जहां कुछ लोग सम्मान करते हैं तो वहीं विपक्ष हमेशा से इसकी आलोचना करता आया है.
अभी हाल में यह तथ्य प्रकाश में आया है मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश में कोयला आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की लूट हुई और सारा कुछ प्रधानमंत्री की देखरेख में हुआ क्योंकि यह मंत्रालय उन्हीं के पास था.
हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन बेहद ईमानदारी और निष्ठा के साथ किया है. यही कारण है कि भारतवासियों ने इन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी को वोट दिया.
मनमोहन सिंह अपनी सादगी के लिए सदैव पहचाने जाएंगे. जब मनमोहन सिंह को अपनी कार का लाइसेंस रिन्यू कराना था तो वह स्वयं चलकर अथॉर्टी के पास गए. ऐसे कार्यों के द्वारा मनमोहन सिंह ने भारत के लोगों को यह संकेत देने का प्रयास किया है कि कोई भी व्यक्ति विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था से बड़ा नहीं हो सकता.
भारत को उन्नति के पथ पर अग्रसर रखने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बहुत कुछ किया है. इस कारण यह भी पंडित जवाहर लाल नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जैसे प्रधानमंत्रियों के समकक्ष माने जाते हैं.
इनके प्रधानमंत्री काल की उपलब्धियों को देशवासी सदैव याद रखेंगे. 2 मार्च, 2006 को भारत ने परमाणु शक्ति के सम्बन्ध में अमेरिका के साथ राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दिल्ली आगमन पर समझौता किया. राजनीतिज्ञों को इस बात की आशंका थी कि परमाणु समझौता शायद नहीं हो पाए. विपक्ष इस समझौते के सख़्त ख़िलाफ़ था, लेकिन मनमोहन सिंह को मालूम था कि ऊर्जा संसाधन के क्षेत्र में यह समझौता किया जाना भारत के हित में होगा.
मनमोहन सिंह 72 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनाए गए. इन्होंने स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं की थी कि वे देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं.
अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने विपक्ष का विरोध देखते हुए स्वयं प्रधानमंत्री बनने से इंकार करके मनमोहन सिंह को भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में अनुमोदित किया था.
डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई, 2004 से प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ. मनमोहन सिंह ने सन् 1952 ई. में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से बीए (ऑनर्स) किया और अव्वल रहे थे.
उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है. मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की.
1971 में मनमोहन सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये. इसके तुरंत बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया.
मनमोहन सिंह ने साल 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की. उनके शैक्षणिक जीवन ने उन्हें पंजाब से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पहुंचाया, जहां उन्होंने साल 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक डिग्री हासिल की.
वर्ष 1971 में मनमोहन सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में भारत सरकार में शामिल हुए. इसके तुरंत बाद साल 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई.
मनमोहन सिंह ने जिन सरकारी पदों पर काम किया वे हैं, वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग में उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष.