तमिलनाडु में 2004 से ही चुनावों में हार का सामना कर रही अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता ने इस बार द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए पूरी तैयारी की और इसका फायदा ‘अम्मा’ को मिला.
सुश्री जयललिता की पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की पार्टी ने 2006 में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद राज्य शासन में शानदार वापसी की है.
जयललिता ने 2011 विधानसभा चुनावों में शानदार कूटनीति का परिचय दिया.
जयललिता ने द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए विजयकांत की डीएमडीके और वाम दलों के साथ गठबंधन किया. उन्होंने अपने गठबंधन में छोटे छोटे दलों को भी शामिल करने का प्रयास किया.
अभिनय की दुनिया से राजनीति में आयी जयललिता इस चुनाव में शुरू से ही द्रमुक को जवाब देने के मूड में दिख रही थीं.
द्रमुक ने मतदाताओं को रिझाने के लिए मिक्सर, ग्राइंडर समेत कई लुभावने वादे किए तो जयललिता ने भी चुतराई से ऐसी ही कई घोषणाएं कर दी.
जयललिता पर आरोप लगता रहा है कि वह अपने सहयोगी दलों के साथ मंच साझा नहीं करतीं. लेकिन इस बार उन्होंने इस आरोप को गलत साबित करते हुए विभिन्न सहयोगी दलों के साथ कई चुनावी सभाएं कीं.
अपने सख्त निर्णयों के लिए ‘आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर जयललिता ने इस बार सीधे मतदाताओं से संपर्क किया.
संध्या और जयरमण के घर 24 फरवरी 1948 को पैदा हुईं जयललिता को सिर्फ 15 साल की उम्र में घर की मदद के लिए अभिनय के क्षेत्र में आना पड़ा.
जयललिता ने करीब तीन दशक तक फिल्मों में काम किया.
जयललिता ने फिल्मी करियर में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी की करीब 300 फिल्मों में काम किया.
जयललिता ने एमजीआर और शिवाजी गणेशन सहित उस दौर के सभी प्रमुख अभिनेताओं के साथ काम किया.
जयललिता को अन्नाद्रमुक के संस्थापक स्वर्गीय एम. जी. रामचंद्रन राजनीति में लाये थे.
जयललिता को एमजीआर ने सबसे पहले पार्टी की प्रचार सचिव पद पर नियुक्त किया था.
जयललिता 1982 में पहली बार राज्यसभा की सदस्य बनीं.
जयललिता ने पहली बार 1991 में प्रदेश की मुख्यमंत्री का पद संभाला.
1991 में विधानसभा चुनावों के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई और इसके बाद सहानुभूमि लहर से अन्नाद्रमुक-कांग्रेस को फायदा हुआ.
1991 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लिट्टे पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया.
हिन्दुत्व के प्रति अपना झुकाव रखने वाली जयललिता भाजपा और शिवसेना के अलावा उन कुछ नेताओं में थीं जिन्होंने कार सेवा और अयोध्या का समर्थन किया था.
मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता का पहला कार्यकाल विवादों से घिरा रहा और उनके दत्तक पुत्र वी एन सुधाकरण की शादी में हुए खर्च की व्यापक आलोचना हुई.
मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने लाटरी टिकटों पर प्रतिबंध लगा दिया और हड़ताल कर रहे करीब 2 लाख कर्मचारियों को एक ही झटके में बर्खास्त कर दिया.
जयललिता ने किसानों को मुफ्त बिजली जैसी सुविधाओं पर भी रोक लगा दी. लेकिन 2004 में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उनके रुख में कुछ नरमी आयी.
दक्षिण के सिने पर्दे पर राज करने के बाद जयललिता ने बखूबी राजनीति में भी राज किया और उसी का नतीजा है कि एक बार फिर जयललिता का दक्षिण में परचम लहरा रहा है.
तमिलनाडु में जया की आंधी ऐसी आई की विरोधी डीएमके धाराशायी हो गयी. डीएमके में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दों को ही जयललिता के चुनाव जीतने का कारण माना जा रहा है.