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चुनाव

फोटो: जनता ने किसे पहनाया जीत का ताज...

फोटो: जनता ने किसे पहनाया जीत का ताज...
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गोगोई ने असम गण परिषद के बाद राज्य में मुख्यमंत्री पद की बागडोर 17 मई 2001 को संभाली थी. उन्हें उग्रवादी हिंसा और वित्तीय अस्थिरता से राज्य को बाहर लाने की चुनौती का सामना करना पड़ा. गौरतलब है कि राज्य कर्ज में इस कदर डूबा हुआ था कि सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिल पाता था. इस दिशा में गोगोई की कोशिश ने असर दिखाया और कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटी. हालांकि, उसे कम सीटें मिली थी. इस वजह से उसने 2006 में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ गठबंधन सरकार बनाई. अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान पिछले साल स्वास्थ्य खराब रहने के चलते गोगोई को मुंबई के एशियन हर्ट इंस्टीट्यूट में हृदय की तीन सर्जरी करानी पड़ी.
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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वस्त गोगोई की राज्य के शीर्ष पद तक की यात्रा की पटकथा धैर्य के साथ से लिखी गई. उनका जन्म ऊपरी असम में जोरहाट जिले के रंगराजन टी एस्टेट इलाके में 1 अप्रैल 1936 को हुआ था. उनके माता पिता उन्हें प्यार से पूनाकोन नाम से पुकारते थे. उनका बचपन चाय बागानों में अपने भाई बहनों और वहां काम करने वाले श्रमिकों के बच्चों के साथ खेलते कूदते बीता. प्रसन्नचित्त स्वभाव और बेबाक राय रखने वाले 75 वर्षीय गोगोई लोकसभा के लिए छह बार चुने जा चुके हैं.
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जीवन के शुरुआती दिनों में ही राजनीति के प्रति उनकी रूचि पैदा हो गई. हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वह मेडिसिन या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करे. लेकिन उन्होंने अपना ध्यान राजनीति में केंद्रित किया और यहां तक कि अपने शिक्षक से भी कह दिया कि वह बड़े होने पर ‘देश का प्रधानमंत्री’ बनना चाहते हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की 1952 की जोरहाट यात्रा के दौरान गोगोई उनसे खासे प्रभावित हुए. उस वक्त वह 10 वीं कक्षा में पढ़ते थे. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया. वह राजनीति में उस वक्त आए जब वह जोरहाट स्थित जगन्नाथ बरूआ कॉलेज में पढ़ते थे. स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने कानून की उपाधि लेने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. हालांकि वह बीमार पड़ गये और असम लौट गए. इसके बाद उन्होंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से कानून की उपाधि हासिल की.
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भारत युवक समाज की असम इकाई का सक्रिय सदस्य रहने के दौरान गोगोई 1963 में कांग्रेस में शामिल हुए और तब से वह पार्टी के प्रति निष्ठावान बने रहे. वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी के प्रति भी निष्ठावान हैं. गोगोई 1980 के दशक में कांग्रेस महासचिव और संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं. इसके अलावा 1986-90 तक और 1997 से 2001 तक असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे हैं. गोगाई ने जोरहाट म्यूनिसिपल बोर्ड के सदस्य के चुनाव में 1968 में भाग लेकर राजनीतिक करियर की शुरुआत की. वह जोरहाट संसदीय सीट से 1971 में पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए. वह कुल छह बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं. गोगोई के पास 1991 से 1995 के बीच केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी था.
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केरल में पिछले चार दशकों से कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे ओमन चांडी एक कुशल संगठनकर्ता और जबर्दस्त नीतिकार रहे हैं. 2004 से 2006 तक मुख्यमंत्री रहे चांडी ने अपने मोर्चे की 2006 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद पिछले पांच सालों में नेता विपक्ष की भूमिका निभाई है. चांडी कांग्रेस के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो कोट्टायम जिले के अपने गृहक्षेत्र पुथुपल्ली से 1970 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. चांडी वास्तव में एक जन नेता हैं जो हमेशा लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच रहने की कोशिश करते हैं. वह 1970 से ही केरल में कांग्रेस में करुणाकरण विरोधी धुरी के अग्रिम मोर्चे के सैनिक रहे हैं.
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चांडी अपने वरिष्ठ नेताओं एके एंटनी और व्यालार रवि के साथ-साथ पार्टी को जन राजनीतिक शक्ति बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते रहे हैं. चांडी पुथुपल्ली से केरल विधानसभा के लिए 12 बार चुने गए. अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रति उनका लगाव इतना गहरा है कि वह अपने अत्यंत व्यस्त कार्यक्रमों के बावजूद कभी पुथुपल्ली में मौजूद रहना नहीं भूलते. केरल की राजनीति में कहा जाता है कि चांडी पुथुपल्ली में पूर्व सूचना दिए बिना किसी का भी दरवाजा खटखटा सकते हैं. उन्होंने राज्य की राजधानी में अपने मकान का नाम पुथुपल्ली रख दिया है. लोगों के लिए इसके दरवाजे हर समय खुले रहते हैं. चांडी की पत्नी मरियम्मा ओमन बैंक अधिकारी हैं और उनके दो बेटियां तथा एक बेटा है.
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31 अक्टूबर 1943 को जन्मे चांडी ने स्कूली दिनों से ही अपने नेतृत्व की क्षमता दिखानी शुरू कर दी थी. उन्होंने कांग्रेस की छात्र इकाई केएसयू के कार्यकर्ता के रूप में कैम्पस राजनीति में प्रवेश किया. बाद में वह इसके प्रदेश अध्यक्ष बने और युवक कांग्रेस तथा केरल प्रदेश कांग्रेस समिति से जुड़ गए. कानून में स्नातक चांडी ने अपना पूरा समय राजनीति को समर्पित करने का फैसला किया. यूडीएफ की विभिन्न सरकारों में बड़ी भूमिका निभाने वाले और मंत्री के रूप में सेवाएं देने वाले चांडी को मुख्यमंत्री बनने के लिए 2004 तक इंतजार करना पड़ा जब एके एंटनी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था.
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केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने मालमपुझा सीट को बरकरार रखा है.
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केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने कांग्रेस उम्मीदवार लतिका सुभाष को 23 हजार से अधिक मतों से हराया.
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अच्युतानंदन सीपीआई (एम) के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से हैं, उन्हें वर्तमान में सीपीआई (एम) के एकमात्र जीवित संस्थापक सदस्य होने का गौरव भी प्राप्त है.
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केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने बीरभूम के नलहट्टी से चुनाव जीता.
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अभिजीत मुखर्जी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. अभिजीत जाधवपुर यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया में बतौर जनरल मैनेजर काम कर चुके हैं.
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जानेमाने अर्थशास्त्री और फिक्की के महासचिव अमित मित्रा ने पश्चिम बंगाल चुनाव में लेफ्ट के वित्त मंत्री असिम दासगुप्ता को हराकर एक बहुत बड़ा उलटफेर किया. अमित मित्रा ने असिम दासगुप्ता को 26,154 मतों से हराया.
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अमित मित्रा ने उत्तर 24 परगना के खर्दा सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. इस सीट पर असिम दासगुप्ता 1987 से काबिज थे.
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डॉक्टर अमित मित्रा को 2008 में भारत के प्रतिष्ठित अवार्ड पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है.
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1960 में एक शीर्ष पटकथा लेखक के तौर पर करुणानिधि ने एक के बाद एक फिल्म में उग्र संवाद लिखे थे, जिनके जरिए तर्क और विवेक का मजबूत संदेश दर्शकों में गया था. उन्होंने कई अंधविश्वासों पर भी तीखे सवाल किए थे. यह उस द्रविड़ आंदोलन के अनुरूप था, जिसकी नींव ही विवेकशीलता की विचारधारा पर बनी थी. जबकि आज कुछ लोगों के अनुसार, द्रमुक के वही मुखिया ज्योतिषी की सलाह पर पीली शॉल ओढ़ते हैं.
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2जी घोटाले की जांच के मामले में कांग्रेस की तरफ से करुणानिधि को मिला आश्वासन ज्यादा मायने नहीं रखता, क्योंकि इस जांच में सीबीआई सीधे सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट कर रही है. लेकिन द्रमुक मुखिया के पास विकल्प सीमित ही हैं. जयललिता के हाथों उनकी हार हो गई है. 2जी घोटाले में आरोपित होने के बाद उनके विरोधी उनके परिवार के खिलाफ कदम उठाएंगे. इसी के साथ केंद्र में भी सत्ता खोने का मतलब और ज्यादा टूट होना होगा. यही वह परिदृश्य है, जहां करुणानिधि, उनकी पत्नियों, बेटों और बेटी को बचा पाना भगवान के लिए भी मुश्किल है. 86 वर्षीय करुणानिधि ने छह दशकों की राजनीति के बाद यह कड़वी हकीकत तब समझ में आई होगी, जब उन्होंने 8 मार्च को 63 सीटों की कांग्रेस की 'अतार्किक' मांग को स्वीकार किया होगा.
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तमिलनाडु में 2004 से ही चुनावों में हार का सामना कर रही अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता ने इस बार द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए पूरी तैयारी की और इसका फायदा ‘अम्मा’ को मिला.
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सुश्री जयललिता की पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की पार्टी ने 2006 में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद राज्य शासन में शानदार वापसी की है. जयललिता ने 2011 विधानसभा चुनावों में शानदार कूटनीति का परिचय दिया. जयललिता ने द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए विजयकांत की डीएमडीके और वाम दलों के साथ गठबंधन किया. उन्होंने अपने गठबंधन में छोटे छोटे दलों को भी शामिल करने का प्रयास किया.
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अन्ना द्रमुक की जीत पर जयललिता ने कहा, ‘यह जनता और लोकतंत्र की विजय है.’ जयललिता ने कहा, इस बार चुनाव में धन बल की पराजय हुई. अन्नाद्रमुक प्रमुख ने कहा, द्रमुक को बाहर का रास्ता दिखाकर लोगों ने अपना गुस्सा और नाराजगी जाहिर की है. जयललिता ने कहा, अन्नाद्रमुक सरकार की पहली और शीर्ष प्राथमिकता कानून व्यवस्था बहाल करना तथा चुनावी वादों को लागू करना है.
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4 अगस्त 1950 को जन्मे एन रंगास्वामी 2001 से 2008 तक पुडुचेरी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
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2006 में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद 2008 में कांग्रेस आलाकमान ने अंदरुणी गुटबाजी के चलते इस्तीफा मांग लिया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया और नई पार्टी ‘ऑल इंडिया नामाथु राज्यम कांग्रेस’ की स्थापना की.
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बहुत कम ही लोगों को पता है कि रंगास्वामी के नाम गिनीज बुक में दर्ज है. उनका नाम अंग्रेजी वर्णमाला को सबसे तेज टाइप करने के लिए दर्ज किया गया है.
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