लक्ष्य केंद्रित निशाना साधने के लिए बिहार की राजनीति में चाणक्य के नाम से मशहूर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूबे में राजग का चुनावी परचम लहरा कर अपने विशेषण को एकबार फिर सही ठहरा दिया.
अन्य राजनीतिक पार्टियां जहां जात पांत की रोटी सेंकने में व्यस्त रहीं वहीं सोशल इंजीनियरिंग के जादूगर नीतीश कुमार एक सिरे से विकास का मुद्दा लेकर चुनाव मैदान में डटे रहे.
विकास के मुद्दे के साथ बिहार में व्यावहारिक और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के अगुवा नीतीश कुमार ने एक बार फिर राजग को प्रदेश में भारी जीत दिलाई है और रिकार्ड बहुमत हासिल कर विरोधियों को धराशायी कर दिया.
बहुमत के साथ जीत का करिश्मा एक बार फिर दुहराते हुए 54 वर्षीय नेता ने लालू प्रसाद के राजद और रामविलास पासवान के लोजपा गठबंधन, कांग्रेस और अन्य पार्टियों को पांच वर्ष के कार्यकाल के बाद एक बार फिर चारों खाने चित कर दिया है.
सत्ता विरोधी लहर को बेदम करते हुए राममनोहर लोहिया की सामाजिक विचारधारा के झंडांबरदार और जेपी आंदोलन में बढ़ चढकर हिस्सा लेने वाले नीतीश 2005 के चुनावों में 15 वर्षों के लालू राबड़ी शासन को खत्म किया था.
उन्होंने स्वयं को विकास पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया और अब पांच साल बाद एक बार फिर अपना लोहा मनवाया. इस बार उन्होंने रिकार्ड जीत दर्ज कर सभी विरोधियों को चारो खाने चित्त कर दिया.
बिहार की बागडोर संभालने की ललक के साथ तीन मार्च 2000 को नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन एक हफ्ते के कार्यकाल के बाद विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
बिहार में चुनाव में एक समय धर्म और जाति की बयार बहा करती थी और राजनीतिक पार्टियों की रोटी सेंकने का यह बड़ा एजेंडा हुआ करता था लेकिन नीतीश को विकास के नाम पर जनता को भरोसे में लेने का श्रेय जाता है.
नीतीश ने इस प्रयोग को 2010 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर व्यवहारिक आयाम दिया.
‘नया बिहार’ का सपना दिखाकर नीतीश ने जनता से वादा कर अक्तूबर 2005 में जीत के बाद राजग सरकार का नेतृत्व किया.
सोशल इंजीनियरिंग के माहिर नीतीश ने हालांकि अति पिछड़ा और महादलित का नारा देकर बिहार के बड़े वर्ग को अपने पक्ष में गोलबंद किया और इस बार के चुनाव में राजग को इसका फायदा हुआ है.
भाजपा के साथ गठबंधन होने के बावजूद अल्पसंख्यकों का भरोसा जीत कर नीतीश ने बहुत संतुलित तरीके से काम करते हुए राजग को भारी जीत दिलाई.
सादगी पसंद और जमीनी नेता नीतीश को बिहार की आधुनिक राजनीति का शिल्पकार भी माना जाता है.
पंचायत निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी सीटों पर आरक्षण दिलाकर उन्होंने चुनावी सभाओं के दौरान कहा कि ऐसे अग्रणी कदम से बिहार अन्य राज्यों के लिए आदर्श भी बना है.
सत्ता के गलियारों में माहिर प्रशासक के रूप में विख्यात नीतीश ने 1990 में वीपी सिंह की संयुक्त मोर्चा सरकार में केंद्रीय कृषि और सहकारिता मंत्री के रूप में केंद्र की राजनीति में प्रभावी भूमिका निभायी थी. इसके बाद उनके राजनीतिक जीवन में कई पड़ाव आये.
नब्बे के दशक में लालू प्रसाद को बिहार में सत्ता पर बैठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद उनकी कथित निरकुंश शैली के कारण दोनों नेताओं के रिश्तों में खटास आ गयी और दोनों ने अपनी राहें जुदा कर ली.
नीतीश ने समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जार्ज फर्नाडीज तथा जनता दल के 12 सांसदों के साथ अलग होकर वर्ष 1994 में समता पार्टी का गठन किया.
वर्ष 1998 में जब केंद्र में राजग की सरकार बनी तो नीतीश कुमार भूतल परिवहन मंत्रालय के अतिरिक्त प्रभार के साथ रेल मंत्री बने. राजग सरकार में नवंबर 1999 से मार्च 2000 तक वह कृषि मंत्री रहे.
बाद के वर्ष में जदयू समता पार्टी विलय और भाजपा के साथ सहयोग बिहार की राजनीति में कारगर रहा और 3 मार्च 2000 को उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में बिहार की बागडोर संभाली.
लेकिन राजग के बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण उन्हें सात दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा.
संपूर्ण क्रांति के प्रणेता जयप्रकाश नारायण के 1974 के छात्र आंदोलन से प्रमुख छात्रनेता के रूप में उभरे नीतीश का राजनीतिक ग्राफ इसके बाद चढता ही चला गया और बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर वह तीसरी बार राज्य का शीर्ष पद संभालेंगे.
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राहुल गांधी बिहार में यूथ आइकॉन बनकर जाया करते थे. युवाओं के लिए बहुत कुछ करने का दावा करने वाले अपने आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद बिहार में विफल हो गए. अब पूरा देश उनसे सवाल करेगी.
शरद यादव ने कहा कि बिहार में जीत का सारा श्रेय जनता को देता हूं. मैं नीतीश कुमार को ढेरों बधाई देता हूं. लालू सिर्फ विकास की बात करते रहे जबकि हमलोग 5 सालों तक सिर्फ काम करते रहे.
भाजपा व जदयू के बीच के तनाव की खबरें बेबुनियाद हैं. हमारा गठबंधन विजयी हुआ है आगे और भी मजबूत होगा. कांग्रेस को जनता ने करारा जवाब दिया है.
रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि हम लोग बैठकर कमियों के बारे में चर्चा करेंगे. जनता ने हमें नकार दिया है और हम उनके आदेश को स्वीकार करते हैं.
नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को उनकी जीत पर बधाई दी है.
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि भाजपा और जदयू के बीच अच्छी केमिस्ट्री है . हमलोग मिलकर सरकार बनाएंगें.
1 मार्च 1951 को स्वतंत्रता सेनानी कविराज रामलखन सिंह के घर नीतीश का जन्म हुआ था. उम्र बढती गई और झुकाव राजनीति की ओर खुद ब खुद बढ़ता चला गया.
1974 में जेपी आंदोलन से जुड़े और 1985 में पहली बार बिहार विधानसभा की सीढ़ियों पर बतौर विधायक कदम रखा. राजनीति में रुतबा बढ़ता गया और 1989 में नीतीश के कंधों पर बिहार जनता दल के महासचिव पद की जिम्मेदारी सौंपी गई.
1989 नीतीश पहली बार सांसद बने . 19 मार्च 1998 नीतीश पहली बार रेल मंत्री बने.
1989 में ही नीतीश ने बाढ़ से पहली बार 9वीं लोकसभा का चुनाव जीता और केंद्र में कृषि राज्य मंत्री बने. राजनीतिक करियर में कारवां मिसाल कायम करते हुए आगे बढ़ता गया.
दिल्ली में सबसे लंबा कार्यकाल रहा रेल मंत्री के तौर पर और नीतीश के मजबूत फैसलों की वजह से विरोधियों ने भी तालियां बजाई.
24 नवंबर 2005 को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ ली. लालू और आरजेडी के 15 साल के शासन को अपनी साफ सुथरी छवि से धाराशायी करना आसान नहीं था लेकिन बिहार की जनता को शायद नीतीश की शख्सियत में ही अपने विकास का युग पुरुष दिखा.
और अगले 5 साल के लिए जनता ने फिर से नीतीश और उनकी टीम पर भरपूर भरोसा जताया है. आखिर अपने राज्य की बेहतरी और विकास से किसे सुकून नहीं मिलेगा.
24 नवंबर 2010 जेडीयू-बीजेपी गठबंधन फिर विजयी हुआ. 5 साल का कार्यकाल खत्म हो चुका है.
कहा गया कि नीतीश को विरासत में 15 साल का वो बदहाल बिहार मिला जिसे उबारने में कई साल लग जाते लेकिन नीतीश ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, कर्मठ फैसलों और बेदाग नेतृत्व के बूते बिहार की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दी.