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पांच अहम मुद्दे जो तय करेंगे पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 का ताज

विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे ज्यादा हावी रहते हैं. पंजाब में भी कमोबेश ऐसा ही है, जैसे मोहाली में राज्य सरकार द्वारा लगाया गया प्रॉपर्टी टैक्स इस बार बड़ा मुद्दा बनेगा. लेकिन कुछ ऐसे भी मुद्दे हैं जिनकी आड़ में वर्तमान अकाली-बीजेपी गठबंधन सत्ताधारी सरकार को हटाने में कामयाब मिलेगी.

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पंजाब में 04 फरवरी को है विधानसभा चुनाव 2017
पंजाब में 04 फरवरी को है विधानसभा चुनाव 2017

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2017 के विधानसभा चुनावों के लिए बिगुल बज चुका है. अधिसूचना 11 जनवरी और चुनाव के लिए मतदान 04 फरवरी को होंगे. नतीजे 11 मार्च को आएंगे. इन सब के बीच इंडिया टुडे-एक्सिस-माई इंडिया के ओपिनियन पोल ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी के आसार बताए हैं. सर्वे के मुताबिक कुल 117 सीटों में कांग्रेस को 56 से 62 सीटों पर जीत मिल सकती है, वहीं पहली बार चुनावी ताल ठोंक रही आम आदमी पार्टी 36 से 41 सीटें जीत सकती हैं जबकि सर्वे में सत्ताधारी अकाली-बीजेपी गठबंधन केवल 18-22 सीटों पर सिमटती दिख रही है. विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे ज्यादा हावी रहते हैं, जैसे मोहाली में राज्य सरकार द्वारा लगाया गया प्रॉपर्टी टैक्स इस बार बड़ा मुद्दा बनेगा. लेकिन कुछ ऐसे भी मुद्दे हैं जिनकी आड़ में वर्तमान सत्ताधारी गठबंधन को हटाने में कामयाब मिलेगी.

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2017 के विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार पंजाब का सबसे बड़ा मुद्दा है. मुख्यमंत्री के बेटे राज्य के डिप्टी सीएम हैं और उनकी पत्नी बठिंडा से सांसद, इसके बाद उनकी पत्नी के भाई पंजाब में मंत्री हैं. यह परिवार तो पहले से ही बिजनेस में है और सत्ता में आने के बाद से इसने पूरे राज्य पर अपना नियंत्रण बना लिया है. राज्य में माइनिंग, ट्रांसपोर्ट या अन्य कोई बिजनेस हो सभी पर इस परिवार का तथाकथित नियंत्रण बना हुआ है. हालांकि यह बहुत ही विस्तृत मामला है जिसकी तह में जाकर कोई बातें नहीं करता. इसके अलावा वहां ऐसे पांच महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो निश्चित तौर पर इन चुनावों के केंद्र में रहेंगे.

1. ड्रग्स
पंजाब की शक्ति उसके आवाम, मिट्टी और उपज में रही है. लेकिन कभी हरित क्रांति के लिए दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने वाला पंजाब आज युवाओं में ड्रग्स की समस्या को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है. एम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां के 10 जिलों की कुल 1.23 करोड़ युवा आबादी इसके चपेटे में है. राज्य की पुलिस ने इससे जुड़ी 14,483 प्राथमिकी भी दर्ज की है. इन चुनावों में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही इस मुद्दे को अपना अहम हथियार बनाने की तैयारी में है.

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2. दलितों से जुड़ी समस्याएं
32 फीसदी से साथ पंजाब में दलित वोटरों की संख्या देश में सर्वाधिक हैं. चुनाव के दौरान सभी पार्टियां इन्हें अपने अपने तरीके से लुभाने में लगी रहती हैं. इन दलितों पर अत्याचार, नौकरी और इस वर्ग के जमीन का टुकड़ा पाने की कोशिशों में होने वाली परेशानी इनसे जुड़े बड़े मुद्दे हैं. कांग्रेस और अकाली ने इनसे जुड़े मुद्दों पर अभी तक अपना रुख साफ नहीं किया है जबकि आम आदमी पार्टी ने तो इन पर हुए अत्याचारों की जांच कराने और इसी वर्ग से उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा तक कर दी है.

3. कानून-व्यवस्था
अकाली दल-बीजेपी गठबंधन की सरकार के दौरान राज्य की कानून-व्यवस्था और भी बदतर हुई है. कभी आतंक से ग्रसित रहा यह राज्य आज अपराधियों के गुटों से त्रस्त है. आज यहां करीब 57 बड़े क्रिमिनल गैंगों के 400 से अधिक गैंगस्टर राज्य की कानून-व्यवस्था में खलल उत्पन्न कर रहे हैं. इसके अलावा यहां की जेलों में भी 500 से अधिक बड़े अपराधी बंद हैं. कुछ दिनों पहले पटियाला की नाभा जेल को तोड़कर फरार होने की कोशिशें यहां कि स्थिति को और भी सोचनीय बनाती है.

4. बेरोजगारी
2015 के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब के रोजगार कार्यालयों में बेरोजगारों के 3,61,299 आवेदन पेंडिंग थे. लेकिन ये आंकड़े पंजाब की सही स्थिति को नहीं दर्शाते क्योंकि कम शिक्षित अथवा अनपढ़ इंप्लायमेंट एक्सचेंज में रजिस्टर नहीं कराते. बेरोजगारों के सही आंकड़े नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 55 लाख है. इनमें से 72 फीसदी शिक्षित जबकि 22 फीसदी तकनीकी रूप से कुशल हैं. 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक यहां प्रति हजार 60 लोग बेरोजगार हैं जो बिहार की स्थिति के बराबर है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने युवा वोटरों को रिझाने के लिए यहां नौकरी और बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है.

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5. किसानों की आत्महत्या
पिछले दिनों किसानों की आत्महत्या पंजाब में आम हो गई. पंजाब कृषि आधारित राज्य है. यहां की 50 फीसदी आबादी इससे जुड़ी हुई है लेकिन राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान घट कर 28 फीसदी रह गया है, इसमें से 9 फीसदी डेयरी का अंश है. कृषि आधारित राज्य होने की वजह से यहां बड़े स्तर पर कृषि प्रसंस्करण इकाइयों के लगाये जाने की जरूरत है लेकिन कच्चे माल की कमी इसमें एक बाधा है. फसलों की सही उपज न होने की वजह से कर्ज में डूबे किसानों ने अपने जीवन को ही समाप्त करने का फैसला ले लिया. किसानों पर बैंकों और देनदारों के 69,355 करोड़ रुपये कर्ज हैं. कर्ज में डूबी राज्य सरकार उन्हें मुआवजा देने की स्थिति में नहीं है. मतलब साफ है, खाली खजाने और किसानों की आत्महत्या इन चुनावों में सबसे बड़ा किरदार अदा करेंगे इसमें कोई शक नहीं.

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