
बाघा पुराना विधानसभा सीट पर 1951 से ही विधानसभा चुनाव लड़े जा रहे हैं. मोटे तौर पर नतीजों की बात करें तो यहां का रुझान मिला जुला ही रहा है. हालांकि अकाली दल यहां ज्यादा समय तक काबिज रहा है. जहां तक मतदान के वोटिंग पैटर्न का सवाल है, तो लोग नई राजनीतिक पार्टी के प्रत्याशी को मौका देने से गुरेज करते है. उनके दिमाग में ये बात घर की हुई है कि कोई पुलिस या प्रशासनिक काम पड़ने पर पुराने लीडर ही काम आते हैं.
बाघा पुराना विधानसभा सीट का कोई भी सामाजिक व धार्मिक समीकरण नहीं है और ना ही इस सीट का आर्थिक या ऐतिहासिक तौर पर कोई महत्व है. इस विधानसभा हलके में अब कुल 168654 वोटर हैं. जबकि वर्ष 2017 में कुल 167556 वोटर थे. जिनमें से 78057 महिला वोटर जबकि 89496 पुरुष मतदाता थे और 3 तीसरे लिंग के मतदाता भी थे.
2017 का जनादेश :
इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस पार्टी के दर्शन सिंह बराड़ काबिज हैं. इन्हें 2017 चुनाव में 48,668 वोट पड़े थे. वहीं आम आदमी पार्टी प्रत्याशी गुरबिंदर सिंह कंग 41418 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे और तीसरे नंबर पर 41283 वोट लेकर शिरोमणि अकाली दल के प्रत्याशी तीरथ सिंह मालाह रहे थे. इस सीट पर वर्ष 2017 में 82.48 प्रतिशत वोटिंग हुई थी.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड :
विधायक की उम्र- 68 years
शिक्षा- 8th pass
इनके परिवार में धर्मपत्नी अमरजीत कौर बराड़ के अलावा इनके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं. ये अच्छी खासी सम्पत्ति के मालिक हैं. इनके पास खेती बाड़ी की जमीन भी है. वर्ष 2017 के विधनसभा चुनाव में इनके द्वारा की गयी घोषणा के मुताबिक ये एक करोड़ 29 लाख रु के एसेट्स के मालिक थे. जबकि इनकी 11 लाख रु से अधिक की देनदारी थी.
जहां तक विधायक की राजनीतिक उपलब्धियों का सवाल है, तो विधायक साहिब की और से क्षेत्र का भी मुद्दा या समस्या विधानसभा में नहीं उठाया गया. रही बात क्षेत्र के वोटरों में विधायक की लोकप्रियता की, तो विधायक साहब थोड़े गर्म स्वभाव के हैं. जिसके चलते वे अनेकों बार मीडिया कर्मियों से भी उलझ चुके हैं. लेकिन फिर भी जो लोग उनके पास काम लेकर जाते हैं, विधायक जी उनका काम करवाने की कोशिश करते हैं. फिर भले ही अफसरशाही उनके बोल से नाराज ही क्यों ना हो जाएं.
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विविध:
जहां तक विधायक दर्शन बराड़ के कार्यकाल की बात है तो वे अपने क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए कोई सरकारी कॉलेज लगवाने में अब तक नाकाम रहे हैं. इलाके के लोगों को बेहतर सेहत सुविधा दिलवाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किया गया है. सेहत सुविधा के नाम पर सरकारी अस्पताल तो है, लेकिन उसमें डॉक्टरों की कमी है. जिसके चलते अधिकतर मरीजों को रैफर ही कर दिया जाता है.