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अमरिंदर को पार्टी चाहिए और बीजेपी को चेहरा, क्या है शाह-कैप्टन मीटिंग के मायने?

पंजाब में अकाली दल के अलग होने के बाद पंजाब में बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है, जिसके दम पर वो दो-दो हाथ कर सत्ता में आ सके. अगर बीजेपी में कैप्टन शामिल हो जाते हैं तो पंजाब की राजनीति में नया मोड़ आ जाएगा. इससे बीजेपी को पंजाब में एक बड़ा नाम मिल जाएगा, जिसकी अभी कमी है तो कैप्टन को एक मजबूत सियासी ठिकाना मिल जाएगा.

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अमित शाह और कैप्टन अमरिंदर सिंह
अमित शाह और कैप्टन अमरिंदर सिंह
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कैप्टन अमरिंदर सिंह और अमित शाह की मुलाकात
  • पंजाब में बीजेपी को मजबूत चेहरे की दरकार है
  • कुर्सी गंवाने के बाद कैप्टन को चाहिए मजबूत ठिकाना

पंजाब विधानसभा चुनाव में सिर पर है और कांग्रेस में मची कलह थमने का नाम नहीं ले रही. कैप्टन अमरिंदर सिंह की कुर्सी जाने और नवजोत सिंह सिद्धू का प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद पंजाब से लेकर दिल्ली तक की राजनीतिक तपिश बढ़ गई है. ऐसे में अब कैप्टन अमरिंदर नए सियासी ठिकाने की तलाश में हैं तो किसान आंदोलन के चलते अकाली दल से दोस्ती गवां चुकी बीजेपी को पंजाब में एक मजबूत चेहरे की दरकार है. इसी बीच कैप्टन अमरिंदर ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात की है, जिसके सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं. 

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पंजाब विधानसभा चुनाव होने में महज पांच महीने का वक्त बाकी है. ऐसे में मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने और चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी के बाद से कांग्रेस की सियासत में कैप्टन अमरिंदर सिंह को पूरी तरह दरकिनार हो गए हैं. वहीं, किसान आंदोलन के चलते पंजाब में अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए सिर्फ बीजेपी को ही नहीं बल्कि कैप्टन को भी बीजेपी की जरूरत है. इसी कड़ी में कैप्टन अमरिंदर और अमित शाह की मुलाकात को देखा जा रहा है. 

दिल्ली में बुधवार को कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और अमित शाह से बीच 45 मिनट की मुलाकात हुई है. कैप्टन ने बीजेपी में एंट्री करने की बात तो नहीं की, लेकिन यह जरूर कहा कि अमित शाह से कृषि कानूनों के खिलाफ लंबे समय से चल रहे किसानों के आंदोलन पर चर्चा की और उनसे फसलों के विविधीकरण में पंजाब का समर्थन करने के अलावा कानूनों को रद्द करने और एमएसपी की गारंटी के साथ संकट को तत्काल हल करने का आग्रह किया.

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बीजेपी को मजबूत चेहरे की दरकार

पंजाब की सियासत में बीजेपी शुरू से छोटे भाई की भूमिका में रही, वो मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप प्रकाश सिंह बादल की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) की उंगली पकड़ कर ही चलती रही. नए कृषि कानून के चलते 25 साल पुरानी अकाली और बीजेपी की दोस्ती टूट गई. अकाली के साथ होने के चलते बीजेपी पंजाब में अपना कोई मजबूत चेहरा भी स्थापित नहीं कर सकी और न ही अपनी सियासत खड़ी कर सकी. सिद्धू के 2017 में पार्टी से छोड़कर जाने के बाद तरुण चुग को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया जरूर गया लेकिन अपनी पहचान स्थापित नहीं कर सके. ऐसे में किसान आंदोलन से बीजेपी के लिए पंजाब में चुनौतियां खड़ी कर दी है. ऐसे में कैप्टन जैसे चेहरा बीजेपी के लिए संजीवनी साबित हो सकता है. 

पंजाब की राजनीति में कैप्टन का अपना सियासी आधार है. साढ़े नौ साल मुख्यमंत्री रहे और तीन दशक से कांग्रेस का चेहरा थे. कैप्टन की अभी भी पार्टी के कई सांसदों के अलावा विधायकों में खासी पकड़ है. सांसद गुरजीत औजला से लेकर मनीष तिवारी, सांसद जसबीर सिंह डिंपा, सांसद चौधरी संतोख के साथ कैप्टन के करीबी माने जाते है तो चन्नी मंत्रिमंडल में कुर्सी छिन जाने के बाद कई विधायक कांग्रेस से खफा हैं. ऐसे में पूर्व मंत्री बलबीर सिद्धू, गुरप्रीत कांगड़ तो खुलेआम तौर पर कह चुके हैं कि उनका कसूर क्या है? कांग्रेस की ऐसी स्थिति में अस्थिरता के माहौल में बीजेपी कैप्टन के जरिए बड़ा दांव चल सकती है. 

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कैप्टन को मजबूत पार्टी चाहिए

दरअसल, मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देने के बाद कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने अपने सभी सियासी राजनीतिक विकल्‍प खुले रहने की बात कही थी. पंजाब की बदली परिस्थितियों में कैप्टन को कांग्रेस ने किनारे कर दिया है. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन ने बिना उनकी जानकारी के आलाकमान की ओर से विधायक दल की बैठक बुलाए जाने को अपने लिए शर्म की बात बताया था. पटियाला के महाराज ने गांधी भाई-बहन (राहुल गांधी और प्रियंका गांधी) को अनुभवहीन बताते हुए तेवर भी दिखाए थे. 

उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और वहां के सेना प्रमुख जनरल बाजवा का मित्र बताते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था. कैप्टन ने ये दंभ भी भरा था कि सिद्धू को कभी मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे. अगर सिद्धू को पार्टी सीएम कैंडिडेट घोषित करती है तो उनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारेंगे. कैप्टन ने इतने तल्ख तेवर तो दिखा दिए लेकिन उन्हें भी पता है कि कांग्रेस अब पंजाब में उनसे आगे बढ़ चुकी है. ऐसे में उनको अब किसी नई राह पर चलना होगा. कैप्टन को भी अब नए ठिकाने की जरूरत है. ऐसे में अकाली दल में वो जा नहीं सकते, क्योंकि सीएम की कुर्सी पहले से ही फिक्स हैं. ऐसे में बीजेपी ही उनके लिए सबसे मुफीद जगह नजर आ रही है. 

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बीजेपी में फिट बैठ सकते हैं कैप्टन

बीजेपी के राजनीतिक ढांचे में कैप्टन बहुत की आसानी से फिट हो सकते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा की बातें कैप्टन को अच्छी तरह पता हैं. चुनाव एक पहलू है तो राष्ट्र हित दूसरा पहलू है. कैप्टन राष्ट्रवाद के मुद्दे पर मुखर रहे हैं. बीजेपी भी कैप्टन अमरिंदर सिंह में राष्ट्रवाद देख रही है और बार-बार बीजेपी नेता यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि कैप्टन राष्ट्रवादी हैं, रिटायर फौजी हैं. बीजेपी नेता अनिल विज ने यहां तक कह दिया है कि कैप्टन को कांग्रेस ने इसीलिए सीएम पद से हटा दिया है, क्योंकि वो राष्ट्रवादी हैं. 

पंजाब विधानसभा चुनाव में महज पांच महीने बचे हैं, ऐसे में कैप्टन के पास ज्यादा विकल्प नहीं है. चुनाव से पहले नई पार्टी लांच करना मुश्किल है. अकाली दल के अलग होने के बाद पंजाब में बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है, जिसके दम पर वो दो-दो हाथ कर सत्ता में आ सके. अगर बीजेपी में कैप्टन शामिल हो जाते हैं तो पंजाब की राजनीति में नया मोड़ आ जाएगा. इससे बीजेपी को पंजाब में एक बड़ा नाम मिल जाएगा, जिसकी अभी कमी है तो कैप्टन को एक मजबूत सियासी ठिकाना. 

 

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