पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव (Chandigarh election result) में मिली जीत से आम आदमी पार्टी को बूस्टर डोज मिल गई है. हालांकि, आम आदमी पार्टी भले ही सबसे ज्यादा 14 पार्षद सीटें जीतने में कामयाब रही है, लेकिन सबसे ज्यादा वोट कांग्रेस ने हासिल किए हैं. इस तरह से चंडीगढ़ निगम चुनाव के नतीजे कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के लिए सियासी तौर पर झटका है, क्योंकि चंडीगढ़ निगम पर बीजेपी का ही कब्जा ज्यादातर रहा है और शहरी वोटों पर उसकी पकड़ मानी जाती थी.
वोट फीसदी में कांग्रेस अव्वल रही
चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को 29.79 फीसद वोट मिले हैं तो बीजेपी को 29.30 फीसद वोट हासिल हुए हैं. वहीं, तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी को 27.08 फीसद वोट मिले हैं. निर्दलीय उम्मीदवार को 7.10 फीसद और अन्य को 6.26 फीसद वोट पड़े हैं. इतना ही नहीं 2016 के निगम चुनाव में कांग्रेस के 4 पार्षद जीते थे, लेकिन इस बार उसकी संख्या 8 सीट पर पहुंच गई है. इस तरह से कांग्रेस के वोट शेयर के साथ-साथ पार्षदों की संख्या में भी इजाफा हुआ है.
इस तरह देखा जाए तो कांग्रेस को सबसे ज्यादा वोट हासिल हुए हैं जबकि आम आदमी पार्टी कम वोट पर भी उससे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही. ऐसे में निगम चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस को वोट मिले हैं, उसके मुताबिक भले ही वो सीटें नहीं जीत सकी, लेकिन अपने सियासी आधार को बचाने में कामयाब रही है. कांग्रेस की पिछले चुनाव की तुलना में इस बार सीटें बढ़ी हैं.
शहरी क्षेत्र में खिसका बीजेपी का आधार
चंडीगढ़ विधानसभा चुनाव के नतीजों से जाहिर होता है कि बीजेपी के खिलाफ शहरी मतदाता में रोष है. पंजाब की सत्ता पर भले ही अकाली दल और कांग्रेस काबिज होती रही हों, लेकिन चंडीगढ़ पर बीजेपी का वर्चस्व कायम रहा है. पंजाब में बीजेपी का सियासी आधार शहरी इलाकों में ही रहा है, लेकिन इस बार पहली दफा चुनाव में उतरने वाली आम आदमी पार्टी ने यहां 14 वार्डों में जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया. इससे साफ है कि बीजेपी के शहरी वोटबैंक में आम आदमी पार्टी सेंध लगाने में सफल रही हैं.
हिंदू वोटबैंक में AAP ने लगाई सेंध
पंजाब में बीजेपी का सियासी आधार शहरी वोटों के साथ-साथ हिंदू वोटर में रहा है. अकाली दल के साथ गठबंधन में रहते हुए बीजेपी शहरी और हिंदू बहुल सीटों पर ही किस्मत आजमाती रही हैं. लेकिन, चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को हिंदू बहुल सीटों पर सियासी मात देने में सफल रही है, उससे साफ है कि यह वोटबैंक भी अब खिसक रहा है. हालांकि, हिंदू वोटों पर कांग्रेस भी दावेदारी करती रही है और चंडीगढ़ चुनाव में काफी हद तक बचाने में सफल रही है. इसके बावजूद पंजाबी वोटों में जरूर उसके सेंध लगी है.
बीजेपी का मजबूत दुर्ग चंडीगढ़
पंजाब में भले ही बीजेपी का भले ही न के बराबर हो, लेकिन चंडीगढ़ में सियासी वर्चस्व हमेंशा से कायम रहा है. चंडीगढ़ नगर निगम से लेकर सांसद तक बीजेपी बनाती रही है. पिछले तीन बार से मेयर बीजेपी का बन रहा है और लगातार दूसरी बार किरण खेर सांसद हैं. किसान आंदोलन का भी असर चंडीगढ़ में बाकी पंजाब की तरह नहीं दिखा. इसके बावजूद बीजेपी से निगम के मेयर रहे 3 नेता चुनाव हार गए हैं.
बीजेपी की हार की वजह क्या है?
चंडीगढ़ नगर निगम में बीजेपी पिछले पांच साल से सत्ता में थी. इस दौरान उसके कई राजनीतिक फैसलों के कारण आम जनता में नाराजगी थी. एक बार नगर निगम ने पानी के बिल के रेट बढ़ा दिए थे, लेकिन जनता के विरोध के बाद उसे वापस लेना पड़ा. ऐसे कई फैसले थे जो निगम ने लिए, बाद में विरोध होने पर उन्हें वापस लेना पड़ा. वहीं, विकास कार्य नहीं होने का ठीकरा पार्षद अधिकारियों पर फोड़ते रहे. ऐसे में आम आदमी पार्टी ने लोकलुभावने वादे किए हैं, जिसके चलते बीजेपी का बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है.
चंडीगढ़ मेयर के लिए फंसा पेच
चंडीगढ़ नगर निगम की कुल 35 सीटों में से आम आदमी पार्टी 14 सीटों पर जीत मिली है. वहीं, बीजेपी ने 12 और कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत हासिल की है. इसके अलावा एक सीट शिरोमणि अकाली दल ने जीती है. चंडीगढ़ नगर निगम में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. ऐसे में चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के चुनाव अब दिलचस्प बना गया है. हालांकि, आम आदमी पार्टी अपना मेयर बनाने का दावा किया है लेकिन सियासी समीकरण को देखें तो दोनों ही दलों के पर जादुई नंबर नहीं है.
आम आदमी पार्टी की 14 सीटें होने के बावजूद मेयर के लिए उसे पांच सदस्यों के समर्थन की जरूरत है जबकि बीजेपी के 12 सदस्य हैं और चडीगढ़ सांसद किरण खेर का एक वोट मिलाकर यह 13 पहुंच रहे है. पंजाब में 2 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं, जिसके चलते आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस तीनों ही एक-दूसरे के साथ आने से बच रही हैं. ऐसे में पंजाब विधानसभा चुनाव तक चंडीगढ़ को नया मेयर मिलना मुश्किल है. ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि कमिश्नर के ही नगर निगम प्रमुख के रूप में काम करते रहने की ज्यादा उम्मीदें हैं.
क्या पंजाब चुनाव पर पड़ेगा असर?
चंडीगढ़ में विधानसभा चुनाव नहीं होते, लेकिन पंजाब की राजधानी के चुनाव नतीजों को 2022 के चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा है कि चंडीगढ़ नगर निगम में आम आदमी पार्टी की ये जीत पंजाब में आने वाले बदलाव का संकेत है. हालांकि, चंडीगढ़ और पंजाब के बाकी हिस्सा का सियासी मिजाज बिल्कुल अलग है. पंजाब की सियासत में सिख और दलित वोटर सबसे निर्णायक भूमिका में है, जो पंजाब के दूसरे हिस्सों में रहते हैं. इसके अलावा ग्रामीण वोटर पंजाब की सियासत में सबसे अहम हैं.
निगम में पहुंची 13 महिला पार्षद
नगर निगम सदन में इस बार 13 महिलाएं जीतकर आई हैं. नगर निगम में महिलाओं के लिए 12 वार्ड आरक्षित हैं, लेकिन कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के लड़की हूं लड़ सकती हूं, के तर्ज पर चंडीगढ़ में 40 प्रतिशत सीटें महिलाओं को दी थीं. नगर निगम में आरक्षित वार्डों की 12 सीटों के अलावा पुरुष जनरल वार्ड से दो महिलाओं वर्तमान पार्षद गुरबक्श रावत और महिला कांग्रेस अध्यक्ष दीपा दुबे को टिकट दिया था. इनमें गुरबक्श रावत ने जीत हासिल की है. महिला वार्ड में सबसे अधिक आम आदमी पार्टी से 7 पार्षद जीत हासिल की है जबकि कांग्रेस से 4 महिला पार्षद जीती हैं और दो बीजेपी से जीत दर्ज की हैं.