पंजाब में आम आदमी पार्टी ने इतिहास रच दिया. उसको पंजाब की जनता ने एक प्रचंड जनादेश दे दिया है. इससे पहले दिल्ली में दो बार आप ने विपक्ष का सूपड़ा साफ किया था. उसकी सुनामी में क्या बीजेपी क्या कांग्रेस कोई नहीं टिका. लेकिन पंजाब अलग था, यहां की रजनीति भी अलग थी. लेकिन फिर भी यहां परिवर्तन की महालहर देखने को मिली और आप की आंधी ने कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया.
अब पंजाब में आम आदमी पार्टी को जीत जरूर मिली है, लेकिन इसका क्रेडिट उस दिल्ली मॉडल को जाता है जिसके दम पर राजधानी में आप ने दो बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई है. इस दिल्ली मॉडल में सभी के लिए सस्ती बिजली है, मोहल्ला क्लीनिक हैं, सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा है और मुफ्त इलाज है. अब इन्हीं सब वादों के साथ केजरीवाल पंजाब गए थे, पार्टी के लिए प्रचार किया और लोगों ने भी पूरा विश्वास जताते हुए बड़ा मौका दे दिया.
आप के सामने क्या चुनौतियां?
लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब में ये जीत मौके से ज्यादा चुनौतियां लेकर आई है. ये चुनौतियां बड़ी ज्यादा इसलिए हैं क्योंकि आप को अभी तक दिल्ली के बाहर किसी दूसरे राज्य को चलाने का कोई अनुभव नहीं है. बहस तो इस बात पर भी है कि पार्टी ने अभी तक सिर्फ एक केंद्र शासित राज्य में अपनी सरकार चलाई है. वहां पर कानून व्यवस्था राज्य के हाथ में ना होकर केंद्र के अधीन रहती है. दूसरे कई ऐसे पहलू रहते हैं जहां पर पहले एलजी से सझाव लेना पड़ता है, केंद्र से इजाजत मांगनी पड़ती है, तब जाकर कोई काम होता है.
अब क्योंकि ये तमाम तरह की पाबंदियां रही हैं, इसी वजह से अपने कार्यकाल में अरविंद केजरीवाल ने कई बार केंद्र पर ठीकरा फोड़ा है. कोई बड़ा अपराध हुआ तो केंद्र पर हमला, सरकारी शिक्षकों की सैलरी नहीं मिली तो एमसीडी पर वार. ऐसे में दूसरों पर दोष मढ़ना काफी आसान था. लेकिन अब आम आदमी पार्टी का असल चैलेंज शुरू होने वाला है. वो पहली बार एक राज्य की कमान संभालने जा रही है. भगवंत मान भी अभी के लिए एक 'अनुभवहीन' सीएम हैं. ऐसे में जब उनके कंधों पर एक बॉर्डर स्टेट की जिम्मेदारी आ गई है, उनकी चुनौती कई गुना बढ़ चुकी है.
कानून व्यवस्था सुधारना जरूरी
एक पूर्ण राज्य में पुलिस भी राज्य सरकार के अधीन ही रहती है. ऐसे में अगर कानून व्यवस्था का कोई भी सवाल खड़ा होता है तो जवाबदेही सिर्फ और सिर्फ राज्य सरकार की रहती है. यहां पर केंद्र या फिर किसी एलजी पर आरोप मढ़ने का ऑप्शन नहीं है. इस सब के अलावा पंजाब में आम आदमी पार्टी अपनी हर वो स्कीम आसानी से लागू कर सकती है जिसको दिल्ली में अमल में लाना पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ था. फिर चाहे वो फ्री राशन वाली योजना हो या फिर होम डिलीवरी वाली, केंद्र से आप की सीधी तकरार कई मौकों पर देखने को मिल गई.
लेकिन अब अगर पंजाब में सीएम भगवंत मान भी ऐसी ही योजनाओं को लाने की तैयारी करते हैं तो उन्हें कोई रोक टोक नहीं रहने वाली है. लेकिन मुश्किल ये रहेगी कि हर स्कीम जमीन पर कैसे इंम्लीमेंट की जाए. सिर्फ घोषणा कर देने से बात नहीं बनने वाली है. समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े आदमी तक सरकारी योजना का लाभ पहुंचना जरूरी है. अब ऐसा तभी मुमकिन हो पाएगा अगर पंजाब में आम आदमी पार्टी गुड गवर्नेंस पर फोकस करे.
राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंथन
इस सब के अलावा पंजाब चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी को लेकर कुछ दावे किए गए थे. कुमार विश्वास कह गए थे कि अरविंद केजरीवाल एक बार खालिस्तानियों से समर्थन की बात कर चुके हैं. उनका ये कहना ही पंजाब की राजनीति में उबाल ले आया था. अब क्योंकि ये खबर चुनाव की गिनती से सिर्फ कुछ दिन पहले ही आई, ऐसे में कोई भी पार्टी इस मुद्दे को ज्यादा नहीं भुना पाई. लेकिन अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है. पाकिस्तान की तरफ से लगातार साजिशें हो रही हैं. ड्रोन के जरिए हमले हो रहे हैं.
ऐसे में इस मुद्दे पर आप की अब क्या रणनीति रहने वाली है, ये काफी दिलचस्प होगा. आजतक को दिए इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अगर पंजाब में उनकी सरकार बन जाती है तो राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर वे केंद्र से सलाह लेने वाले हैं और उनका पूरा सहयोग करेंगे.
अब ये तो वो दावे और वादे हुए जो पार्टी हर बार जनता के सामने करती है. लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए जमीन पर स्थिति थोड़ी मुश्किल रहने वाली है. एक तो पार्टी के पास ऐसी परिस्थितियों से डील करने के लिए अनुभव नहीं है और दूसरा ये कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर छोटी सी लापरवाही भी बड़ा बवाल खड़ा कर सकती है. ऐसे में अब भविष्य में आम आदमी पार्टी का जो भी विकास मॉडल रहने वाला है, उसमें आतंकवाद और पाकिस्तान से निपटने जैसे मुद्दे भी शामिल करने पड़ेंगे.
गलती नहीं हो पाएगी माफ
यहां पर ये जानना भी जरूरी हो जाता है कि पिछले कुछ चुनावों से पंजाब की जनता परिवर्तन करने में विश्वास जता रही है. एक छोटी गलती हुई नहीं कि कई नेता सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगते हैं. ऐसे में अब पंजाब में आप को एक ऐसे सीएम की दरकार रहने वाली है जो किसी एलजी के घर के बाहर धरना देने के बजाय तुरंत फैसला ले और जमीन पर एक्शन लेते हुए स्थिति को सामान्य करने का प्रयास करे.
वैसे कम से कम अपने संबोधन के जरिए तो दोनों भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल ने अपने संकेत स्पष्ट कर दिए हैं. एक तरफ भगवंत ने कहा है कि उनका पूरा जोर युवाओं को रोजगार देने पर रहने वाला है तो वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल उम्मीद कर रहे हैं कि भगवंत मान पार्टी का एजेंडा जो दिल्ली में सफल रहा, उसको अब पंजाब में शुरू करेंगे. अब अगर उनकी सरकार उम्मीदों पर खरी उतरी, तो दिल्ली के बाद एक और राज्य आम आदमी पार्टी का बड़ा गढ़ बन सकता है. वहीं अगर केजरीवाल का दिल्ली मॉडल पंजाब में भी सफल हो गया तो इसका सीधा फायदा पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच सकता है.
पीएम मोदी ने भी अपने विकास मॉडल की ऐसे ही मार्केटिंग की है. अब आम आदमी पार्टी भी पंजाब में सफल होने के बाद ऐसा कुछ कमाल कर सकती है, लेकिन उसके लिए भगवंत मान की सरकार का चलना जरूरी है. अब कर पाते हैं या नहीं, ये आने वाले महीनों में स्पष्ट हो जाएगा.