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Faridkot Assembly Seat: पिछले 25 साल से बदल रही हार-जीत, इस बार भी जारी रहेगी परंपरा?

फरीदकोट सीट (Faridkot assembly seat) पर कभी किसी भी दल का पकड़ नहीं रहा है. ज्यादातर मौकों पर हार-जीत बदलती रही है. पिछले 5 चुनावों यानी 25 सालों में कोई भी पार्टी जीत दोहरा नहीं सकी है.

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Faridkot assembly seat
Faridkot assembly seat
स्टोरी हाइलाइट्स
  • फरीदकोट सीट पर कभी किसी भी दल का पकड़ नहीं रहा
  • 1997 से SAD और कांग्रेस के बीच हार-जीत का खेल जारी
  • 2017 के चुनाव में कांग्रेस के कुशलदीप सिंह किक्की जीते

ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से पंजाब के लिए अहम माने जाने वाले शहर फरीदकोट की अपनी राजनीतिक महत्ता है और फरीदकोट विधानसभा सीट की क्रम संख्या 87 है. पिछले 5 चुनावों में यहां से हार-जीत दो दलों के बीच बदलती रही है और इस समय यहां पर कांग्रेस का कब्जा है. यह फरीदकोट संसदीय सीट के तहत आता है.

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पंजाब के जिला फरीदकोट में तीन विधानसभा सीटें आतीं हैं. फरीदकोट (87) के अलावा कोटकापूरा (88) और जैतो (89) शामिल हैं. 

सामाजिक तानाबाना
फरीदकोट जिला कभी राजा महाराजा का स्टेट हुआ करता था. यहां पर करीब 12वीं सदी तक इस फरीदकोट का नाम मोकल हर था मगर 12वीं सदी के अंत में एक सूफी संत बाबा बाबा शेख फरीद जी इस नगरी में पहुंचे. कहा जाता है कि उस समय इस नगरी के राजा मोहकल देव थे. तब इस राजा ने यहां एक किले की उसरी बनाने का काम करवा रहे थे और जो भी यहां पर दिखता उसे पकड़ के किले के काम में लगवा देते थे. इसी दौरान सूफी संत बाबा सेख फरीद जी भी इस नगरी में आए और इनको भी राजा के सिपाहियों ने पकड़ कर जबरन काम पर लगा दिया.

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लेकिन तब एक चमत्कार हुआ कि जो मिट्टी की टोकरी बाबा जी के सिर पर रखी गई थी. वह बाबा जी के सिर पर टिक ना पाई और हवा में ऊपर रुक गई. यह चमत्कार देख सिपाहियों ने राजा को सारी बात बताई. तब राजा नंगे पांव दौड़े आए और बाबा जी से क्षमा मांगी और यहां रहने को कहा मगर बाबा जी ने रहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि मैं फरीक आदमी हूं. यहां नहीं रुक सकता. मुझे आगे पाक पटन जाना है.

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फिर राजा ने कहा कि यह शहर सतलुज दरिया के किनारे होने के कारण उस पार के लुटेरे यहां आकर लूटपाट करने आते हैं और यह शहर बस नहीं रहा, तब बाबा जी ने कहा कि इस शहर का नाम बदल दो तब राजा ने उसी दिन से इस शहर का नाम बाबा फरीद जी के नाम से फरीदकोट रख दिया और फिर यह आबाद होने लगा.

बाबा फरीद जी ने यहां 40 दिन तपस्या की थी, जो आज भी टीला बाबा फरीद जी के नाम पर बना हुआ है. यहां देश-विदेश से भी लोग माथा टेकने आते हैं और उनकी हर मुराद पूरी होती है. फरीदकोट में बाबा फरीद जी के आने की खुशी में उनका आगमन पर हर साल 21, 22, 23 सितंबर को एक बड़ा मेला भी लगता है. इसे इंटरनेशनल हेरिटेज मेले के रूप में माना जाता है.

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यहां पर शहर के बीचों बीच एक विक्टोरिया क्लॉक टॉवर घंटाघर आज भी मौजूद है. एक किला है, जिसका नाम किला मुबारक है. और यहां एक राज महल, पुरानी शिकार गाड़ी, महारानी मोहिंदर कौर बड़ी लाइब्रेरी, राजे के समय का जहाज ग्राउंड भी मौजूद है. घंटाघर को छोड़ बाकी सब राजा के ट्रस्ट जिसका नाम महारावल खीवा जी ट्रस्ट है वह देख रेख कर रहा है.

फरीदकोट स्टेट के इस शाही खानदान के पास अरबों की संपत्ति है. दिल्ली में फरीदकोट हाउस, मनी माजरा में शाही किला और श्रीनगर में भी काफी संपत्ति आज भी मौजूद है. फरीदकोट के ही रहने वाले ज्ञानी जैल सिंह भारत के राष्ट्रपति रह चुके हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि
फरीदकोट जिले की लगभग कुल आबादी 657,290 के आसपास है. अगर बात करें आज की तो फरीदकोट सीट की आबादी 181690 से ज्यादा है, जिसमें महिलाओं की संख्या 95,562 है और पुरुष की आबादी 86,136 के करीब थी.

फरीदकोट सीट पर कभी किसी भी दल का पकड़ नहीं रहा है. ज्यादातर मौकों पर हार-जीत बदलती रही है. पिछले 5 चुनावों यानी 25 सालों में कोई भी पार्टी जीत दोहरा नहीं सकी है. फरीदकोट सीट पर 2012 के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के दीप मल्होत्रा ने जीत हासिल की थी. उन्होंने चुनाव में 2007 के विधायक और कांग्रेस नेता अवतार बराड़ को हराया था.

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जबकि 2002 के चुनाव में कुशलदीप सिंह ढिल्लों ने अकाली दल के टिकट से जीत हासिल की थी. तो वहीं इससे पहले के 2 चुनावों 1992 और 1997 के चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर अवतार सिंह जीते थे. 1997 से अकाली दल और कांग्रेस के बीच हार-जीत का खेल चल रहा है. 

2017 का जनादेश
अगर बात करें 2017 की तो फरीदकोट सीट पर तो इस बार कांग्रेस के कुशलदीप सिंह किक्की ढिल्लों ने चुनाव में 11659 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. उन्हें करीब 51026 वोट मिले थे जबकि आम आदमी पार्टी के गुरदीत सिंह सेखों को करीब 39367 वोट मिले तो वहीं अकाली दल के परमबंस सिंह बंटी रोमाणा को 33612 वोट हासिल हुए. 

रिपोर्ट कार्ड
फरीदकोट सिटी विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक कुशलदीप सिंह ढिल्लों की बात करें तो यह अकाली दल में भी रह चुके हैं. मनप्रीत बादल की पंजाब पीपल पार्टी में भी रह चुके हैं. इनका परिवार शुरू से ही सियासत से जुड़ा हुआ है.  1973 में फिरोजपुर में जन्मे कुशलदीप सिंह के पिता का नाम जसमत सिंह ढिल्लों थे. 

कुशलदीप सिंह 29 साल की उम्र में अकाली दल से विधयाक बने और 2017 में कांग्रेस की सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए.

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