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Navjot Singh Sidhu को घर में ही घेरने का प्लान, बिक्रम मजीठिया पर अकाली दल ने क्यों लगाया दांव?

पंजाब की अमृतसर ईस्ट सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ शिरोमणि अकाली दल ने बिक्रम मजीठिया को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले के दिलचस्प बना दिया है. सिख बहुल अमृतसर ईस्ट पर अकाली दल ने सिद्धू को घेरने की रणनीति के तहत मजीठिया को उतारा है.

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नवजोत सिंह सिद्धू और बिक्रम मजिठिया
नवजोत सिंह सिद्धू और बिक्रम मजिठिया
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अमृतसर ईस्ट सीट पर जनसंघ का भी कब्जा रहा
  • बिक्रम मजीठिया और सिद्धू की अदावत पुरानी है
  • सिख बहुल सीट पर सिद्धू के खिलाफ चक्रव्यूह

पंजाब विधानसभा चुनाव में अभी तक लग रहा था कि यूपी तरह सियासी दिग्गज सेफ गेम खेल रहे हैं. सियासी दिग्गज एक दूसरे खिलाफ आमने-सामने उतरने से बच रहे हैं. लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने अमृतसर ईस्ट सीट से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया को प्रत्याशी बनाया है. अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने सिद्धू के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी देकर, उन्हें घर में ही घेरने का बड़ा सियासी दांव चला है. ऐसे में देखना है कि सिद्धू किस तरह से इस चक्रव्यूह को भेद पाते हैं? 

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बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह और भगवंत मान के अलावा कई दिग्गज नेता बादल परिवार के खिलाफ चुनाव लड़ने पहुंच गए थे. ऐसे में दो दिग्गज नेताओं के आमने-सामने उतरने से एक को सियासी मात खानी पड़ी थी और वो विधानसभा नहीं पहुंच सका था. ऐसे में माना जा रहा था इस बार ऐसा सियासी खेल नहीं होगा, लेकिन अकाली दल ने सिद्धू के खिलाफ अपना हैवीवेट कैंडिडेट उताकर मुकाबले को हाई प्रोफाइल बना दिया है. 

बिक्रम मजीठिया और नवजोत सिंह सिद्धू की सियासी अदावत जगजाहिर है और दोनों नेताओं की पुरानी दुश्मनी है. सिद्धू जिस वक्त बीजेपी में थे तब उन्होंने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया को लेकर मोर्चा खोल रखा था और हर रोज सवाल खड़ा करते थे. माना जाता है कि शिरोमणि अकाली दल की नाराजगी के चलते ही बीजेपी ने 2014 में नवजोत सिंह सिद्धू को अमृतसर से लोकसभा का टिकट नहीं दिया था.

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सिद्धू ने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया, लेकिन मजीठिया पर हमले करने बंद नहीं किए. बिक्रम मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स केस का मुद्दा जोर शोर से उठाया. नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से बनाए गए दबाव के चलते ही ड्रग्स मामले में पंजाब सरकार ने बिक्रम मजीठिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. बिक्रम मजीठिया की अग्रिम जमानत की याचिका को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट रद्द कर चुकी है.

बिक्रम मजीठिया शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के साले हैं और वह प्रकाश सिंह बादल की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. बिक्रम मजीठिया ने कहा था कि अगर पार्टी चाहेगी तो वह नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ अमृतसर ईस्ट सीट से चुनौती देने के लिए उतरेंगे. ऐसे में अब पार्टी ने उन्हें टिकट देकर सिद्धू के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार दिया है.

अमृतसर विधानसभा ईस्ट सीट पर नवजोत सिंह सिद्धू मौजूदा समय में विधायक हैं. सिद्धू से पहले उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू बीजेपी से विधायक रह चुकी है. इस तरह यह सीट सिद्धू की परंपरागत मानी जाती है, लेकिन उन्हें लेकर क्षेत्र की जनता में नाराजगी है.

पंजाब सरकार में सिद्धू मंत्री भी रहे लेकिन अपने निर्वाचन क्षेत्र में कोई विकास कार्य नहीं करा पाए. अमृतसर ईस्ट में कई दफे सिद्धू की गुमशुदगी के पोस्टर लग चुके हैं. ऐसे में अकाली दल ने बिक्रम मजीठिया को उतारकर उन्हें घेरने का दांव चला है. 

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अमृतसर ईस्ट सीट के सियासी और सामाजिक समीकरण बात करें तो ये सीट सिख बाहुल्य मानी जाती. बिक्रम मजीठिया ने दावा किया है कि अमृतसर ईस्ट सीट से वह नवजोत सिंह सिद्धू की जमानत जब्त करवा देंगे. वहीं नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी ने मजीठिया को जवाब देते हुए तंज कसा 'पहले जमानत तो करवा लो, फिर जमानत जब्त करवाना.' इस तरह से दोनों ही ओर से जुबानी जंग तेज हो गई है. 

मजीठिया के उतरने से अमृतसर ईस्ट विधानसबा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है. नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ अकाली दल से बिक्रम सिंह मजीठिया तो आम आदमी पार्टी से जीवनजोत कौर किस्मत आजमा रही है. सिद्धू के खिलाफ विपक्ष ने जबरदस्त चक्रव्यूह रचा है. सिख मतदाताओं पर अकाली दल की भी अपनी मजबूत पकड़ है तो आम आदमी पार्टी ने भी सेंधमारी की है. ऐसे में हिंदु वोटर अगर मजीठिया के पक्ष में चला जाता है तो सिद्धू के लिए काफी चिंता बढ़ा सकती है. 

अमृतसर ईस्ट सीट पर अकाली दल को भले ही एक बार जीत मिली है, लेकिन भारतीय जनसंघ का लंबे समय तक कब्जा रहा है. हालांकि, यहां सबसे ज्यादा चार बार कांग्रेस को जीत मिली है तो एक बार बीजेपी से नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी विधायक बनी थी. ऐसे में देखना है कि 2022 के चुनाव में किसी नैया पार होती है? 

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