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क्या हैं सिद्धू की चुनौतियां, क्या जारी रखेंगे अमरिंदर पर हमले या होगा पैचअप?

जिस पार्टी की कमान सिद्धू (navjot singh sidhu) को मिली है, उसी पार्टी के मुख्यमंत्री से उनका छत्तीस का आंकड़ा भी है. यूं तो सिद्धू मजाकिया अंदाज में अपने जुबानी हुनर से लोगों को आसानी से आकर्षित कर लेते हैं लेकिन कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ वो जो लगातार सियासी तीर छोड़ते आ रहे थे, वो अब तरकश से बाहर निकालेंगे या फिर अपने बाण को आर्काइव करा देंगे, ये देखना काफी अहम होगा. 

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नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)
नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पार्टी में गुटबाजी को करना होगा खत्म
  • चुनावी साल में चलना होगा अमरिंदर के साथ
  • क्या अमरिंदर को मनाएंगे या किनारे कर पाएंगे?

लंबे समय से सियासी छाते की तलाश में जुटे नवजोत सिंह सिद्धू (navjot singh sidhu) को आखिरकार मॉनसून की बारिश के बीच स्थाई आसरा मिल ही गया. कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की 'नाराजगी' को दरकिनार करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का मुखिया बना दिया. राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly election) होने हैं, लिहाजा सिद्धू के पास वक्त कम है और उनके सामने विपक्ष के अलावा कैप्टन जैसी बड़ी चुनौती भी है. ऐसे में सवाल ये है कि दिल्ली हाईकमान को साध चुके सिद्धू अब स्टेट के चीफ से कैसे संतुलन बनाएंगे.

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जिस पार्टी की कमान सिद्धू को मिली है, उसी पार्टी के मुख्यमंत्री से उनका छत्तीस का आंकड़ा भी है. यूं तो सिद्धू मजाकिया अंदाज में अपने जुबानी हुनर से लोगों को आसानी से आकर्षित कर लेते हैं लेकिन कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ वो जो लगातार सियासी तीर छोड़ते आ रहे थे, वो अब तरकश से बाहर निकालेंगे या फिर अपने बाण को आर्काइव करा देंगे, ये देखना काफी अहम होगा. 

ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि आखिरी वक्त तक कैप्टन अमरिंदर की तरफ से ये कोशिश की गई कि सिद्धू को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जाए. 18 जुलाई यानी रविवार को भी पंजाब कांग्रेस के सांसदों ने दिल्ली में बैठक की. बताया गया कि इस बैठक के जरिए सिद्धू को जिम्मेदारी न दिए जाने को लेकर मंथन हुआ. 

कैप्टन ने अपनाया हर पैंतरा

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दूसरी तरफ, कैप्टन अमरिंदर ने 'ओल्ड कांग्रेसी' वाला सियासी दांव भी खेलने की कोशिश की. कैप्टन गुट की तरफ से खबर ये आई कि सिद्धू पुराने कांग्रेसी नहीं हैं, लिहाजा पार्टी में जो अन्य वरिष्ठ नेता हैं उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाए. इस लिस्ट में प्रताप सिंह बाजवा का नाम भी आया लेकिन किसी फॉर्मूले पर पार्टी हाईकमान ने कोई सुनवाई नहीं की. 

सिर्फ कैप्टन ही नहीं, उनके समर्थक नेता, सांसद और विधायकों ने भी खुले तौर पर सिद्धू के खिलाफ मोर्चा खोले रखा. रविवार को ही पंजाब कांग्रेस के 10 विधायकों ने पार्टी हाईकमान को संबोधित करते हुए एक बयान जारी किया और यहां तक कह दिया कि 1984 के सिख विरोधी दंगे के बाद भी पंजाब में पार्टी को खड़ा करने वाले कैप्टन अमरिंदर की यूं अनदेखी नहीं की जा सकती. हालांकि, इस सबका कोई असर नहीं हुआ. 

सिद्धू के समर्थन में भी खुलकर आए नेता

एक तरफ कैप्टन अमरिंदर गुटे के नेता सिद्धू के खिलाफ हर मुमकिन आवाज उठाते रहे तो दूसरी तरफ पार्टी हाईकमान के ग्रीन सिग्नल से गदगद सिद्धू के हाव-भाव देखकर कई विधायक और नेता भी उनके समर्थन में खुलकर आ गए. अमरिंदर सिंह राजा ने सिद्धू के साथ फेसबुक पर तस्वीर शेयर की और लिखा कि जिस दिन का पंजाब को इंतजार था वो दिन आ गया है. यानी कैप्टन और सिद्धू के समर्थन को लेकर विधायकों और पार्टी नेताओं में भी दो फाड़ दिखा. 

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ऐसे में सिद्धू के सामने ये बड़ी चुनौती है कि क्या वो ऐसे नेताओं को किनारे लगाएंगे जिन्होंने उनका विरोध किया या फिर चुनावी साल में वो सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करेंगे. इसके अलावा इस पिक्चर के मुख्य किरदार कैप्टन अमरिंदर को बिजली और ड्रग्स जैसे अन्य कई मुद्दों पर घेरने वाले सिद्धू अब अपनी पार्टी की सरकार के मुखिया को कैसे पेश करेंगे. क्योंकि चुनाव में पार्टी की जीत के लिए वोट मांगने जब सिद्धू उतरेंगे तो जाहिर है उन्हें अमरिंदर सरकार के कामकाज की तारीफ करनी होगी.

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दूसरी तरफ,  एक राज्य में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और उसी पार्टी के मुख्यमंत्री के बीच ही अगर तालमेल नहीं होगा तो चुनाव में कांग्रेस कैसे मजबूती से लड़ पाएगी, ये भी अहम सवाल है. 

सिद्धू के सामने ये वो चुनौतियां हैं जो अपने घर की हैं. इन मुश्किलों के अलावा सिद्धू के सामने फ्री बिजली का वादा कर चुकी आम आदमी पार्टी और किसानों के समर्थन के नाम पर केंद्र सरकार से बाहर होने की कुर्बानी दे चुकी शिरोमणी अकाली दल भी है, जो कैप्टन सरकार के खिलाफ लगातार मोर्चा संभाले हुए हैं. 

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यानी सिद्धू को घरेलू और बाहरी, दोनों मोर्चों पर लड़ाई लड़नी होगी.


 

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