पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू से मुलाकात के बाद पार्टी की कलह को खत्म करने लिए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने या फिर चुनावी कैंपेन कमेटी की कमान देने का फॉर्मूला रखा. इस पर सिद्धू राजी भी हो गए, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसी हिंदू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर कांग्रेस हाईकमान के सामने मुश्किलें खड़ी दी है. ऐसे में क्या पार्टी सिद्धू को प्रदेश की कमान देकर 'हिंदू विरोधी' होने का सियासी ठप्पा बर्दाश्त कर पाएगी?
कैप्टन ने दिया हिंदू नेताओं को लंच
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुरुवार को अपने खेमे के हिंदू नेताओं को लंच पर बुलाया था. इस दौरान पार्टी के कई नेताओं ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से कहा है कि हिंदुओं और सिखों को समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए, पार्टी को एक हिंदू को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नामित करना चाहिए. हिंदू नेताओं की इस मांग से अमरिंदर और सिद्धू की लड़ाई सुलझने के बजाय उलझ गया है जबकि किसी हिंदू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग से कांग्रेस हाईकमान के सामने भी राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है.
कैप्टन ने कांग्रेस के हिंदू नेताओं को दिए लंच में छह मंत्री, कई विधायक और अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए. इनमें से ज्यादातर नेताओं ने कहा कि पंजाब में सिखों के बाद सबसे हिदू सबसे बड़ा वोट बैंक हैं लेकिन उनकी उपेक्षा की जा रही है. राज्य की 15 ऐसी सीटें हैं जो हिंदू बहुल हैं और कभी यहां हिंदू उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में उतारे जाते थे. लेकिन अब वहां पर जट्ट सिख विधायक हैं ऐसे में हिंदू नेता कहां जाएंगे इसका जवाब ढूंढ़ना चाहिए.
हिंदू नेताओं ने बठिंडा, गुरदासपुर, फिरोजपुर और कोटकपूरा सीट का प्रमुख तौर पर जिक्र किया. 1957 से 2017 तक इस सीट पर 14 विधानसभा चुनावों में 11 बार हिंदू उम्मीदवार जीते. इसी तरह गुरदासपुर सीट पर कांग्रेस पहले रमन बहल को आगे करती रही है तो कोटकपूरा में उपेंद्र शर्मा जैसे नेता पार्टी के उम्मीदवार रहे.
सिद्धू को हाईकमान का फॉर्मूला
वहीं, पंजाब कांग्रेस चल रही कलह को दूर करने के मकसद से पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के लिए सम्मानजनक स्थिति वाला फॉर्मूला पर मंथन कर रहा है. पंजाब नेताओं और विधायक-मंत्रियों की बैठक के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू से मुलाकात किया था, जिसके बाद खबर आई की सिद्धू को पंजाब में भूमिका दी सकती है. इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद या फिर चुनावी कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाने का फॉर्मूला रखा गया, जिस पर सिद्धू राजी भी हो गए हैं.
कांग्रेस हाईकमान अपने फॉर्मूले को अमलीजामा पहनाता उससे पहले कैप्टन अमरिंदर ने हिंदू नेताओं को लंच पर बुलाकर नया सियासी दांव चल दिया. सिद्धू को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने के विकल्प पर कैप्टन अमरिंदर सिंह राजी नहीं हैं. इस समय मुख्यमंत्री के पद पर कैप्टन अमरिंदर सिंह है, जो कि जट्ट सिख नेता है. ऐसे में अगर पार्टी की कमान भी जट्ट सिख के तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू को सौंप दी जाती है तो संगठन और सरकार दोनों सिख नेता के हाथों में होगी. इसस हिंदू वोटों के नाराज होने का खतरा और पार्टी को सियासी नुकसान हो सकता है.
प्रदेश अध्यक्ष के पद पर गैर-सिख
अमरिंदर सिंह कांग्रेस प्रदेश के अध्यक्ष के पद पर किसी हिंदू चेहरा को बैठाए रखना चाहते हैं. सुनील जाखड़ हिंदू जाट नेता हैं, जिन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह का करीबी भी माना जाता है. कैप्टन की ओर से गुरुवार को दिए गए लंच में कांग्रेस के सभी वरिष्ठ हिंदू नेताओं को बुलाया गया था, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ नहीं पहुंचे. ऐसे में उनकी गैरहाजिरी चर्चा का विषय रही.
वहीं, कैप्टन के लंच पर हुई बैठक में मंत्री मनप्रीत बादल, ब्रह्म मोहिंदरा, भारत भूषण आशु, ओपी सोनी, सुंदर श्याम अरोड़ा, विजय इंद्र सिंगला, सांसद मनीष तिवारी व गुरजीत औजला सहित करीब 30 नेता मौजूद रहे. इन नेताओं ने जिस तरह से हिंदू प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग उठाई है, उससे हाईकमान के सामने अब मुश्किल यह हो गई है कि पंजाब में अब सिद्धू को कैसे पार्टी की कमान सौंपे.
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ये गैर-सिख को पार्टी की कमान देने की बात पहले ही केंद्रीय नेतृत्व से कह चुके है. सीएम जिन दो नेताओं को पंजाब प्रदेश कमेटी का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, उनमें सांसद मनीष तिवारी और राज्य के शिक्षा-पीडब्ल्यूडी मंत्री विजय इंदर सिंगला. सूत्रों की मानें तो लंच पर बैठक के दौरान इन हिंदू नेताओं ने कहा कि वो नवजोत सिंह सिदधू को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे.
पंजाब की सियासत में हिंदू वोटर अहम
पंजाब की सियासत में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के राजनीतिक आधार हिंदू मतदाता है. राज्य में इतिहास रहा है कि बीजेपी जब भी कमजोर हुई है, उसका लाभ कांग्रेस को मिला है. यही वजह कि अकाली और बीजेपी के गठबंधन टूटने के बाद से कांग्रेस को अपना सियासी लाभ उठाने की कवायद में है. पंजाब का मालवा इलाका हिंदू वोटों का गढ़ माना जाता है, जहां करीब 67 विधानसभा सीटें आती हैं.
मालवा में बीजेपी के चलते अकाली दल को सियासी फायदा होता रहा है, क्योंकि बीजेपी के चलते हिंदू वोट बैंक अकाली दल के पक्ष में जाता रहा है. हालांकि, अकाली दल से बीजेपी के गठबंधन होने के चलते हिंदू मतदाताओं की पसंद कांग्रेस बनी हुई है. ऐसे में अब इन वोटों पर सीधे कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई होगी. ऐसे मे साफ जाहिर है कि हिंदू वोट के बंटने का फायदा कांग्रेस को मिलने की उम्मीदें है, लेकिन कांग्रेस हाईकमान सिद्धू को पार्टी की कमान सौंपकर क्या पंजाब में 'हिंदू विरोधी' होने का ठप्पा बर्दाश्त कर पाएगी?