पंजाब में ड्रग्स का मामला एक बार फिर सियासी रुख अख्तियार कर रहा है. 2017 के चुनाव में तत्कालीन बादल सरकार निशाने पर थी तो अब 2022 के चुनाव से पहले कांग्रेस की सरकार पर हमले हो रहे हैं. पंजाब में ड्रग्स कितना बड़ा मसला है इस बात का अंदाजा लगाएं कि आज से 5 साल पहले विधानसभा चुनाव के दौरान इस पर एक बॉलीवुड फिल्म आई थी उड़ता पंजाब. इस फिल्म में पंजाब के कई जिलों में ड्रग्स के कारोबार और उसकी चपेट में आ रही पूरी पीढ़ी के किस्से दिखाए गए. फिल्म की आलोचना हुई कि पंजाब को बदनाम करने की कोशिश हो रही है लेकिन ड्रग्स के मामले को लेकर तत्कालीन सरकार और उनके मंत्रियों पर सियासी हमले भी हुए. उस समय पंजाब में अपनी जमीन खोज रही आम आदमी पार्टी और तत्कालीन विपक्ष में रही कांग्रेस ने जमकर बादल सरकार पर ड्रग्स के मसले पर हमला बोला.
5 साल बाद आखिर पंजाब में क्या बदला है?
5 साल पहले वादे किए गए कि चुनाव जीतने पर ड्रग्स के कारोबार को खत्म किया जाएगा और पंजाब की युवा पीढ़ी को नशे से मुक्त किया जाएगा. इन 5 सालों में पंजाब में रिहैब सेंटर की संख्या बढ़ी है और इन नशा मुक्ति केंद्रों पर खुद से इलाज करवाने आने वाले युवाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है जो एक अच्छी तस्वीर है. जो युवा नशे का शिकार होकर जीवन को अंधकार के हवाले कर रहे थे अब इन नशा मुक्ति केंद्रों पर हंसते खेलते नजर आते हैं. यह लोग कभी ड्रग्स की चपेट में थे लेकिन इन्हें अपराधी की तरह नहीं बल्कि पीड़ित के तौर पर देखा जाना चाहिए.
'नशे से बचने के लिए मानसिक विकारों से जूझते हैं'
डॉक्टर बबलीना बताती हैं कि नशे में डूबे इन लोगों को शरीर से ज्यादा मानसिक विकारों से जूझना पड़ता है क्योंकि नशे के दौरान इन्होंने अपनों पर हाथ उठाए हैं घर में हिंसा की है चोरी भी की है ताकि नशा मिल सके. लेकिन अब पश्चाताप का समय है और यह उस अंधेरे से निकलकर आम लोगों की तरह अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं.
'ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या जस के तस'
पंजाब के कई जिलों में न जाने ऐसे कितने हजारों लाखों युवा हैं जो ड्रग्स की चपेट में हैं. डॉक्टर जीपीएस भाटिया जैसे कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इनके लिए मसीहा साबित हुए हैं. नशा मुक्ति केंद्रों पर यह तमाम पीड़ित खेलते हैं योग करते हैं ध्यान करते हैं और जहर की उस याददाश्त से अपने दिल दिमाग जिस्म को बाहर निकालते हैं ताकि जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाए और घर में खुशियां फिर से दस्कत दें. डॉक्टर जेपीएस भाटिया कहते हैं कि सकारात्मक बदलाव पिछले 5 सालों में देखने को मिला है वह यह कि खुद से नशा मुक्ति केंद्रों पर लत छोड़ने आने वाले युवाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या में उन्हें कोई बदलाव दिखाई नहीं पड़ता और स्थिति जस की तस बनी हुई है.
तो आखिर इसका इलाज क्या है?
नशे से पीड़ित युवाओं का इलाज करने वाले डॉक्टर भाटिया कहते हैं की सिंथेटिक ड्रग्स से युवाओं की जान से ज्यादा जा रही है इससे बेहतर है कि सरकार एनडीपीएस एक्ट में बदलाव करके नशा लेने वालों को अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित समझें. साथ ही स्थानीय स्तर पर किसानों को अफीम और गांजे की खेती की अनुमति दें ताकि अगर लोगों को नशा करना है तो वह सिंथेटिक केमिकल कोकीन और हेरोइन जैसे ड्रग्स का इस्तेमाल ना करें. डॉक्टर भाटिया ने कहा - हमको भी पता है कि यह फैसला बेहद विवादास्पद है लेकिन मुझे लगता है कि यही सही है.
गांव- गांव में सक्रिय ड्रग पैडलर
नशा मुक्ति केंद्रों पर आए पीड़ितों ने हमें बताया था कि पैडलर्स गांव- गांव में सक्रिय हैं और घर-घर तक पहुंच रही है. तरनतारन गांव के बाहर कुछ ऐसे इलाकों में हमने जाकर जायजा लिया जहां यह उम्मीद नहीं थी कि इसका इस्तेमाल नशे के लिए होगा. गांव वालों से मिली जानकारी के आधार पर बाहर एक ऐसे ही अधूरी इमारत के हिस्से में हमने रियलिटी चेक किया. इंजेक्शन सिरिंज चिट्टा जिस कागज पर लिया जाता है उसके टुकड़े सब कुछ जमीन पर बिखरे पड़े थे.