दिल्ली के बाद पंजाब में भी परिवर्तन की लहर पर सवार होकर आम आदमी पार्टी ने इतिहास रच दिया है. एक ऐसी जीत दर्ज की है कि कई परंपराएं हमेशा के लिए टूट गई हैं. बादल परिवार हारा है, कैप्टन हारे हैं और सिद्धू ने भी कई चुनावों बाद हार का मुंह देख लिया है. इस अप्रत्याशित जीत का सबसे ज्यादा असर उस कांग्रेस पर पड़ा है जो पहले से ही देश में काफी कमजोर हो चुकी है. अब तो बहस ये होने लगी है कि क्या कांग्रेस का विकल्प आम आदमी पार्टी बनने वाली है? क्या राष्ट्रीय स्तर पर अब मोदी को टक्कर देने का काम अरविंद केजरीवाल करेंगे?
दिल्ली वाली पार्टी अब राष्ट्रीय?
पंजाब में 117 सीटों में से 92 पर जीत दर्ज करने के बाद आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रभारी राघव चड्ढा इतने ज्यादा उत्साहित हो गए कि उन्होंने ऐलान कर दिया कि अब राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पार्टी कांग्रेस का विकल्प बनने जा रही है. उनके इस बयान की अहमयित काफी ज्यादा मानी जा रही है. आम आदमी पार्टी को जीत तो दो बार दिल्ली के चुनाव में भी मिल चुकी है. ऐसी जीत मिली है कि विपक्ष का सूपड़ा साफ हुआ है. लेकिन चुनौती तो ये थी कि क्या दिल्ली से बाहर निकल कर भी आम आदमी पार्टी कुछ कमाल कर पाएगी? जो विपक्ष आप को 'दिल्ली वाली पार्टी' कहकर संबोधित करता था, क्या वो पार्टी राष्ट्रीय पटल पर अपनी छाप छोड़ पाएगी? अब पंजाब चुनाव के नतीजों ने आम आदमी पार्टी के लिए वो काम कर दिखाया है.
पंजाब कोई छोटा राज्य नहीं है. यहां की राजनीति में पैर जमाना भी बच्चों का खेल नहीं है. एक तरफ अगर कांग्रेस खड़ी थी तो दूसरी तरफ अकाली भी पूरा दमखम लगा रहे थे. पंजाब की राजनीति में बादल परिवार की सक्रियता तो वैसे भी किसी से नहीं छिपी है. पाकिस्तान से भी इसकी सीमा लगती है लिहाजा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण राज्य है. लेकिन इन सभी चुनौतियों के बावजूद भी आप संयोजक अरविंद केजरवील ने पंजाब पर बड़ा दांव चला. दिल्ली के बाहर पैर पसारने के लिए उन्होंने अपना काफी समय पंजाब में लगाया. जिस दिल्ली मॉडल के जरिए उन्होंने राजधानी में दो बार सत्ता हासिल की, उसी का उदाहरण देकर उन्होंने पंजाब की जनता का दिल जीतने का भी प्रयास किया.
पंजाब में जीत, आप का अगला प्लान क्या?
अब केजरीवाल की वो पहल सफल हो गई है. उन्होंने कांग्रेस को इस चुनाव में सिर्फ हराया नहीं है, बल्कि सीधे-सीधे सफाया कर दिया है. यही फर्क होता है हार और करारी हार में. सीएम चन्नी अपनी दोनों सीटों पर हार चुके हैं, सिद्धू की हार हो गई है और सरकार के कई मंत्री भी अपनी सीट बचाने में फेल हुए हैं. इसका मतलब स्पष्ट है पंजाब की जनता ने केजरीवाल के परिवर्तन वाले नारे का दिल खोलकर स्वागत किया है. उन्हें दिल्ली के बाहर सक्रिय होने का एक सुनहरा मौका दे दिया गया है.
वैसे आम आदमी पार्टी की तरफ से दिल्ली के बाहर खुद को स्थापित करने की जंग तो काफी पहले ही शुरू कर दी गई थी. पार्टी ने पहले से ही यूपी, गोवा, उत्तराखंड और गुजरात में अपना संगठन खड़ा कर रखा है. लेकिन यूपी में पार्टी का अभी कोई वोटबैंक नहीं है, उत्तराखंड में लड़ाई कांग्रेस बनाम बीजेपी की ही चल रही है और गोवा में भी उसका जनाधार अभी स्थिर नहीं हुआ है. ऐसे में पंजाब की बड़ी जीत ने आप को राष्ट्रीय पटल पर जबरदस्त मजबूती प्रदान कर दी है.
तीसरे मोर्चे की चर्चा, केजरीवाल कहां?
जब विपक्षी खेमे में बहस चल रही है कि मोदी के खिलाफ किसे खड़ा किया जाएगा, जब चर्चा हो रही है कि विपक्ष को एकजुट करने का काम कौन करेगा, ऐसे समय में आम आदमी पार्टी ने पंजाब जीत कर बड़े संकेत दे दिए हैं. ये संकेत आप से ज्यादा अरविंद केजरवील ने दिए हैं जो लंबे समय से खुद को एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित करने के सपने देख रहे हैं. ये बात किसी से नहीं छिपी है कि पंजाब जीत से पहले तक किसी भी विपक्षी एकजुटता में अरविंद केजरीवाल या फिर उनकी आम आदमी पार्टी को ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई थी. अगर चर्चा थी भी तो वो सिर्फ ममता बनर्जी, शरद पवार, के चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव जैसे नेताओं तक सिमट गई थी.
लेकिन यूपी हारने के बाद अखिलेश यादव की छवि को जबरदस्त नुकसान पहुंचा है और पंजाब विजय ने आप के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया है. अब अगर आम आदमी पार्टी एक स्पष्ट रणनीति बना आगे बढ़े, तो ऐसी परिस्थिति में वो देश की सबसे पुरानी पार्टी की जगह ले सकती है. उसने दिल्ली में ऐसा कर दिखाया भी है. जहां पर शीला दीक्षित ने 15 साल तक लगातार राज किया, उस दिल्ली में आप ने कांग्रेस को शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया. इसी तरह पिछले साल जब गुजरात के सूरत में निकाय चुनाव हुए थे, बड़ा उलटफेर करते हुए आम आदमी पार्टी ने वहां पर 27 सीटें जीत ली थीं. वो आप का गुजरात में किसी भी तरह का पहला चुनाव था और ये एक ऐसा राज्य है जहां पर हमेशा से ही बीजेपी बनामा कांग्रेस का मुकाबला रहता है. लेकिन उस एक नतीजे ने बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस की धड़कनों को बढ़ा दिया था.
जानकारों का मानना है कि आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अभी इसी रणनीति पर काम कर रही है. वो किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं चाहती है. जिन राज्यों में उसे अपने आसार दिखाई पड़ रहे हैं, पहले वो वहां पर मुख्यी विपक्षी दल बनने की कोशिश कर रही है. ऐसा कर वो फिर सीधे बीजेपी से टक्कर ले पाएगी. आगामी गुजरात चुनाव में भी उसकी यही रणनीति देखने को मिल रही है. कांग्रेस को हटा वो खुद को बीजेपी की टक्कर में लाना चाहती है. ऐसा होने से बीजेपी की कितनी चुनौती बढे़गी, ये तो समय बताएगा लेकिन कांग्रेस के लिए बड़े खतरे की घंटी बज जाएगी.
बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती आप?
ऐसा ही कुछ कमाल बीजेपी ने बंगाल में लेफ्ट के साथ किया है. जब से बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी मजबूत हुई हैं और उनकी सरकार राज्य में बनी है, लेफ्ट ही हमेशा से मुख्य विपक्षी दल रहा है. लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने लेफ्ट का सफाया कर दिया और खुद मुख्य विपक्षी दल बन गई. ममता बनर्जी भी अब लेफ्ट से ज्यादा बीजेपी पर हमलावर रहती हैं. अब दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी को भी ऐसी की सक्रियता दी दरकार है जहां पर वो उन राज्यों में अपने पैर पसार सके जहां पर अभी तक वो ज्यादा कुछ साबित नहीं कर पाई है. पंजाब जीत ने उसे एक वो राह तो दिखा दी है लेकिन उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पार्टी को अभी कई चुनौतियां पार करनी पड़ेंगी.
वैसे अरविंद केजरीवाल की राजनीति को एक अलग चश्मे से भी देखना पड़ेगा क्योंकि इस समय आम आदमी पार्टी द्वारा सिर्फ राज्यों में कांग्रेस का सफाया नहीं किया जा रहा है, बल्कि वो राजनीति का एक ऐसा मॉडल खड़ा कर रही है जो भविष्य में उसे कई राज्यों में बीजेपी के खिलाफ भी एक मजबूत विकल्प बना सकता है. कल ही पंजाब फतेह करने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि इस देश को बदलना पड़ेगा, यहां के सिस्टम को बदलना पड़ेगा. कुछ लोग लूट रहे थे देश को, कोई स्कूल नहीं बनाए, कोई अस्पताल नहीं बनाए, लोगों को जानबूझकर गरीब रखा गया था.
अब केजरीवाल के इस बयान का अगर अध्ययन किया जाए तो समझ लगती है कि साल 2014 में देश की राजनीति में पीएम नरेंद्र मोदी ने कुछ इसी अंदाज में एंट्री की थी. उनका जो साल 2014 का चुनावी प्रचार था, उसमें एक बात कॉमन थी- भ्रष्टाचार और विपक्ष को 'लुटेरा' बताना. तब उनके निशाने पर कांग्रेस थी और आरोप लगाया गया था कि उसने इस देश को लूटा है, गरीबों को जानबूझकर गरीब रखा है. उस नेरेटिव ने मोदी की छवि को और ज्यादा ईमानदार बना दिया था और पूरी बीजेपी को उसके बाद से कई राज्यों में इस पहलू का फायदा मिला. अब अरविंद केजरीवाल भी वहीं राह पकड़ते दिख रहे हैं. वे आम आदमी पार्टी को सिर्फ Common Man की पार्टी नहीं बता रहे हैं, वे गरीब कल्याण की भी बात कर रहे हैं, महिलाओं को अधिकार देने पर भी जोर दे रहे हैं और अच्छे स्कूल-कॉलेज का भी वादा कर रहे हैं. ऐसे में जिस गुड गर्वनेंस की बात मोदी करते हैं, उसी को अपना विकास मॉडल आम आदमी पार्टी भी बना रही है. ऐसे में अगर आने वाले सालों में कांग्रेस का ग्राफ ऐसे ही नीचे जाता रहा तो बीजेपी के सामने नई चुनौती आम आदमी पार्टी की खड़ी होने वाली है.